मणिपुर में शांति के लिए नया समझौता: पीएम मोदी की यात्रा से पहले महत्वपूर्ण कदम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित मणिपुर यात्रा से पहले केंद्र और मणिपुर सरकार ने कुकी-जो समूहों के साथ एक नया समझौता किया है। इस समझौते में मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने, राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर आवागमन को सुगम बनाने और उग्रवादी शिविरों को स्थानांतरित करने पर सहमति बनी है। यह समझौता मणिपुर में स्थायी शांति और स्थिरता लाने के लिए महत्वपूर्ण है। पीएम मोदी का यह दौरा राज्य में विश्वास बहाली का प्रतीक है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए संवेदनशील राजनीतिक संवाद की आवश्यकता है।
Sep 4, 2025, 18:15 IST
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मणिपुर में कुकी-जो समूहों के साथ नया समझौता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित यात्रा से पहले, केंद्र और मणिपुर सरकार ने कुकी-जो समूहों के साथ एक नया समझौता किया है। इस समझौते में सभी पक्ष मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने, राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर आवागमन को सुगम बनाने और उग्रवादी शिविरों को स्थानांतरित करने पर सहमत हुए हैं। त्रिपक्षीय 'सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस' (एसओओ) समझौते के नियमों पर पुनः बातचीत की गई है।
तीनों पक्षों ने मणिपुर में स्थायी शांति और स्थिरता लाने के लिए बातचीत के माध्यम से समाधान की आवश्यकता पर सहमति जताई है। इसके साथ ही, शिविरों की संख्या को कम करने, हथियारों को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) शिविरों में सौंपने और विदेशी नागरिकों की सूची से हटाने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा उग्रवादियों के भौतिक सत्यापन पर भी सहमति बनी है। गृह मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, एक संयुक्त निगरानी समूह नियमों के प्रवर्तन पर नजर रखेगा और भविष्य में उल्लंघनों से सख्ती से निपटेगा।
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यह ध्यान देने योग्य है कि 2008 से लागू एसओओ व्यवस्था फरवरी 2024 से ठप थी, क्योंकि राज्य जातीय हिंसा और अविश्वास के दौर से गुजर रहा था। इस समझौते की बहाली न केवल वार्ता-आधारित समाधान को पुनर्जीवित करती है, बल्कि मणिपुर के सामाजिक-राजनीतिक संतुलन को भी बहाल करने का प्रयास है। केंद्र के वार्ताकार दल ने कुकी-ज़ो समूहों के प्रतिनिधियों से बातचीत की, जो सकारात्मक रही और इसके अंत में एसओओ समझौते का नवीनीकरण हुआ।
एसओओ व्यवस्था मणिपुर में संघर्ष विराम की न्यूनतम शर्तों को सुनिश्चित करती है। यदि कुकी-ज़ो समूह हिंसा से दूर रहते हैं और हथियार शिविरों तक सीमित रहते हैं, तो राज्य में सुरक्षा बलों का बोझ कम होगा और सामान्य जीवन की बहाली आसान होगी। यह संदेश भी जाएगा कि सरकार वार्ता और विश्वास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए तैयार है।
समझौते में कुछ बदलावों के माध्यम से इसे अधिक व्यावहारिक बनाया गया है। कैडरों का भत्ता सीधे बैंक खातों में भेजना भ्रष्टाचार और असमान वितरण को कम करेगा। शिविरों के पुनर्वास से हथियारों की निगरानी भी सरल होगी। ये कदम उग्रवाद से जुड़े आर्थिक और संगठनात्मक ढांचे को नियंत्रित करने के प्रयास हैं, जो भविष्य में स्थायी शांति की नींव रख सकते हैं।
मणिपुर का संकट केवल सुरक्षा का नहीं, बल्कि गहरे जातीय विभाजन का भी है। वार्ता में यह सुनिश्चित किया गया है कि कुकी-ज़ो समूह राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (NH-2) पर मैतेई समुदाय की आवाजाही में बाधा न डालें और बदले में कुकी-ज़ो लोगों को इंफाल और हवाई अड्डे तक पहुँच मिले। यह वास्तव में एक लाभकारी स्थिति है।
प्रधानमंत्री मोदी की आगामी यात्रा इस समझौते से राजनीतिक रूप से जुड़ी हुई है। उनकी यात्रा से पहले शांति का संकेत मिलना राज्य और केंद्र दोनों के लिए विश्वास बहाली का प्रतीक है। हालांकि, यह भी सच है कि मणिपुर का संकट केवल औपचारिक समझौतों से हल नहीं होगा; दीर्घकालिक समाधान के लिए संवेदनशील राजनीतिक संवाद, न्याय और समावेशी विकास आवश्यक हैं। पीएम मोदी का 12 या 13 सितंबर को मणिपुर दौरे पर जाना प्रस्तावित है। यह उनकी मई 2023 में भड़की जातीय हिंसा के बाद राज्य की पहली यात्रा होगी।
इस प्रकार, एसओओ समझौते की बहाली को मणिपुर में शांति की ओर पहला कदम कहा जा सकता है। यह सरकार और उग्रवादी समूहों के बीच संवाद की डोर को फिर से जोड़ता है। लेकिन यह तभी सार्थक होगा जब इसे केवल अस्थायी राहत नहीं, बल्कि दीर्घकालिक राजनीतिक समाधान की दिशा में संधि-सेतु के रूप में उपयोग किया जाए। मणिपुर की वास्तविक शांति तभी संभव होगी जब हिंसा और अविश्वास की जगह न्याय और साझा भविष्य की भावना ले सके।