भारत में जातिगत जनगणना: 1931 के बाद पहली बार

जातिगत जनगणना की मंजूरी
देश में जाति के मुद्दे पर राजनीतिक गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार से जातिगत जनगणना की मांग की थी, जिसे अब मंजूरी मिल गई है। भारत में 1931 के बाद पहली बार जातिगत जनगणना का आयोजन किया जाएगा। ब्रिटिश शासन के दौरान आखिरी बार 1931 में यह प्रक्रिया हुई थी। रिपोर्टों के अनुसार, यह जनगणना 2027 के अंत तक पूरी होने की उम्मीद है। इसका उद्देश्य विभिन्न वर्गों के लिए जनकल्याणकारी योजनाएँ बनाना है।
1931 की जातिगत जनगणना का महत्व
केंद्र सरकार आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति की गणना को शामिल करने की योजना बना रही है, जिससे 1931 की अंतिम जातिगत जनगणना की यादें ताजा हो गई हैं। यह जनगणना भारतीय समाज की संरचना के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। 1901 में इसी तरह के प्रयास के बाद, 1931 की जनगणना जातियों की गणना करने वाली दूसरी जनगणना थी।
ओबीसी की स्थिति
इस जनगणना के अनुसार, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) उस समय की 271 मिलियन (27 करोड़) जनसंख्या का 52% हिस्सा थे। यह आंकड़ा मंडल आयोग की 1980 की रिपोर्ट का आधार बना, जिसने ओबीसी के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण की सिफारिश की।
साक्षरता के आंकड़े
1931 की जनगणना के अनुसार, बंगाल के बैद्य, कायस्थ और नायर जातियों में सबसे अधिक साक्षरता थी। बैद्यों में 78.2% पुरुष और 48.6% महिला साक्षरता थी, जबकि कायस्थों में 60.7% पुरुष और 19.1% महिला साक्षरता थी। नायरों में भी साक्षरता दर अच्छी थी।
अन्य जातियों की साक्षरता
खत्री जाति में 45.1% पुरुष और 12.6% महिला साक्षरता थी। ब्राह्मणों में 43.7% पुरुष और 9.6% महिला साक्षरता दर्ज की गई। राजपूतों में यह आंकड़ा 15.3% और 1.3% था। कुर्मी जाति, जो ओबीसी कोटा का लाभ उठाती है, में 12.6% पुरुष और 1.2% महिला साक्षरता थी।
साक्षरता में कमी
कुछ जातियों में साक्षरता की दर बहुत कम थी। जाट समुदाय में पुरुष साक्षरता 5.3% और महिला साक्षरता 0.6% थी। यादव जाति में यह आंकड़ा केवल 3.9% और 0.2% था। दलितों में महार जाति की साक्षरता दर अन्य अनुसूचित जातियों की तुलना में अधिक थी।