भारतीय वायुसेना की ऐतिहासिक भूमिका: बडगाम युद्ध की कहानी
बडगाम युद्ध का ऐतिहासिक महत्व
भारतीय वायुसेना ने अपने इतिहास से एक महत्वपूर्ण घटना साझा की है, जिसमें बताया गया है कि कैसे स्पिटफायर, हार्वर्ड और टेम्पेस्ट जैसे लड़ाकू विमानों ने 1947 में बडगाम युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों को नष्ट किया। यह युद्ध, जो जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले में हुआ, प्रथम भारत-पाक युद्ध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
वायुसेना की कार्रवाई
वायुसेना ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बताया कि 3 नवंबर 1947 को बडगाम में युद्ध के दौरान, जब कश्मीर में अराजकता फैली हुई थी, भारतीय वायुसेना ने घाटी की सुरक्षा के लिए आसमान में उड़ान भरी। स्पिटफायर, हार्वर्ड और टेम्पेस्ट विमानों ने दुश्मन के ठिकानों पर जोरदार हमले किए और रसद गिराकर स्थिति को अपने पक्ष में किया।
लड़ाई का विवरण
इस पोस्ट में एक पोस्टर भी शामिल था, जिसमें बताया गया कि भारतीय वायुसेना ने निरंतर आक्रामकता और आपूर्ति अभियानों के माध्यम से फंसे सैनिकों और शरणार्थियों की सहायता की। स्पिटफायर विमानों ने श्रीनगर एयरफील्ड की रक्षा करते हुए स्थिति को बदल दिया।
सैन्य की स्थिति
पोस्ट में कहा गया है कि बडगाम में भारतीय सैनिकों की स्थिति ने श्रीनगर एयरफील्ड की सुरक्षा सुनिश्चित की, जो भारतीय सेना के संचालन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी। यह लड़ाई साहस और बलिदान का प्रतीक बनी, जिसने संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया।
कबायली लश्करों का हमला
इस लड़ाई के दौरान, भारतीय सेना की 4 कुमाउं बटालियन को बडगाम के पास तैनात किया गया था। उनके कमांडर मेजर सोमनाथ शर्मा थे, जिन्हें बाद में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। कबायली लश्कर ने लगभग 1000 की संख्या में बडगाम की ओर बढ़ते हुए अचानक हमला किया।
वायुसेना की निर्णायक भूमिका
इस संघर्ष में भारतीय वायुसेना की भूमिका केवल सहायक नहीं, बल्कि निर्णायक रही। वायु शक्ति ने फंसे हुए सैनिकों तक आपूर्ति पहुंचाई और दुश्मन के ठिकानों पर हमले किए।
युद्ध का परिणाम
इस लड़ाई में भारतीय पक्ष ने 15-22 सैनिकों को खोया, जबकि कबायली दलों को लगभग 200 मौतें और 300 से अधिक घायल हुए। इस लड़ाई ने बडगाम और श्रीनगर एयरफील्ड को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
बडगाम युद्ध का संदेश
बडगाम की लड़ाई ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय वायुसेना केवल सहायक बल नहीं, बल्कि एक रणनीतिक शक्ति है। यह लड़ाई हमें सिखाती है कि राष्ट्र की रक्षा केवल शस्त्रों से नहीं, बल्कि मनोबल और समन्वय से होती है।
