भारतीय वायुसेना के लिए राफेल विमानों की आवश्यकता: सुरक्षा और रणनीति का संतुलन

राफेल विमानों की मांग का महत्व
भारतीय वायुसेना (IAF) के लिए अतिरिक्त राफेल लड़ाकू विमानों की आवश्यकता केवल तकनीकी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्तमान में, मिग-21 जैसे पुराने विमानों का धीरे-धीरे सेवा से हटना वायुसेना के स्क्वाड्रनों की संख्या को कम कर रहा है, जबकि पाकिस्तान और चीन अपने वायुसेना बेड़े को आधुनिक तकनीक से सुसज्जित कर रहे हैं। पाकिस्तान ने पहले ही जे-10सी और एफ-16 जैसे उन्नत विमानों पर निर्भरता बढ़ा दी है, और चीन के पास अत्याधुनिक 5वीं पीढ़ी के जे-20 फाइटर हैं। ऐसे में, शक्ति संतुलन बनाए रखना भारत के लिए आवश्यक हो गया है। खासकर भारत-पाक और भारत-चीन सीमाओं पर बढ़ते तनाव को देखते हुए, वायु श्रेष्ठता केवल रक्षा के लिए नहीं, बल्कि रणनीतिक दबदबे के लिए भी आवश्यक है.
राफेल की क्षमताएँ और अधिग्रहण की आवश्यकता
राफेल लड़ाकू विमानों की विशेषताएँ उन्हें लंबी दूरी से सटीक हमले करने में सक्षम बनाती हैं, साथ ही ये मल्टी-रोल मिशनों जैसे एयर डिफेंस, ग्राउंड अटैक और मरीन ऑपरेशन्स में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। अतिरिक्त राफेल विमानों का अधिग्रहण भारतीय वायुसेना को दो मोर्चों पर एक साथ ऑपरेशन करने की क्षमता प्रदान करेगा, जो वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति में अनिवार्य है। सरकार को इस अधिग्रहण को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि किसी भी संभावित संकट में भारत तात्कालिक और निर्णायक प्रतिक्रिया देने में सक्षम हो सके.
IAF की खरीद प्रक्रिया
IAF ने फ्रांस से अतिरिक्त राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए सरकार-से-सरकार (G2G) समझौते पर जोर दिया है। यह कदम लंबे समय से लंबित 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) परियोजना का हिस्सा है, जिसमें अधिकांश विमान देश में विदेशी सहयोग से निर्मित किए जाने हैं. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, वायुसेना अगले एक-दो महीनों में रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) के समक्ष ‘स्वीकृति आवश्यकता’ (Acceptance of Necessity– AoN) के लिए MRFA प्रस्ताव पेश करेगी.
वर्तमान स्क्वाड्रन स्थिति
IAF का कहना है कि अतिरिक्त राफेल विमानों की तत्काल आवश्यकता है ताकि लड़ाकू स्क्वाड्रनों की संख्या में हो रही कमी को रोका जा सके। वर्तमान में, वायुसेना के पास केवल 31 स्क्वाड्रन हैं, जो अगले महीने मिग-21 विमानों की सेवानिवृत्ति के बाद घटकर 29 रह जाएंगे। जबकि अधिकृत संख्या 42.5 स्क्वाड्रन है, जो चीन और पाकिस्तान के संयुक्त खतरे से निपटने के लिए आवश्यक मानी जाती है.
ऑपरेशन सिंदूर और भविष्य की चुनौतियाँ
मई 2025 में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान राफेल विमानों का सीमापार लंबी दूरी के हमलों में व्यापक उपयोग हुआ। पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने 6 IAF विमान गिराए, जिसमें 3 राफेल शामिल थे, लेकिन भारत ने इस दावे को नकार दिया। चीन निकट भविष्य में पाकिस्तान को कम-से-कम 40 J-35A पाँचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ जेट देने की योजना बना रहा है, जो क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को और जटिल बना सकता है.
MRFA परियोजना और दीर्घकालिक योजनाएँ
MRFA परियोजना पिछले 7–8 वर्षों से लंबित है, जिसकी प्रारंभिक लागत अनुमानित ₹1.2 लाख करोड़ से अधिक थी। IAF के सामने विकल्प है कि राफेल की अतिरिक्त खरीद G2G मार्ग से हो, क्योंकि यह प्रक्रिया तेज और आर्थिक होगी। इसके अलावा, 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों का अधिग्रहण करने के लिए रूस के सुखोई-57 और अमेरिका के F-35 पर विचार किया जा रहा है, लेकिन अभी कोई औपचारिक बातचीत शुरू नहीं हुई है.
IAF की भविष्य की रणनीतियाँ
IAF के लिए मौजूदा समय में दोहरी चुनौती है— गिरते स्क्वाड्रन स्तर और पड़ोसी देशों की बढ़ती वायु शक्ति। अतिरिक्त राफेल की खरीद एक त्वरित समाधान दे सकती है, जबकि दीर्घकाल में MRFA, 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान और AMCA जैसी परियोजनाएँ वायुसेना की तकनीकी बढ़त बनाए रखने में मदद करेंगी.
वायुसेना प्रमुख का बयान
IAF प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने कहा कि किसी युद्ध की समाप्ति महत्वपूर्ण होती है और युद्ध का लक्ष्य हासिल करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उद्देश्य पूरा हो गया और आतंकवादियों को सबक सिखाया गया। उनका उद्देश्य स्पष्ट था कि आतंकवादियों को ऐसा सबक सिखाना था कि वे कुछ भी करने से पहले दो बार सोचें.