भारत में बिजली वितरण में निजीकरण का नया युग

भारत की बिजली वितरण व्यवस्था में एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है, जिसमें निजी कंपनियों को बिजली का खुदरा बाजार खोलने का प्रस्ताव है। इस बदलाव से सरकारी कंपनियों का एकाधिकार समाप्त होगा और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं और विकल्प मिलेंगे। अदाणी एंटरप्राइजेज, टाटा पावर जैसी कंपनियों के शामिल होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे आम जनता को सस्ती दरों पर बिजली मिलेगी। जानें इस प्रस्ताव के पीछे की सोच और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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भारत में बिजली वितरण में निजीकरण का नया युग

बिजली वितरण में महत्वपूर्ण परिवर्तन

भारत की बिजली वितरण प्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव की तैयारी की जा रही है। केंद्र सरकार ने एक नया प्रस्ताव पेश किया है, जिसके तहत बिजली का खुदरा बाजार निजी कंपनियों के लिए खोला जाएगा। केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट बिल तैयार किया है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि इस कदम से सरकारी बिजली वितरण कंपनियों का एकाधिकार समाप्त होगा। अब निजी कंपनियां सीधे ग्राहकों को बिजली बेच सकेंगी, जिससे बिजली वितरण में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और आम जनता को सस्ती और बेहतर सेवाएं मिलेंगी।


वर्तमान स्थिति का अवलोकन

वर्तमान में, भारत के अधिकांश राज्यों में बिजली वितरण का कार्य सरकारी कंपनियों के हाथ में है। कुछ राज्यों जैसे दिल्ली-एनसीआर, ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात में ही निजीकरण की प्रक्रिया देखी गई है। हालांकि, सरकारी बिजली वितरण कंपनियां लंबे समय से घाटे में चल रही हैं। केंद्रीय बिजली मंत्रालय का मानना है कि निजी कंपनियों को इस क्षेत्र में लाने से वितरण व्यवस्था में सुधार होगा, सेवाएं बेहतर होंगी और राज्यों पर वित्तीय दबाव कम होगा।


बिजली की कमी का समाधान

इस ड्राफ्ट बिल के लागू होने के बाद, अदाणी एंटरप्राइजेज, टाटा पावर, टॉरेंट पावर और सीईएससी जैसी प्रमुख निजी कंपनियां देशभर में बिजली वितरण में शामिल हो सकेंगी। इसका सबसे बड़ा लाभ आम उपभोक्ताओं को होगा, क्योंकि वे अपने क्षेत्र में कई बिजली प्रदाताओं में से अपनी पसंद की कंपनी चुन सकेंगे। इससे सस्ती दरों और बेहतर सेवाओं का विकल्प उपलब्ध होगा।


सरकार की पहल और चुनौतियाँ

केंद्र सरकार लंबे समय से बिजली वितरण कंपनियों के घाटे को कम करने और पुराने ढांचे को आधुनिक बनाने के प्रयास कर रही है। इस वर्ष की शुरुआत में, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य ने अपनी चार में से दो बिजली वितरण कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया शुरू की थी। सरकार का मानना है कि निजीकरण से न केवल सेवाएं बेहतर होंगी, बल्कि बिजली क्षेत्र में निवेश भी बढ़ेगा।


बकाया राशि का मुद्दा

ऊर्जा अर्थशास्त्र संस्थान (IEEFA) की सितंबर 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, जून 2025 तक सरकारी बिजली वितरण कंपनियों पर बिजली उत्पादक कंपनियों का लगभग 6.78 अरब डॉलर (लगभग ₹56,000 करोड़) बकाया है। इस बकाये के कारण बिजली उत्पादक कंपनियों को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे पूरे बिजली क्षेत्र में नकदी की कमी हो रही है।


उपभोक्ताओं के लिए नए विकल्प

ड्राफ्ट बिल का एक और महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि अब एक ही क्षेत्र में कई निजी कंपनियां बिजली वितरण का कार्य कर सकेंगी। मौजूदा बिजली कानून में ऐसा संभव नहीं था। सरकार का मानना है कि इस सुधार से उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधाएं मिलेंगी और निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। इससे न केवल बिजली की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि वितरण प्रणाली में भी पारदर्शिता आएगी।