भारतीय सांसदों का संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रतिनिधित्व, न्यूयॉर्क पहुंचे

भारतीय सांसदों का एक बहु-पार्टी प्रतिनिधिमंडल न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 80वीं बैठक में भाग लेने के लिए पहुंचा है। इस दल का नेतृत्व बीजेपी सांसद पी पी चौधरी कर रहे हैं। प्रतिनिधिमंडल में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसद शामिल हैं, जो भारत की संसदीय विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। सांसद पुरंदेश्वरी ने महासभा के महत्व पर प्रकाश डाला है, जहां वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होती है। जानें इस दौरे का महत्व और भारत की आवाज उठाने का अवसर।
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भारतीय सांसदों का न्यूयॉर्क दौरा

भारतीय सांसदों का एक बहु-पार्टी प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र महासभा की 80वीं बैठक के लिए न्यूयॉर्क पहुंच चुका है। इस दल का नेतृत्व बीजेपी सांसद पी पी चौधरी कर रहे हैं, और यह समूह 14 अक्टूबर तक न्यूयॉर्क में रहेगा।


प्रतिनिधिमंडल में शामिल सांसद

चौधरी के साथ इस प्रतिनिधिमंडल में भाजपा के अनिल बलूनी, निशिकांत दुबे, उज्ज्वल निकम, कांग्रेस के विवेक तन्खा, कुमारी शैलजा, समाजवादी पार्टी के राजीव राय और आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन जैसे सांसद शामिल हैं। अधिकारियों के अनुसार, इस दल में कुल 15 सांसद हैं।


महासभा का महत्व

सांसद पुरंदेश्वरी ने कहा, "संयुक्त राष्ट्र महासभा एक महत्वपूर्ण मंच है जहां सदस्य देश शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार, विकास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हैं। मैं अपने देश का प्रतिनिधित्व करने और इन महत्वपूर्ण विचार-विमर्शों में योगदान देने के लिए उत्सुक हूं।"


भारत की आवाज उठाने का अवसर

एक आधिकारिक प्रेस रिलीज के अनुसार, यह अनौपचारिक प्रतिनिधिमंडल सांसदों को संयुक्त राष्ट्र के सत्रों में भाग लेने, भारत के स्थायी मिशन के साथ बातचीत करने और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भारत की लोकतांत्रिक आवाज उठाने का अवसर प्रदान करता है। यह पहल भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका को दर्शाती है।


संयुक्त राष्ट्र महासभा का महत्व

ये सांसद भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में भाग लेने के लिए भेजे गए हैं, जो सभी 193 सदस्य देशों की समान भागीदारी वाली एक महत्वपूर्ण संस्था है। यहां वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होती है, प्रस्ताव पारित किए जाते हैं और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान किया जाता है। भारत का UNGA में संसदीय प्रतिनिधिमंडल भेजने का एक लंबा इतिहास रहा है, जो 2004 में समाप्त हो गया था।