भारत में मुगलों के इतिहास पर नई पाठ्यपुस्तक के विवादास्पद बदलाव
भारत में मुगलों के इतिहास को लेकर एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक में किए गए बदलावों ने एक बार फिर राजनीतिक बहस को जन्म दिया है। इस पुस्तक में बाबर, अकबर और औरंगजेब के बारे में विवादास्पद विवरण शामिल हैं, जो मुगलों के शासन को एक नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करते हैं। भाजपा और विपक्षी दलों के बीच इस विषय पर तीखी बहस चल रही है, जिसमें इतिहास के पुनर्लेखन और सांप्रदायिकता के आरोप लगाए जा रहे हैं। जानें इस बदलाव का व्यापक प्रभाव और इसके पीछे की राजनीति के बारे में।
Jul 17, 2025, 15:55 IST
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मुगलों के इतिहास में बदलाव का राजनीतिक प्रभाव
भारत में मुगलों के इतिहास को लेकर लंबे समय से राजनीतिक बहस चलती आ रही है। एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों के बारे में किए गए संशोधनों ने इस बहस को फिर से जीवित कर दिया है। इस नए पाठ्यक्रम में बाबर को ‘निर्मम आक्रमणकारी’, अकबर को ‘क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण’ वाला शासक, और औरंगजेब को ‘सैन्य शासक’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में इतिहास लेखन कभी भी केवल एक शैक्षणिक विषय नहीं रहा, बल्कि यह हमेशा राजनीति और विचारधारा से जुड़ा रहा है। लंबे समय तक वामपंथी और उदारवादी इतिहासकारों ने मुगलों को ‘सांस्कृतिक समन्वयक’ और ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ के प्रतीक के रूप में पेश किया। लेकिन हाल के वर्षों में जबसे भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़ी विचारधाराओं का प्रभाव शिक्षा प्रणाली में बढ़ा है, तबसे इतिहास को ‘सुधारने’ और ‘राष्ट्रीय गौरव’ के अनुसार दोबारा लिखने की कोशिशें तेज हो गई हैं।
पाठ्यपुस्तक में मुगलों का चित्रण
नई पाठ्यपुस्तक में बाबर को केवल एक आक्रांता के रूप में दिखाना यह दर्शाता है कि अब मुगलों के आगमन को ‘भारतीय सभ्यता के खिलाफ आक्रामक कार्यवाही’ के रूप में स्थापित किया जा रहा है। अकबर के बारे में ‘क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण’ कहना, उस पुराने विमर्श को तोड़ता है जिसमें अकबर को धार्मिक सहिष्णुता और दीन-ए-इलाही के लिए जाना जाता था। औरंगजेब को ‘सैन्य शासक’ और ‘जजिया कर लगाने वाला शासक’ के रूप में वर्णित करना यह संकेत देता है कि उसका शासन गैर-मुस्लिमों के लिए कठोर और शोषणकारी था।
राजनीतिक विमर्श पर प्रभाव
इस बदलाव का सीधा असर राजनीतिक विमर्श पर पड़ता है। भाजपा और उससे जुड़े संगठनों का मानना है कि मुगल काल भारत का ‘दासता काल’ था और इसे महिमामंडित करना गलत है। नई पीढ़ी को यह सिखाया जा रहा है कि भारत का ‘स्वर्ण युग’ मुगलों से पहले और अंग्रेजों के जाने के बाद है, न कि मुगलों के दौरान। वहीं विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस और वामपंथी खेमे, इसे ‘इतिहास के सांप्रदायिक पुनर्लेखन’ की संज्ञा दे रहे हैं और कह रहे हैं कि इस तरह के बदलाव बच्चों के भीतर नफरत और विभाजन की भावना पैदा करेंगे।
एनसीईआरटी की नई पाठ्यपुस्तक का विवरण
एनसीईआरटी की इस सप्ताह प्रकाशित पुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडिया एंड बियॉन्ड’ एनसीईआरटी के नए पाठ्यक्रम की पहली पुस्तक है, जो विद्यार्थियों को दिल्ली सल्तनत, मुगलों, मराठों और औपनिवेशिक युग से परिचित कराती है। पहले के संस्करणों में कक्षा 7 में इनमें से कुछ विषयों को शामिल किया गया था। एनसीईआरटी का कहना है कि अब इस कालखंड को पूरी तरह से कक्षा 8 में स्थानांतरित कर दिया गया है, जो स्कूल शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (एनसीएफएसई) 2023 की सिफारिशों के अनुरूप है।
पुस्तक में ऐतिहासिक घटनाओं का संदर्भ
पुस्तक के आरंभ में ‘इतिहास के कुछ अंधकारमय काल पर टिप्पणी’ शीर्षक वाला एक खंड है। इसमें एनसीईआरटी ने संवेदनशील और हिंसक घटनाओं, मुख्य रूप से युद्ध और रक्तपात को शामिल किया है। छात्रों से आग्रह किया गया है कि वे ‘क्रूर हिंसा, अपमानजनक कुशासन या सत्ता की गलत महत्वाकांक्षाओं के ऐतिहासिक मूल’ को निष्पक्षता से समझें। इसमें कहा गया, ‘अतीत की घटनाओं के लिए आज किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।’
मुगलों के खिलाफ प्रतिरोध का उल्लेख
आठवीं कक्षा की नई पाठ्यपुस्तक में मुगलों के विरुद्ध वीरतापूर्ण प्रतिरोध पर भी एक खंड है, जिसमें जाट किसानों द्वारा मुगल अधिकारियों को मारने में सफल होने तथा भील, गोंड, संथाल और कोच जनजातीय समुदायों द्वारा अपने क्षेत्रों की रक्षा के लिए लड़ी गई लड़ाई भी शामिल हैं। इसमें गोंड राज्य की रानी दुर्गावती के बारे में जानकारी दी गई है, जिन्होंने अकबर की सेना के विरुद्ध युद्ध लड़ा था। मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप के बच निकलने और पूर्वोत्तर भारत में औरंगजेब की सेना के विरुद्ध अहोमों के प्रतिरोध पर भी कुछ खंड जोड़े गए हैं।