भारतीय न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता: नागरिकों की निराशा का कारण

भारतीय लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट को अंतिम आशा का केंद्र माना जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में नागरिकों में निराशा बढ़ी है। न्याय में देरी, संवेदनशील मुद्दों पर अनिश्चितता और जन-न्याय की कमी जैसे कारण इस निराशा के पीछे हैं। न्यायपालिका को सुधार की आवश्यकता है ताकि नागरिकों का विश्वास बहाल किया जा सके। इस लेख में न्यायिक सुधार के महत्व और आवश्यकताओं पर चर्चा की गई है।
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भारतीय न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता: नागरिकों की निराशा का कारण

भारतीय लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका

भारतीय लोकतंत्र में, सुप्रीम कोर्ट को अंतिम आशा का प्रतीक माना जाता है। यह संस्था संविधान की रक्षा करते हुए न केवल कानून की व्याख्या करती है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का भी कार्य करती है। हालाँकि, हाल के वर्षों में आम जनता में एक गहरी निराशा देखने को मिल रही है। यह सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है।


इसका एक प्रमुख कारण न्याय में देरी है। लंबित मामलों का बोझ इतना बढ़ गया है कि गरीब और सामान्य नागरिकों को न्याय पाने में कई पीढ़ियाँ लग जाती हैं। यह कहावत, 'न्याय में देरी, न्याय से इंकार है', अब न्यायपालिका की वास्तविकता बनती जा रही है।


सुप्रीम कोर्ट की चुनौतियाँ

दूसरा कारण है सार्वजनिक हित के मुद्दों पर अनिश्चितता। तीसरा पहलू है स्वतः संज्ञान लेने में चयनात्मकता। सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में स्वतः संज्ञान लेती है, लेकिन कई संवेदनशील सामाजिक समस्याओं पर इसकी सक्रियता गायब रहती है। उदाहरण के लिए, हर साल लगभग पाँच लाख बहन-बेटियों का गायब होना, धर्मांतरण या बलात्कारी धर्म परिवर्तन जैसी समस्याओं पर अदालत की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता। जब आम नागरिक के लिए जीवन और सुरक्षा जैसे मूलभूत मुद्दे अदालत के ध्यान से बाहर रह जाते हैं, तो न्यायपालिका के प्रति निराशा होना स्वाभाविक है।


जन-न्याय की कमी

चौथा पहलू है 'जन-न्याय' से दूरी। अदालत की भाषा, प्रक्रिया और पहुँच अब भी आम नागरिकों के लिए कठिन है। जब लोग यह महसूस करते हैं कि न्याय तंत्र केवल शक्तिशाली वर्ग के लिए सुलभ है, तो उनका भरोसा कमजोर होना तय है। फिर भी, यह सच है कि सुप्रीम कोर्ट में कई ईमानदार न्यायाधीश और ऐतिहासिक फैसले आज भी उम्मीद जगाते हैं। लेकिन संस्थागत सुधारों के बिना यह उम्मीद लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती। न्यायपालिका को चाहिए कि वह आत्ममंथन करते हुए न्याय में गति लाए और नागरिकों की आस्था को बढ़ाए।


न्यायिक सुधार की आवश्यकता

हालांकि, अदालतों के प्रति आम जनता में बढ़ती निराशा न केवल चिंता का विषय है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा पर भी गहरा प्रभाव डालती है। इस संदर्भ में, न्यायिक सुधार केवल एक प्रशासनिक आवश्यकता नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती और समाज में विश्वास बहाल करने के लिए अनिवार्य हो गया है। इसके तहत न्याय में तेजी लाना, न्याय तक पहुँच को आसान बनाना, पारदर्शिता बढ़ाना और संवेदनशील मामलों पर जवाबदेही सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।