भारतीय रुपया: आरबीआई की रिपोर्ट में गिरावट के कारणों का विश्लेषण

भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रहा है, जिससे निवेशकों में चिंता बढ़ रही है। आरबीआई की दिसंबर बुलेटिन में रुपये की गिरावट के पीछे के कारणों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे विदेशी निवेश में कमी और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की अनिश्चितता ने रुपये को प्रभावित किया है। जानें इस स्थिति का अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ सकता है और आरबीआई ने क्या कहा है।
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भारतीय रुपया: आरबीआई की रिपोर्ट में गिरावट के कारणों का विश्लेषण

भारतीय रुपया कमजोर हो रहा है

भारतीय रुपया: आरबीआई की रिपोर्ट में गिरावट के कारणों का विश्लेषण

भारतीय रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसकी स्थिति गिरती जा रही है। मंगलवार को शुरुआती कारोबार में, रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पांच पैसे गिरकर 89.73 के स्तर पर पहुंच गया। इस गिरावट पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। केंद्रीय बैंक ने अपने दिसंबर बुलेटिन में रुपये और डॉलर के बारे में कई बातें बताई हैं।

आरबीआई का बयान:
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, नवंबर में भारतीय रुपया वास्तविक रूप से स्थिर रहा। हालांकि, सामान्य तौर पर रुपये में थोड़ी गिरावट आई, लेकिन भारत में कीमतें अपने बड़े व्यापारिक साझेदार देशों की तुलना में अधिक होने के कारण इसका प्रभाव संतुलित रहा। अमेरिकी डॉलर की मजबूती, विदेशी निवेशकों की कमी और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के संबंध में अनिश्चितता के कारण नवंबर में रुपये की स्थिति कमजोर हुई।

बुलेटिन में कहा गया है कि नवंबर में रुपये में उतार-चढ़ाव पिछले महीने की तुलना में कम रहा और यह कई अन्य मुद्राओं की तुलना में अधिक स्थिर रहा। 19 दिसंबर तक, रुपये में नवंबर के अंत के स्तर से लगभग 0.8 प्रतिशत की गिरावट आई है। वित्त वर्ष 2025-26 में 18 दिसंबर तक, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारत से अधिक धन निकाला है, विशेषकर शेयर बाजार से। पिछले दो महीनों में निवेश आने के बाद, दिसंबर में यह फिर से नकारात्मक हो गया।

आरबीआई ने बताया कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के संबंध में अनिश्चितता और देश में शेयरों की ऊंची कीमतों के कारण निवेशक सतर्क हो गए हैं, जिससे हाल के महीनों में विदेशी निवेश में कमी आई है। अप्रैल से अक्टूबर 2025 के बीच, बाह्य वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) के रजिस्ट्रेशन में कमी आई है, जिसका अर्थ है कि विदेशों से धन जुटाने की गति धीमी रही। हालांकि, जो कर्ज लिया गया, उसका बड़ा हिस्सा देश में विकास कार्यों और पूंजी खर्च के लिए उपयोग किया गया।

इसके अतिरिक्त, आरबीआई ने अपने बुलेटिन में कहा कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत का चालू खाता घाटा पिछले वर्ष की तुलना में कम रहा, जिसका कारण वस्तुओं के व्यापार में घाटे का कम होना, सेवाओं के निर्यात में मजबूती और विदेश में काम कर रहे भारतीयों द्वारा भेजा गया धन रहा। हालांकि, देश में आने वाला विदेशी निवेश चालू खाते की आवश्यकताओं से कम रहा, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कुछ कमी आई।

फिर भी, आरबीआई के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त है, जो 11 महीने से अधिक के आयात को कवर कर सकता है। इसके अलावा, यह देश के कुल विदेशी कर्ज के 92 प्रतिशत से अधिक को भी कवर करता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है।