भारतीय सेना के महत्वपूर्ण सैन्य अभ्यास: दिबांग शक्ति और त्रिशक्ति का महत्व

भारतीय सेना के दो प्रमुख अभ्यास
हाल ही में, भारतीय सेना ने पूर्वोत्तर भारत की दुर्गम घाटियों और हिमालयी ऊँचाइयों में दो महत्वपूर्ण सैन्य अभ्यास किए। इनमें से एक 'दिबांग शक्ति' अभ्यास अरुणाचल प्रदेश के दिबांग घाटी में और दूसरा त्रिशक्ति कोर का ऊँचाई पर मार्च सिक्किम में आयोजित किया गया। ये अभ्यास केवल शारीरिक क्षमता की परीक्षा नहीं थे, बल्कि सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण संदेश देने वाले थे।
दिबांग शक्ति अभ्यास की विशेषताएँ
'दिबांग शक्ति' अभ्यास, जो दिबांग घाटी के घने जंगलों और कठिन पर्वतीय भूगोल में आयोजित किया गया, भारतीय सेना की युद्ध तैयारी को दर्शाता है। इस दौरान सैनिकों ने जंगल युद्धकला, जीवित रहने की तकनीकें, और combat free fall जैसी जटिल गतिविधियाँ प्रदर्शित कीं। यह अभ्यास यह सिद्ध करता है कि सेना केवल पारंपरिक लड़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि बदलते सुरक्षा परिदृश्यों—जैसे घुसपैठ, आतंकवाद, और विशेष अभियानों—से निपटने में भी सक्षम है।
त्रिशक्ति अभ्यास का महत्व
त्रिशक्ति अभ्यास में, सैनिकों ने छह दिन-रात का ऊँचाई-मार्च किया, जो उनके मानव-शक्ति आधारित युद्ध कौशल को प्रदर्शित करता है। यह अभ्यास यह दर्शाता है कि भले ही सेना आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रही है, लेकिन युद्ध का अंतिम निर्णय मानव सहनशक्ति, धैर्य और टीमवर्क पर निर्भर करता है।
सामरिक दृष्टिकोण
इन दोनों अभ्यासों का सामरिक महत्व एक समग्र सुरक्षा दृष्टिकोण को दर्शाता है। 'दिबांग शक्ति' ने अत्याधुनिक तकनीक और समन्वित युद्धकला पर जोर दिया, जबकि त्रिशक्ति मार्च ने मानव सहनशक्ति और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी। यह अभ्यास चीन-भारत सीमा पर संवेदनशील क्षेत्रों में भारतीय सेना की तत्परता का संकेत है।
चीन और बांग्लादेश के संदर्भ में
चीन की दावेदारी और उसकी उकसाने वाली गतिविधियाँ भारत की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय हैं। दिबांग घाटी में युद्ध और जंगल युद्धकला का अभ्यास यह दर्शाता है कि भारतीय सेना किसी भी अप्रत्याशित खतरे का सामना करने के लिए तैयार है। वहीं, सिक्किम में त्रिशक्ति कोर का मार्च यह स्पष्ट करता है कि भारतीय सेना केवल तकनीक पर निर्भर नहीं है।
भारत की पूर्वोत्तर नीति
'दिबांग शक्ति' और त्रिशक्ति का ऊँचाई-मार्च भारत की पूर्वोत्तर नीति के सामरिक स्तंभ हैं। ये अभ्यास चीन की विस्तारवादी नीतियों और बांग्लादेश की अस्थिर राजनीतिक प्रवृत्तियों को स्पष्ट संकेत देते हैं कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा में कभी ढिलाई नहीं बरतेगा।