भारत में फैटी लीवर की समस्या: अध्ययन से खुलासा

हाल ही में एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि भारत में 38 प्रतिशत लोग गैर-अल्कोहलिक वसायुक्त यकृत रोग से पीड़ित हैं। यह समस्या वयस्कों के साथ-साथ बच्चों को भी प्रभावित कर रही है। अध्ययन में बताया गया है कि इस बीमारी का मुख्य कारण अस्वास्थ्यकर आहार और जीवनशैली है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बीमारी का कोई अनुमोदित उपचार नहीं है, लेकिन इसे स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर नियंत्रित किया जा सकता है। जानें इस बीमारी के लक्षण, कारण और बचाव के उपाय।
 | 
भारत में फैटी लीवर की समस्या: अध्ययन से खुलासा

फैटी लीवर की बढ़ती समस्या


राष्ट्रीय राजधानी में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है कि भारत में 38 प्रतिशत लोग गैर-अल्कोहलिक वसायुक्त यकृत (फैटी लीवर) की समस्या से ग्रसित हैं। यह बीमारी उन व्यक्तियों में होती है जो शराब का सेवन नहीं करते या बहुत कम करते हैं।


यह समस्या केवल वयस्कों तक सीमित नहीं है, बल्कि लगभग 35 प्रतिशत बच्चे भी इससे प्रभावित हैं। इस अध्ययन में भारत में गैर-अल्कोहलिक फैटी लीवर रोग पर प्रकाशित विभिन्न रिपोर्टों का विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट जून 2022 में 'जर्नल ऑफ क्लिनिकल एंड एक्सपेरिमेंटल हेपेटोलॉजी' में प्रकाशित हुई थी।


गैर-अल्कोहलिक वसायुक्त यकृत रोग (एनएएफएलडी) अक्सर प्रारंभिक चरण में लक्षण नहीं दिखाता, जिससे यह पहचानना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में यह यकृत के गंभीर रोग के रूप में विकसित हो सकता है। उदर रोग विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. अनूप सराया ने बताया कि वसायुक्त यकृत या 'स्टीटोहेपेटाइटिस' का मुख्य कारण हमारे आहार में पश्चिमीकरण है, जिसमें फास्ट फूड का बढ़ता सेवन और स्वास्थ्यवर्धक फलों और सब्जियों का कम सेवन शामिल है।


डॉ. सराया ने कहा कि वर्तमान में 'फैटी लीवर' के लिए कोई अनुमोदित दवा नहीं है, लेकिन इसे ठीक किया जा सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस बीमारी को मात देने का एकमात्र तरीका स्वास्थ्यवर्धक जीवनशैली अपनाना और मोटापे से ग्रसित लोगों का वजन कम करना है।


विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में वसायुक्त यकृत का एक सामान्य कारण शराब का सेवन है। डॉ. सराया ने बताया कि यकृत की गंभीर क्षति के अधिकांश मामले शराब के कारण होते हैं। 'एक्यूट क्रॉनिक लीवर फेल्योर' के मरीजों की अस्पताल में भर्ती होने पर मृत्यु दर अधिक होती है। उन्होंने यह भी बताया कि इस बीमारी से ठीक हुए रोगियों में दोबारा इस बीमारी का होने का उच्च जोखिम होता है।


डॉ. सराया ने कहा कि इस घातक बीमारी से बचने का सबसे प्रभावी तरीका शराब का सेवन न करना है, क्योंकि शराब का कोई भी मात्रा यकृत के लिए हानिकारक होती है। इसके अलावा, तपेदिक के इलाज में उपयोग होने वाली दवाएं, एंटीबायोटिक्स, एंटीपाइलेप्टिक दवाएं और कीमोथेरेपी भी यकृत को नुकसान पहुंचा सकती हैं। तपेदिक रोधी दवा से संबंधित 'तीव्र यकृत विफलता' वाले रोगियों में 67 प्रतिशत की मृत्यु दर होती है।