भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अरावली पर बयान: सरकार को सही कदम उठाने की जरूरत

भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अरावली पहाड़ियों के मुद्दे पर हरियाणा सरकार से उचित कदम उठाने की मांग की है। उन्होंने विधानसभा में इस विषय पर चर्चा की आवश्यकता पर जोर दिया और चेतावनी दी कि यदि सरकार ने सही स्टैंड नहीं लिया, तो अरावली का जंगल समाप्त हो जाएगा। हुड्डा ने विकास के नाम पर अरावली को खत्म करने की साजिश की भी आलोचना की। जानें इस मुद्दे पर उनके विचार और सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के प्रभाव के बारे में।
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भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अरावली पर बयान: सरकार को सही कदम उठाने की जरूरत

अरावली पहाड़ियों पर बढ़ती राजनीतिक हलचल

भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अरावली पर बयान: सरकार को सही कदम उठाने की जरूरत

भूपेंद्र सिंह हुड्डा


अरावली पहाड़ियों के मुद्दे पर देश में राजनीतिक चर्चाएं तेज हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद से कई लोग इसका विरोध कर रहे हैं। इस संदर्भ में हरियाणा विधानसभा में नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा कि वह अरावली के मुद्दे पर विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाना चाहते थे, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं दी गई।


हुड्डा ने बताया कि अरावली का मुद्दा हरियाणा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसका प्रभाव सबसे अधिक हरियाणा पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को सदन में यह स्पष्ट करना चाहिए था कि उनका आगे का रुख क्या होगा और सुप्रीम कोर्ट में उनकी स्थिति क्या होगी।


‘सरकार को कोर्ट में अपनी बात रखनी चाहिए’


हुड्डा ने कहा कि हरियाणा सरकार को सदन में इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने सही तरीके से स्टैंड नहीं लिया, तो अरावली का जंगल समाप्त हो जाएगा और प्रदूषण में वृद्धि होगी। यह एक गंभीर मामला है और सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात मजबूती से रखनी चाहिए।


‘विकास के नाम पर अरावली को खत्म करने की साजिश’


यह पहली बार नहीं है जब भूपेंद्र हुड्डा ने अरावली के मुद्दे पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है। हाल ही में उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि अरावली पर हमले बंद करें, बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ न करें। अरावली पर्वत केवल एक रेखा नहीं, बल्कि हमारी जीवनरेखा है। इसे विकास के नाम पर खत्म करने की साजिश की जा रही है।



‘यह विकास नहीं, विनाश को आमंत्रण’


उन्होंने आगे कहा कि 100 मीटर से ऊंचे पहाड़ों को अरावली मानने का नया नियम, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले वन क्षेत्रों को खनन माफियाओं के हवाले करने का एक तरीका है। यह विकास नहीं, बल्कि विनाश को आमंत्रण है। अरावली हमारी प्राकृतिक सुरक्षा है, इसे बर्बाद नहीं होने देंगे।


अरावली की नई परिभाषा पर लोगों की नाराजगी


सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार किया है जिसमें कहा गया है कि केवल 100 मीटर से ऊंचे पर्वतों को अरावली का हिस्सा माना जाएगा। इस निर्णय के बाद लोग इसे पर्यावरण के लिए खतरनाक मान रहे हैं। कोर्ट ने खनन को रोकने के उद्देश्य से अरावली पहाड़ियों की परिभाषा को संशोधित किया है। नई परिभाषा के अनुसार, 100 मीटर से ऊंची जमीन को अरावली का हिस्सा माना जाएगा। इस फैसले के बाद से यह मुद्दा गरमा गया है और सोशल मीडिया पर 'सेव अरावली' अभियान चल रहा है।