भारत में वोटिंग स्याही: क्यों मिटती नहीं है इतनी जल्दी?
चुनावों का माहौल और वोटिंग प्रक्रिया
भारत में इस समय विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है, जिसमें पांच राज्यों में मतदान हो रहा है। कुछ स्थानों पर वोटिंग संपन्न हो चुकी है, जबकि अन्य स्थानों पर मतदान अभी बाकी है। जब भी मतदाता मतदान केंद्र पर पहुंचता है, उसकी उंगली पर नीली स्याही लगाई जाती है। यह स्याही लंबे समय तक नहीं मिटती, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई व्यक्ति दोबारा वोट न दे सके।
नीली स्याही का मिटना: एक सवाल
सोशल मीडिया पर यह चर्चा चल रही है कि मतदान के दौरान उंगली पर लगाई गई स्याही इतनी आसानी से क्यों नहीं मिटती। इसमें ऐसा क्या विशेष है जो यह लंबे समय तक उंगली पर बनी रहती है और फिर धीरे-धीरे गायब हो जाती है। आज हम इस स्याही से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ साझा करेंगे।
स्याही निर्माण का एकाधिकार
भारत में चुनावों में उपयोग होने वाली नीली स्याही केवल एक कंपनी, मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड, द्वारा बनाई जाती है। यह कंपनी इस स्याही को रिटेल में नहीं बेचती; इसे केवल सरकारी एजेंसियों या चुनाव से संबंधित संस्थाओं द्वारा खरीदा जा सकता है। पूरे देश में वोटिंग की नीली स्याही की आपूर्ति का कार्य यही कंपनी करती है।
स्याही का रासायनिक मिश्रण
यह नीली स्याही सिल्वर नाइट्रेट के रासायनिक मिश्रण से बनाई जाती है। जब यह स्याही शरीर में मौजूद नमक के साथ मिलती है, तो सिल्वर क्लोराइड का निर्माण होता है। यह सिल्वर क्लोराइड पानी में घुलकर त्वचा से चिपका रहता है। यदि स्याही पानी के संपर्क में आती है, तो यह नीली से काली हो जाती है।
स्याही के मिटने में समय
इस स्याही को मिटने में कम से कम 72 घंटे लगते हैं। इस दौरान त्वचा के सेल्स पुराने होकर गिरने लगते हैं, जिससे स्याही धीरे-धीरे मिटने लगती है। इसे इलेक्शन इंक या इंडेलिबल इंक भी कहा जाता है। भारत में पहले चुनावों के दौरान इस स्याही का उपयोग नहीं होता था, लेकिन 1962 के चुनावों से इसे लागू किया गया ताकि पुनः मतदान को रोका जा सके।
