भारतीय सेना प्रमुख की अल्जीरिया यात्रा: वैश्विक रणनीतिक साझेदारी की ओर एक कदम

भारतीय थलसेना प्रमुख की महत्वपूर्ण यात्रा
भारतीय थलसेना के प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी अगले सप्ताह अल्जीरिया की आधिकारिक यात्रा पर जाने वाले हैं। यह उनकी पहली विदेश यात्रा होगी, जो ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद हो रही है। यह यात्रा इस बात का संकेत है कि भारतीय सेना अब केवल घरेलू सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि वैश्विक रणनीतिक साझेदारी में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है। राष्ट्रपति और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की हालिया अल्जीरिया यात्राओं ने इस दौरे के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया है।
अल्जीरिया का महत्व
अल्जीरिया, जो अफ्रीका और भूमध्यसागर क्षेत्र में चीन की बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, यहाँ चीन ने बुनियादी ढांचे, रेलवे, ऊर्जा परियोजनाओं और बंदरगाह विकास में अरबों डॉलर का निवेश किया है। चीनी कंपनियाँ अल्जीरिया की अधिकांश हाउसिंग और सड़क परियोजनाओं में शामिल हैं। इसके अलावा, अल्जीरिया ने चीन से ड्रोन और मिसाइल प्रणालियाँ भी खरीदी हैं। यह देश चीन के लिए पश्चिमी अफ्रीका और भूमध्यसागर के बीच एक रणनीतिक पुल का काम करता है।
भारत का रणनीतिक दृष्टिकोण
यदि भारत अफ्रीका और भूमध्यसागर क्षेत्र में चीन के प्रभाव को चुनौती देना चाहता है, तो अल्जीरिया उसके लिए एक स्वाभाविक साझेदार है। भारत यहाँ तीन प्रमुख तरीकों से चीनी प्रभाव को संतुलित कर सकता है। पहले, अल्जीरिया की सेनाओं के पास सोवियत/रूसी मूल के हथियार हैं, जिनका रखरखाव और प्रशिक्षण भारत आसानी से साझा कर सकता है। भारत अल्जीरियाई सेना को ऑपरेशनल एक्सपर्टीज़ में सहयोग दे सकता है।
दूसरे, अल्जीरिया गैस और तेल का एक बड़ा निर्यातक है, और यहाँ रेयर अर्थ मिनरल्स भी मौजूद हैं। भारत यहाँ दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा और खनिज आपूर्ति के लिए समझौते कर सकता है।
तीसरे, अल्जीरिया अफ्रीकी संघ और गुटनिरपेक्ष आंदोलन में एक प्रभावशाली भूमिका निभाता है। भारत और अल्जीरिया दोनों गुटनिरपेक्षता और दक्षिण-दक्षिण सहयोग के मूल्यों को साझा करते हैं, जिससे यह साझेदारी भारत को अफ्रीका में एक व्यापक रणनीतिक पहुँच प्रदान कर सकती है।
भारत-अल्जीरिया रक्षा संबंध
अल्जीरिया साहेल क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी अभियानों का नेतृत्व करता है, जो भारत की नो टॉलरेंस टू टेररिज़्म नीति के लिए महत्वपूर्ण है। दोनों सेनाओं के बीच संयुक्त अभ्यास और प्रशिक्षण से सहयोगी रक्षा ढांचा मजबूत होगा। इसके अलावा, भूमध्यसागर के दरवाज़े पर भारत की उपस्थिति चीन के प्रभाव को चुनौती देगी और यूरोप-अफ्रीका व्यापार मार्ग पर भारत की पकड़ को मजबूत करेगी।
जनरल द्विवेदी की अल्जीरिया यात्रा केवल रक्षा सहयोग का औपचारिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह उस रणनीतिक शतरंज का हिस्सा है जिसमें भारत और चीन अफ्रीका-भूमध्यसागर क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
भविष्य की संभावनाएँ
जहाँ चीन निवेश और ढाँचागत परियोजनाओं के जरिए अपनी जड़ें जमा चुका है, वहीं भारत रक्षा सहयोग, प्रशिक्षण और ऊर्जा साझेदारी के माध्यम से संतुलन साध सकता है। भारत-अल्जीरिया साझेदारी न केवल चीन के प्रभाव को कम करेगी, बल्कि भारत की अफ्रीका नीति को भी नई ऊर्जा देगी। यह दोनों देशों को साझा सुरक्षा और विकास के एजेंडे पर जोड़कर भविष्य की स्थिरता का मार्ग प्रशस्त करेगी।