भारत में बढ़ती बुजुर्ग आबादी: अवसर और चुनौतियाँ
बुजुर्गों की बढ़ती संख्या
भारत में बुजुर्गों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है।
भारत में एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो रहा है, जो शायद हम रोज़मर्रा की भागदौड़ में नहीं देख पा रहे हैं। यह कोई राजनीतिक या औद्योगिक परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह हमारे घरों के भीतर हो रहा एक बड़ा बदलाव है। देश में बुजुर्गों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। वर्तमान में, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या लगभग 15 करोड़ है, जो रूस की कुल जनसंख्या के बराबर है।
यह संख्या केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह आने वाले समय में भारत की आर्थिक और सामाजिक दिशा को प्रभावित करेगी। देश एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां यह सवाल उठता है कि क्या हमारी यह ‘सिल्वर जनरेशन’ अर्थव्यवस्था के लिए एक नया ‘ग्रोथ इंजन’ बनेगी या यह विशाल जनसंख्या देश की व्यवस्था पर बोझ बन जाएगी?
आंकड़ों की हैरान करने वाली तस्वीर
हैरान कर देगें ये आंकड़े
आने वाले समय में यह संख्या और भी बढ़ने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार, 2036 तक यह संख्या 23 करोड़ तक पहुंच जाएगी। 2050 तक, भारत का हर पांचवां नागरिक बुजुर्ग होगा, जिनकी कुल संख्या लगभग 32 करोड़ तक पहुंच जाएगी। यदि 45 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को भी शामिल किया जाए, तो यह संख्या 40% आबादी (लगभग 65.5 करोड़) तक पहुंच सकती है। यह वह वर्ग है जिसकी खरीदने की क्षमता विश्व में सबसे अधिक मानी जाती है।
स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौतियाँ
70% बुज़ुर्ग अपने परिवार पर निर्भर
हालांकि, इस बड़ी तस्वीर का एक चिंताजनक पहलू भी है। स्वास्थ्य के मामले में, भारत में हर पांच में से केवल एक बुजुर्ग के पास स्वास्थ्य बीमा है। इसका मतलब यह है कि 80% बुजुर्गों को अपनी जीवनभर की बचत इलाज पर खर्च करनी पड़ती है या परिवार के सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ता है।
आर्थिक दृष्टि से भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। लगभग 70% बुजुर्ग अपने दैनिक खर्चों के लिए अपने परिवार पर निर्भर हैं या मामूली पेंशन पर गुज़ारा कर रहे हैं। यह उनकी आर्थिक असुरक्षा को दर्शाता है।
सिल्वर इकोनॉमी का उदय
₹73,000 करोड़ की ‘सिल्वर इकोनॉमी’
हालांकि, इस स्थिति का एक सकारात्मक पहलू भी है। भारत की ‘सिल्वर इकोनॉमी’, जो विशेष रूप से बुजुर्गों की आवश्यकताओं पर आधारित है, पहले ही 73,000 करोड़ रुपये का आकार ले चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तो बस शुरुआत है और आने वाले वर्षों में यह तेजी से बढ़ेगी।
कंपनियाँ इस नए बाजार की संभावनाओं को समझने लगी हैं। उदाहरण के लिए, आईटीसी ने ‘राइट शिफ्ट’ नामक उत्पादों की एक श्रृंखला पेश की है, जो बुजुर्गों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
भविष्य की संभावनाएँ
एक ऐसा बाज़ार जिसकी अभी शुरुआत भी नहीं हुई
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का ‘सीनियर केयर’ बाजार भविष्य में रियल एस्टेट, हेल्थकेयर, मनोरंजन और वित्तीय सेवाओं में अरबों डॉलर के नए अवसर पैदा कर सकता है।
हालांकि, इसके लिए एक ‘एज-फ्रेंडली’ पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण आवश्यक है। रियल एस्टेट में ‘सीनियर लिविंग’ एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जो अभी भी विकास के लिए बहुत संभावनाएँ रखता है।
सोच में बदलाव की आवश्यकता
सोच बदलनी होगी, 60 पर रुकना नहीं होगा
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सही नीतियाँ और ढाँचे नहीं बनाए गए, तो यह बढ़ती जनसंख्या परिवारों और कल्याण प्रणालियों पर बोझ बन सकती है। लेकिन यदि हम इस ‘सिल्वर जनरेशन’ की शक्ति और अनुभव को पहचानते हैं, तो यह देश को सुपरपॉवर बना सकता है।
इसका रास्ता केवल देखभाल या पेंशन देने से नहीं निकलेगा, बल्कि सोच में बदलाव की आवश्यकता है।
