भारतीय राजनीति में सनातन धर्म पर विवाद: कमल हासन और जितेंद्र आव्हाड़ के बयान
हाल ही में कमल हासन और जितेंद्र आव्हाड़ के सनातन धर्म के खिलाफ दिए गए बयानों ने भारतीय राजनीति में विचारधारात्मक संघर्ष को फिर से उजागर किया है। इन बयानों पर तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं, जिससे यह सवाल उठता है कि कुछ नेता बार-बार सनातन धर्म को निशाना क्यों बना रहे हैं। क्या यह तात्कालिक राजनीतिक लाभ का साधन बनता जा रहा है? इस लेख में हम इन बयानों के संदर्भ और उनके प्रभाव पर चर्चा करेंगे।
Aug 5, 2025, 14:39 IST
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भारतीय राजनीति में विचारधारात्मक संघर्ष
हाल ही में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता जितेंद्र आव्हाड़ और अभिनेता से नेता बने कमल हासन के सनातन धर्म के खिलाफ दिए गए बयानों ने भारतीय राजनीति में विचारधारात्मक टकराव को फिर से उजागर किया है। इन बयानों पर न केवल राजनीतिक दलों, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों से भी तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। यह सवाल उठता है कि कुछ नेता बार-बार सनातन धर्म को निशाना क्यों बना रहे हैं? क्या यह केवल तात्कालिक राजनीतिक लाभ का साधन बनता जा रहा है?
सनातन धर्म को संकीर्ण धार्मिक व्यवस्था के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह एक व्यापक और लचीला जीवनदर्शन है, जो सहिष्णुता और विविधता को महत्व देता है। यह केवल पूजा पद्धतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र— दर्शन, विज्ञान, कला, और सामाजिक आचरण में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसलिए इसे 'सनातन' या शाश्वत कहा गया है। कमल हासन और जितेंद्र आव्हाड़ जैसे नेताओं के बयान केवल सुर्खियां बटोरने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह तुष्टिकरण की राजनीति का भी परिचायक हैं। इन बयानों का समय और संदर्भ भी महत्वपूर्ण है। हाल ही में मालेगांव विस्फोट मामले में अदालत की टिप्पणी कि 'कोई हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता' कुछ राजनीतिक वर्गों को चुभ गई है।
कुछ दलों ने 'भगवा आतंकवाद' जैसे शब्दों का उपयोग कर एक वैकल्पिक नैरेटिव बनाने की कोशिश की थी, ताकि इस्लामी आतंकवाद के मुकाबले 'हिंदू चरमपंथ' की धारणा प्रस्तुत की जा सके। जब न्यायपालिका ऐसे मामलों में आरोपियों को संदेह का लाभ देकर मुक्त करती है या धार्मिक पहचान को आतंकवाद से जोड़ने की बात को अनुचित बताती है, तो यह नैरेटिव ढहने लगता है। ऐसे में कुछ नेता सनातन धर्म पर हमला करने लगते हैं। एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या सनातन धर्म की आलोचना का अर्थ धर्म के खिलाफ होना है? यदि आलोचना सामाजिक कुरीतियों के प्रति है, तो वह वैचारिक बहस का हिस्सा हो सकती है। लेकिन यदि यह द्वेषपूर्ण भाषा और सांस्कृतिक अपमान का रूप ले ले, तो यह सामाजिक समरसता के लिए खतरा बन जाती है।
वास्तव में, आज धर्म के भीतर सुधार की स्वस्थ बहस की आवश्यकता है, न कि इसे राजनीतिक लाभ के लिए निशाना बनाने की। कमल हासन और जितेंद्र आव्हाड़ जैसे नेताओं को यह समझना होगा कि भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती इसकी विविधता में है और सनातन धर्म इस विविधता की नींव है। जब कोई नेता इसकी आलोचना करता है, तो वह न केवल बहुसंख्यक समाज की आस्था को आहत करता है, बल्कि समाज में ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा देता है। राजनीति में वैचारिक भिन्नता होनी चाहिए, लेकिन किसी धर्म को कलंकित करके राजनीति करना, लोकतांत्रिक भारत में न तो नैतिक रूप से उचित है और न ही दीर्घकालिक रणनीति के रूप में सफल।
कमल हासन और जितेंद्र आव्हाड़ के बयानों की बात करें तो, मक्कल निधि मय्यम पार्टी के प्रमुख कमल हासन ने कहा है कि शिक्षा ही एकमात्र ऐसा हथियार है जो 'निरंकुशता और सनातन धर्म की बेड़ियों को तोड़ सकती है'। हाल ही में राज्यसभा के सदस्य के रूप में शपथ लेने वाले कमल हासन ने छात्रों से कहा, 'किसी और चीज पर हाथ मत रखना, क्योंकि तुम जीत नहीं सकते; क्योंकि बहुसंख्यक तुम्हें हरा देंगे, बहुसंख्यक मूर्ख तुम्हें हरा देंगे और समझदारी (ज्ञान) हार जाएगी।' वहीं जितेंद्र आव्हाड़ ने कहा है कि 'सनातन ने भारत को बर्बाद कर दिया है।'
दूसरी ओर, विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने इन दोनों नेताओं की 'सनातन' पर विवादास्पद टिप्पणियों की आलोचना करते हुए उन पर हिंदू समाज को बदनाम करने का आरोप लगाया है। विहिप के राष्ट्रीय महासचिव सुरेन्द्र जैन ने कहा कि जो लोग सनातन के बारे में ऐसी बातें करते हैं, वे या तो 'शरारती' हैं या 'मासूम' हैं। उन्होंने कहा, 'कमल हासन मासूम नहीं हो सकते। वह जानबूझकर हिंदू समाज को बदनाम करने के एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं।' उन्होंने यह भी कहा कि कमल हासन और जितेंद्र आव्हाड़, दोनों 'एक ही मानसिकता' के हैं। सुरेन्द्र जैन ने कहा, 'आप में सनातन के बारे में इतना कहने का साहस है क्योंकि सनातन दयालु है और हर तरह के विरोध और असहमति की अनुमति देता है, लेकिन किसी भी सभ्य समाज में अपमानजनक भाषा स्वीकार्य नहीं है।'