भारतीय हेलिकॉप्टरों को मिली नई तकनीक, जर्मनी के साथ ऐतिहासिक समझौता

भारत और जर्मनी के बीच एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौता हुआ है, जिसमें भारतीय हेलिकॉप्टरों को नई LiDAR तकनीक मिलेगी। यह तकनीक खराब मौसम में भी पायलट को सुरक्षित उड़ान भरने में मदद करेगी। समझौते के तहत, तकनीक का निर्माण भारत में होगा, जिससे आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा। यह कदम न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में भारत की स्थिति को भी सुदृढ़ करेगा।
 | 
भारतीय हेलिकॉप्टरों को मिली नई तकनीक, जर्मनी के साथ ऐतिहासिक समझौता

भारतीय वायुसेना के लिए एक नई शुरुआत

भारतीय हेलिकॉप्टरों को मिली नई तकनीक, जर्मनी के साथ ऐतिहासिक समझौता

HAL–HENSOLDT ने हेलिकॉप्टर सेफ्टी सिस्टम के लिए ऐतिहासिक समझौता

अक्सर हम सुनते हैं कि खराब मौसम या घने कोहरे के कारण हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। पहाड़ों की ऊंचाइयों या रेगिस्तान की धूल में पायलट के लिए सब कुछ देख पाना मुश्किल होता है। लेकिन अब भारतीय वायुसेना की यह समस्या जल्द ही समाप्त होने वाली है। भारतीय हेलिकॉप्टरों को एक ऐसी ‘अदृश्य आंख’ मिलने जा रही है, जो धूल, धुंध और अंधेरे में भी स्पष्टता से देख सकेगी।

पिछले 48 घंटे भारत की रक्षा तैयारियों के लिए महत्वपूर्ण रहे हैं। नई दिल्ली में एक उच्च स्तरीय बैठक और उसके बाद दुबई एयरशो 2025 में एक ऐतिहासिक समझौता, यह दर्शाता है कि भारत और जर्मनी की साझेदारी अब रक्षा क्षेत्र में एक नए चरण में प्रवेश कर चुकी है।


कोहरे और धूल में भी नजर रखेगा नया सिस्टम

कोहरे और धूल में भी मुस्तैद रहेगी नजर

दुबई एयरशो 2025 में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और जर्मनी की प्रमुख कंपनी HENSOLDT के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है। सीधे शब्दों में कहें तो जर्मनी अपनी अत्याधुनिक ‘LiDAR-आधारित ऑब्सटेकल अवॉइडेंस सिस्टम’ (OAS) तकनीक भारत को प्रदान कर रहा है।

यह तकनीक किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसमें लगे विशेष सेंसर 1,000 मीटर (1 किलोमीटर) दूर से ही पायलट को चेतावनी देंगे कि सामने कोई पतला बिजली का तार, खंभा या टावर तो नहीं है। जब पायलट धूल, बर्फ या धुंध में उड़ान भरता है, तब यह सिस्टम एक ‘सिंथेटिक विज़न’ या 3D नक्शा तैयार करता है।

इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि हमारे हेलिकॉप्टर ‘सीएफआईटी’ (CFIT) यानी अनजाने में जमीन या पहाड़ से टकराने वाले हादसों से सुरक्षित रहेंगे। शुरुआत में यह सिस्टम भारत के सबसे घातक हेलिकॉप्टरों— ‘प्रचंड’ (LCH) और ‘ध्रुव’ (ALH) में लगाया जाएगा.


भारत में बनेगा तकनीक का निर्माण केंद्र

अब दुनिया खरीदेगी भारत का बना सिस्टम

यह समझौता केवल तकनीक खरीदने तक सीमित नहीं है, बल्कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस समझौते के तहत, जर्मनी की यह कंपनी न केवल अपनी तकनीक देगी, बल्कि इसका निर्माण भी अब भारत में ही होगा।

HAL को इस तकनीक के निर्माण, इंटीग्रेशन और भविष्य में इसे अपग्रेड करने का पूरा अधिकार (IPR) मिल गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत अब इस तकनीक का उपयोग न केवल अपनी सेना के लिए करेगा, बल्कि इसे अन्य देशों को निर्यात भी कर सकेगा।


कोरवा में बनेगा नया एवियोनिक्स हब

यूपी के कोरवा में बनेगा एवियोनिक्स का नया हब

इस समझौते का सीधा प्रभाव भारत के घरेलू उद्योग पर भी पड़ेगा। उत्तर प्रदेश के अमेठी स्थित HAL की कोरवा यूनिट इस पूरे प्रोजेक्ट का उत्पादन केंद्र बनेगी। यूपी डिफेंस कॉरिडोर के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है।

जब इतनी हाई-टेक प्रणाली का निर्माण कोरवा में होगा, तो वहां एयरोस्पेस सेक्टर में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। साथ ही, कई छोटी और मध्यम वर्गीय कंपनियों (MSMEs) को इस सप्लाई चेन से जुड़ने का मौका मिलेगा, जिससे स्थानीय स्तर पर तकनीकी विकास को गति मिलेगी।


रक्षा कूटनीति में बदलाव

दिल्ली से दुबई तक, बदल रही है रक्षा कूटनीति

इस समझौते की नींव दुबई एयरशो से एक दिन पहले नई दिल्ली में रखी गई थी। 18 नवंबर को भारत और जर्मनी के बीच हुई ‘हाई डिफेंस कमिटी’ की बैठक में रक्षा संबंधों को गहरा करने पर सहमति बनी थी। भारत के रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह और जर्मन स्टेट सेक्रेटरी जेंस प्लॉटनर की अगुवाई में हुई इस बैठक में जर्मनी ने वादा किया है कि वह भारत के बड़े सैन्य अभ्यासों— ‘तरंग शक्ति’ और ‘मिलन 2026’ में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेगा।

विशेषज्ञ इसे पिछले तीन दशकों में दोनों देशों के बीच सबसे बड़ा रक्षा-औद्योगिक सहयोग मानते हैं। जर्मनी अपनी नई सुरक्षा नीति के तहत अब भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक प्रमुख साझेदार के रूप में देख रहा है। यह साझेदारी न केवल हमारी सीमाओं को सुरक्षित करेगी बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में भी स्थापित करेगी.