मद्रास हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: निजी कब्रिस्तान अवैध घोषित

मद्रास हाईकोर्ट ने निजी कब्रिस्तानों को अवैध घोषित करते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। अदालत ने कहा कि मृतकों को केवल सरकारी स्वीकृत कब्रिस्तानों में दफनाया जा सकता है। यदि जमीन मालिक 12 हफ्तों के भीतर शवों को नहीं हटाते हैं, तो चेन्नई नगर निगम कार्रवाई करेगा। यह निर्णय एक निर्माण कंपनी की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और अदालत के आदेश के पीछे की कहानी।
 | 
मद्रास हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: निजी कब्रिस्तान अवैध घोषित

मद्रास हाईकोर्ट का निर्णय

मद्रास हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: निजी कब्रिस्तान अवैध घोषित

मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने निजी संपत्तियों पर स्थित कब्रिस्तानों के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। अदालत ने कहा कि मृतकों को केवल सरकारी स्वीकृत कब्रिस्तानों में दफनाया जा सकता है। यह आदेश चेन्नई में एक चर्च के निकट स्थित एक निजी कब्रिस्तान के मामले में दिया गया है, जो एक आवासीय क्षेत्र के पास है।

न्यायाधीश ने जमीन के मालिक को निर्देश दिया है कि वह 12 हफ्तों के भीतर दफनाए गए शवों को हटा दें। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं, तो चेन्नई नगर निगम शवों को हटाने की कार्रवाई करेगा और इसके लिए लागत वसूल करेगा। यह आदेश एक निर्माण कंपनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आया है।

दफनाने का लाइसेंस रद्द

कोर्ट ने जमीन मालिक का दफनाने का लाइसेंस भी रद्द कर दिया है। न्यायाधीश ने कहा कि यह लाइसेंस गलत तरीके से और जल्दी जारी किया गया था, जिससे नियमों का उल्लंघन हुआ। हालांकि, जमीन मालिक को नए लाइसेंस के लिए आवेदन करने की अनुमति दी गई है, जिसे निगम को कानून के अनुसार सख्ती से जांचना होगा।

मामले का विवरण

यह मामला मदनन्थपुरम गांव में स्थित सीएसआई सेंट मैथ्यू चर्च के निजी कब्रिस्तान से संबंधित है। एक निर्माण कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश एन. माला ने ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन द्वारा जारी दफनाने के लाइसेंस को रद्द कर दिया।

कोर्ट ने जमीन मालिक को 12 हफ्तों का समय दिया है। यदि इस अवधि के भीतर शवों को अन्य स्थान पर नहीं दफनाया गया, तो कार्रवाई की जाएगी। याचिकाकर्ता कंपनी ने अदालत में दावा किया था कि उस क्षेत्र में निर्माण कार्य 2021 से शुरू हो गया था, लेकिन जमीन मालिक बिना अनुमति के लगातार दफनाने का कार्य कर रहा था, जबकि उस भूमि को कभी भी कब्रिस्तान के लिए आधिकारिक रूप से नामित नहीं किया गया था.