भारत में माता की पूजा: आस्था या मनोविज्ञान?
माता की पूजा और आस्था
भारत में जब भी माता की पूजा का आयोजन होता है, तो कई लोग मानते हैं कि माता स्वयं उनके बीच आती हैं। यह अनुभव कई लोगों ने अपनी आंखों से देखा है और इस पर विश्वास भी करते हैं। अक्सर ये घटनाएं जगराते के दौरान होती हैं, जहां भक्तों का कहना है कि माता उनके माध्यम से दर्शन देती हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करती हैं।
महिलाओं में माता का अवतार
अधिकतर मामलों में, माता का अवतार महिलाओं में ही देखा जाता है। जब कोई महिला माता के प्रभाव में आती है, तो वह भक्ति में इतनी लीन हो जाती है कि उसका सिर तेजी से हिलने लगता है और वह अजीब हरकतें करने लगती है। जबकि बहुत से लोग इस पर विश्वास करते हैं, कुछ इसे ढोंग मानते हैं और कुछ इसे विज्ञान के दृष्टिकोण से देखते हैं।
विज्ञान की दृष्टि
विज्ञान के अनुसार, यह सब एक मानसिक स्थिति का परिणाम हो सकता है, जिसे मनोवैज्ञानिक बीमारी कहा जाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई व्यक्ति एक ही विचार पर लगातार ध्यान केंद्रित करता है, जैसे कि जगराते के दौरान माता के बारे में, तो उसका मस्तिष्क उसी विचार में लीन हो जाता है।
फिल्मों में दर्शाया गया
इस विषय पर भारत की प्रसिद्ध फिल्म 'भूल भुलैया' में भी एक दृश्य है, जिसमें अभिनेत्री खुद को मंजुलिका समझने लगती है और माता के समान हरकतें करती है। यदि आप विज्ञान के गहरे अध्ययन में जाएं, तो आपको इसी तरह की व्याख्या मिलेगी।
आस्था और नाटक
कुछ लोग विज्ञान पर विश्वास नहीं करते, जबकि अन्य इस तरह की घटनाओं को नाटक मानते हैं। कुछ महिलाएं जानबूझकर ऐसा प्रदर्शन करती हैं, जिससे लोगों को लगता है कि माता ने उन्हें चुना है। इस विषय पर शोध अभी भी जारी है।
