भारतीय सेना की नई रणनीतियाँ: संयुक्तता और तकनीक का समावेश

भारतीय सेना ने हाल ही में कोलकाता में आयोजित कंबाइंड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस 2025 में महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं, जिसमें तीन संयुक्त सैन्य स्टेशन स्थापित करने और शिक्षा शाखाओं के विलय का प्रस्ताव शामिल है। ये कदम संसाधनों के बेहतर उपयोग और तीनों सेनाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए उठाए गए हैं। भारतीय सेना की नई रणनीति में संयुक्तता और तकनीक का समावेश किया गया है, जो भविष्य की बहु-आयामी चुनौतियों का सामना करने में सहायक होगा। इस बदलाव से भारत की सैन्य क्षमता और भी मजबूत होगी।
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भारतीय सेना की नई रणनीतियाँ: संयुक्तता और तकनीक का समावेश

भारतीय सेना की वैश्विक पहचान

भारतीय सेना की वीरता केवल उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं है, बल्कि विश्वभर में उनके साहस का सम्मान किया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों तक, भारतीय सैनिकों ने अनुशासन और बलिदान का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसने वैश्विक सैन्य इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी है। चाहे वह कारगिल की ऊँचाइयाँ हों या सोमालिया और कांगो जैसे देशों में शांति अभियानों की चुनौतियाँ, भारतीय सेना ने हर मोर्चे पर अपनी क्षमता साबित की है। इसीलिए, जब भारत अपने सैन्य ढाँचे में एकता और समेकन की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय ले रहा है, तो पूरी दुनिया इस बदलाव को ध्यान से देख रही है.


कंबाइंड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस 2025 के निर्णय

कोलकाता में आयोजित कंबाइंड कमांडर्स कॉन्फ्रेंस 2025 में लिए गए ऐतिहासिक निर्णय भारतीय सेना की भविष्य की दिशा को स्पष्ट करते हैं। पहली बार, देश में तीन संयुक्त सैन्य स्टेशन स्थापित करने और थलसेना, नौसेना और वायुसेना की शिक्षा शाखाओं का विलय कर त्रि-सेवाएँ शिक्षा कोर बनाने का निर्णय लिया गया है। इन पहलों का मुख्य उद्देश्य संसाधनों का अधिकतम उपयोग, मानव बल का अनुकूलन और तीनों सेनाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करना है.


संयुक्त सैन्य स्टेशन का महत्व

अब तक, भारतीय सेनाओं के ठिकाने अलग-अलग सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार संचालित होते रहे हैं। थलसेना, नौसेना और वायुसेना अपनी-अपनी सुविधाओं के आधार पर लॉजिस्टिक, भंडारण, आपूर्ति और मरम्मत का कार्य करती थीं। इससे संसाधनों की पुनरावृत्ति होती थी और खर्च बढ़ता था। संयुक्त सैन्य स्टेशन इस व्यवस्था को पूरी तरह बदल देंगे। एकीकृत ठिकानों का अर्थ होगा कि सभी प्रकार की सुविधाएँ साझा होंगी और उनका संचालन किसी एक सेवा के नेतृत्व में होगा, जिससे खर्च में भारी कटौती होगी.


शिक्षा शाखाओं का विलय

दूसरा महत्वपूर्ण निर्णय तीनों सेनाओं की शिक्षा शाखाओं का विलय है। अब तक, थलसेना, नौसेना और वायुसेना अपने-अपने शैक्षिक ढाँचों के तहत प्रशिक्षण देती थीं, जिससे पाठ्यक्रम और दृष्टिकोण में भिन्नता होती थी। त्रि-सेवाएँ शिक्षा कोर के गठन से यह स्थिति बदलेगी, जिससे प्रशिक्षण एकरूप होगा और सैनिकों में संयुक्त संस्कृति का विकास होगा.


भविष्य की चुनौतियाँ

भारतीय सेना की नवीनतम रणनीति का आधार संयुक्तता और प्रौद्योगिकी-प्रधान युद्धकला है। सम्मेलन में यह स्वीकार किया गया कि भविष्य का युद्ध केवल भूमि, आकाश या समुद्र तक सीमित नहीं होगा। आज के खतरे बहु-आयामी हैं—साइबर स्पेस, सूचना युद्ध और अंतरिक्ष भी युद्धक्षेत्र बन चुके हैं। इसलिए, सेना ने नए सिद्धांत में कुछ स्पष्ट प्राथमिकताएँ तय की हैं.


भारत की भौगोलिक स्थिति

भारत की भौगोलिक स्थिति उसे विशिष्ट बनाती है। उत्तरी सीमा पर चीन और पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान जैसी चुनौतियाँ हमेशा मौजूद हैं। इन परिस्थितियों में संयुक्त सैन्य स्टेशन संसाधनों के साझा उपयोग और संकट की स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करेंगे. साथ ही, शिक्षा कोर का विलय तीनों सेनाओं को एक साझा दृष्टिकोण देगा.


सीडीएस जनरल अनिल चौहान का बयान

‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने सशस्त्र बलों की प्रतिबद्धता दोहराई कि वे चुस्त, आत्मनिर्भर और भविष्य के लिए तैयार रहने के लिए निरंतर बदलाव करते रहेंगे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सुधारों को एक सतत प्रक्रिया के रूप में संस्थागत बनाना जरूरी है, ताकि सशस्त्र बलों को लगातार जटिल होते वैश्विक माहौल में चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने के लिए तैयार किया जा सके.