भारत-रूस संबंधों में नई दिशा: मास्को में महत्वपूर्ण बैठक

हाल ही में मास्को में भारतीय और रूसी विदेश मंत्रियों के बीच हुई बैठक ने भारत-रूस संबंधों में नई दिशा का संकेत दिया है। इस बैठक में आगामी शिखर सम्मेलन की तैयारी के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण समझौतों पर चर्चा की गई। भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा और व्यापार नीति बाहरी दबावों से प्रभावित नहीं होगी। इस बैठक की महत्ता वैश्विक संदर्भ में भी बढ़ गई है, खासकर रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया की अस्थिरता के बीच। जानें इस बैठक के पीछे की रणनीति और भारत की नई वैश्विक पहचान के बारे में।
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भारत-रूस संबंधों में नई दिशा: मास्को में महत्वपूर्ण बैठक

भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण बैठक

हाल ही में मास्को में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लैवरोव के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। यह मुलाकात ऐसे समय में हुई है जब अगले महीने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत का दौरा करेंगे, जहां 23वां वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य न केवल आगामी शिखर सम्मेलन की रूपरेखा तैयार करना था, बल्कि रक्षा, ऊर्जा, मोबिलिटी और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण समझौतों को अंतिम रूप देना भी था।


जयशंकर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारत और रूस के बीच संवाद हमेशा खुलापन और विश्वास पर आधारित रहा है। यह इस बात का संकेत है कि भले ही वैश्विक शक्ति संतुलन बदल रहा हो, भारत और रूस के कूटनीतिक संबंधों में स्थिरता और दीर्घकालिक साझेदारी बनी हुई है।


इस बैठक की महत्ता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि अमेरिका और पश्चिमी देशों का भारत पर दबाव बढ़ता जा रहा है, खासकर रूस से कच्चे तेल और रक्षा तकनीक की खरीद को लेकर। भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा और व्यापार नीति बाहरी दबावों से नहीं, बल्कि भारतीय उपभोक्ताओं के हित और राष्ट्रीय रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुसार तय होती है।


भारत और रूस की साझेदारी केवल व्यापार या रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह ऐतिहासिक, सामरिक और भावनात्मक रूप से भी गहरी है। पिछले दशकों में, रूस ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन दिया है, चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता का समर्थन हो या सुरक्षा और परमाणु तकनीक में सहयोग।


आगामी शिखर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण समझौतों पर सहमति बनने की संभावना है। इसमें रक्षा क्षेत्र में संयुक्त उत्पादन, दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति, आर्कटिक सहयोग, अंतरिक्ष अनुसंधान में साझेदारी और युवा व पेशेवर मोबिलिटी से जुड़े नए कार्यक्रमों की औपचारिक घोषणा की उम्मीद है। यह साझेदारी भारत-रूस संबंधों को केवल 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी' तक सीमित नहीं रखेगी, बल्कि इसे 'नए युग की बहु-ध्रुवीय साझेदारी' का स्वरूप भी दे सकती है।


वर्तमान वैश्विक संदर्भ में यह बैठक और भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया की अस्थिरता ने वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित किया है। जयशंकर ने कहा कि भारत सभी पक्षों द्वारा शांति और संवाद की पहल का समर्थन करता है, क्योंकि संघर्ष का अंत न केवल युद्धरत देशों के लिए, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी आवश्यक है।


भारत-रूस संबंधों की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट होती है कि हाल ही में राष्ट्रपति पुतिन के करीबी सहयोगी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पत्रुशेव ने दिल्ली में एनएसए अजीत डोभाल से मुलाकात की। यह केवल औपचारिक वार्ता नहीं थी, बल्कि रणनीतिक साझेदारी की नई दिशा और एशियाई भू-राजनीतिक तंत्र पर महत्वपूर्ण चर्चा का संकेत भी है।


भारत की वर्तमान वैश्विक भूमिका में संतुलित कूटनीति, रणनीतिक स्वायत्तता और बहु-आयामी साझेदारी की नीति महत्वपूर्ण हो गई है। चाहे अमेरिका, यूरोप, रूस या मध्य पूर्व— भारत की विदेश नीति किसी ब्लॉक का हिस्सा नहीं है, बल्कि 'भारत प्रथम' की स्पष्ट रणनीति पर आधारित है।


इस प्रकार, मास्को में हुई यह बैठक न केवल आगामी शिखर सम्मेलन की तैयारी है, बल्कि भारत-रूस संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत भी हो सकती है। जब दुनिया पश्चिम बनाम पूर्व की ध्रुवीयता में बंटी हुई है, भारत की भूमिका सेतु निर्माण की है और रूस के साथ मजबूत होती यह साझेदारी उसी दिशा का संकेत है। भारत की कूटनीति अब प्रतिक्रियाशील नहीं, बल्कि नीतिगत नेतृत्व की भूमिका निभा रही है, जो भारत की नई वैश्विक पहचान का प्रतीक है।