भारत में दुर्लभ मृदा चुम्बकों के निर्माण में आत्मनिर्भरता की ओर कदम

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की है कि भारत अगले तीन से चार वर्षों में दुर्लभ मृदा चुम्बकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करेगा। 7,280 करोड़ रुपये की योजना के तहत, भारत अपनी पहली एकीकृत आरईपीएम विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करेगा, जिससे रोजगार सृजन होगा और आत्मनिर्भरता को मजबूती मिलेगी। इस योजना का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करना है।
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भारत में दुर्लभ मृदा चुम्बकों के निर्माण में आत्मनिर्भरता की ओर कदम

भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को जानकारी दी कि भारत अगले तीन से चार वर्षों में दुर्लभ मृदा चुम्बकों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल कर लेगा। यह घोषणा केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 7,280 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी देने के बाद की गई, जिसका उद्देश्य सिंटर्ड रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट (आरईपीएम) के निर्माण को बढ़ावा देना है। मंत्री ने बताया कि हमारी उत्पादन क्षमता में वृद्धि के चलते हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे।


आरईपीएम स्थायी चुम्बकों के सबसे मजबूत प्रकारों में से एक हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस और रक्षा अनुप्रयोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह योजना एकीकृत आरईपीएम निर्माण सुविधाओं के विकास में मदद करेगी, जिसमें रेयर अर्थ ऑक्साइड को धातुओं में, धातुओं को मिश्र धातुओं में और मिश्र धातुओं को तैयार आरईपीएम में परिवर्तित करना शामिल है।


इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा, औद्योगिक अनुप्रयोगों और उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स की बढ़ती मांग को देखते हुए, भारत में आरईपीएम की खपत 2025 से 2030 के बीच दोगुनी होने की संभावना है। वर्तमान में, भारत की आरईपीएम की मांग मुख्यतः आयात पर निर्भर है। इस पहल के माध्यम से, भारत अपनी पहली एकीकृत आरईपीएम विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करेगा, जिससे रोजगार सृजन होगा और आत्मनिर्भरता को मजबूती मिलेगी।


इस योजना का कुल वित्तीय परिव्यय 7280 करोड़ रुपये है, जिसमें पांच वर्षों के लिए आरईपीएम की बिक्री पर 6450 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन और 6000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष आरईपीएम विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना के लिए 750 करोड़ रुपये की पूंजीगत सब्सिडी शामिल है।


इस योजना के तहत वैश्विक प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के माध्यम से पांच लाभार्थियों को कुल क्षमता आवंटित करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें प्रत्येक लाभार्थी को 1200 मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक की क्षमता दी जाएगी।