भारतीय नौसेना का नया युद्धपोत अर्नाला: तटीय सुरक्षा में एक नई ताकत

भारतीय नौसेना ने अपने बेड़े में अर्नाला नामक नए एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट को शामिल करने की घोषणा की है। यह युद्धपोत तटीय सुरक्षा को मजबूत करने और हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की समुद्री शक्ति को बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अर्नाला की विशेषताएँ इसे दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाने और नष्ट करने में सक्षम बनाती हैं। इसके निर्माण में 80 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक का उपयोग किया गया है, जो भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है। इस लेख में अर्नाला की क्षमताओं और इसके सामरिक महत्व पर चर्चा की गई है।
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भारतीय नौसेना का नया युद्धपोत अर्नाला: तटीय सुरक्षा में एक नई ताकत

भारतीय नौसेना की नई पहल

भारतीय नौसेना अपनी क्षमताओं को लगातार बढ़ा रही है ताकि किसी भी आपात स्थिति में दुश्मन को प्रभावी तरीके से जवाब दिया जा सके। इसी क्रम में, 18 जून को विशाखापत्तनम के नौसेना डॉकयार्ड में पहले एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट, अर्नाला, को शामिल किया जाएगा। यह पोत उन 16 छोटे युद्धपोतों में से एक है, जिन्हें नौसेना में शामिल किया जाना है। ये युद्धपोत तटीय क्षेत्रों में एंटी-सबमरीन युद्ध और छोटे समुद्री अभियानों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए हैं, जिनकी कुल लागत 12,622 करोड़ रुपये है। आईएनएस अर्नाला की तैनाती से भारत की तटीय सुरक्षा में मजबूती आएगी और हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री शक्ति और आत्मनिर्भरता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाएगी.


अर्नाला की विशेषताएँ

भारतीय नौसेना ने हाल ही में 1490 टन से अधिक वजन और 77.6 मीटर लंबाई वाला एक नया युद्धपोत पेश किया है, जो डीजल इंजन और वॉटरजेट संयोजन से संचालित होता है। अर्नाला को सतह पर निगरानी, खोज और बचाव मिशनों के लिए उपयुक्त माना गया है, और यह समुद्र में कम तीव्रता वाले अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसका नाम महाराष्ट्र के वसई में स्थित अर्नाला किले के आधार पर रखा गया है, जिसे 1737 में चिमाजी अप्पा के नेतृत्व में मराठों ने बनाया था। यह किला सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह उत्तर कोंकण तट की सुरक्षा में एक प्रमुख पहरेदार के रूप में कार्य करता था.


नौसेना की क्षमताओं में वृद्धि

एक नौसेना प्रवक्ता ने बताया कि अर्नाला पोत 80 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से निर्मित है और इसे प्रमुख भारतीय रक्षा कंपनियों जैसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, एलएंडटी, महिंद्रा डिफेंस और मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एमईआईएल) की उन्नत प्रणालियों से लैस किया गया है। इस पोत के नौसेना बेड़े में शामिल होने से भारत की नौसैनिक क्षमताओं में महत्वपूर्ण बदलाव आएगा। यह तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के साथ-साथ हिंद महासागर क्षेत्र में आत्मनिर्भर समुद्री शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को और अधिक सुदृढ़ करेगा.


अर्नाला की खतरनाक क्षमताएँ

एंटी सबमरीन वारफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट, अर्नाला, कई विशेषताओं से सुसज्जित है। यह तट से 100 से 150 नॉटिकल मील की दूरी पर दुश्मन की पनडुब्बियों का पता लगाने में सक्षम है। समुद्र के भीतर, यह 30 से 40 मीटर की गहराई में ऑपरेशन कर सकती है और दुश्मन की पनडुब्बियों के खतरे का आभास होते ही उन्हें नष्ट करने की क्षमता रखती है। अर्नाला में एंटी सबमरीन रॉकेट लॉन्चर, हल्के टॉरपीडो, 30 एमएम नेवल गन, एएसडब्लू कॉम्बेट सूट, हल माउंटेड सोनार और लो फ्रीक्वेंसी वेरियेबल डेप्थ सोनार शामिल हैं। इसकी गति 25 नॉटिकल मील प्रति घंटे होगी और यह एक बार में 3300 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है.


समुद्री सुरक्षा में योगदान

1737 में चिमाजी अप्पा के नेतृत्व में मराठों द्वारा स्थापित यह किला वैतरणा नदी के संगम पर स्थित है, जो उत्तरी कोंकण तट की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक स्थान है। जैसे यह किला विभिन्न आक्रमणों का सामना करते हुए मजबूती से खड़ा रहा, वैसे ही यह वॉरशिप समुद्र में एक प्रभावशाली उपस्थिति के लिए तैयार की गई है। इसके मजबूत निर्माण और उन्नत क्षमताएं समुद्री चुनौतियों का सामना करने और भारत के समुद्री क्षेत्र की रक्षा करने में सक्षम बनाती हैं.