भारत में गालियों का उपयोग: दिल्ली सबसे आगे

एक हालिया सर्वेक्षण ने यह खुलासा किया है कि दिल्ली में 80% लोग रोज़मर्रा की बातचीत में गालियों का इस्तेमाल करते हैं। इस अध्ययन में 70,000 लोगों से डेटा इकट्ठा किया गया है, जिसमें विभिन्न राज्यों के लोग शामिल हैं। जानें कि कौन से राज्य गालियों के मामले में शीर्ष पर हैं और इसके पीछे के कारण क्या हैं। क्या गालियों का उपयोग अब एक सामान्य सामाजिक आदत बन चुका है? इस विषय पर और जानकारी के लिए पढ़ें।
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भारत में गालियों का उपयोग: दिल्ली सबसे आगे

गालियों का सामाजिक संकेतक

भारत में गालियों का उपयोग: दिल्ली सबसे आगे


भारत, जो विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों का संगम है, में भाषा का उपयोग एक महत्वपूर्ण सामाजिक संकेतक माना जाता है। क्या आप जानते हैं कि किस राज्य के लोग बातचीत में सबसे अधिक गालियां देते हैं?


सर्वे का उद्देश्य

डॉ. सुनील जागलान द्वारा चलाए गए 'गाली बंद घर अभियान' ने इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास किया। यह सर्वे 2014 से 2025 तक 'सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन' और महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के सहयोग से किया गया, जिसमें 70,000 लोगों से डेटा इकट्ठा किया गया।


दिल्ली का शीर्ष स्थान

सर्वे के अनुसार, दिल्ली पहले स्थान पर है, जहां 80% लोगों ने स्वीकार किया कि वे रोज़मर्रा की बातचीत में गालियों का प्रयोग करते हैं। यहाँ महिलाओं के खिलाफ गालियों का भी प्रचलन है। ट्रैफिक, भीड़ और तेज़ जीवनशैली दिल्लीवासियों को चिड़चिड़ा बनाती है।


भारत के शीर्ष 10 राज्य

भारत के टॉप 10 राज्य जहां दी जाती हैं सबसे ज्यादा गालियां:


स्थान राज्य प्रतिशत (%)
1 दिल्ली 80%
2 पंजाब 78%
3 उत्तर प्रदेश 74%
4 बिहार 74%
5 राजस्थान 68%
6 हरियाणा 62%
7 महाराष्ट्र 58%
8 गुजरात 55%
9 मध्य प्रदेश 48%
10 उत्तराखंड 45%
11 कश्मीर सबसे कम - सिर्फ 15%


गालियों के पीछे के कारण

क्यों देते हैं लोग गालियां?


  • पंजाब और हरियाणा में गालियां कभी-कभी दोस्ती का मजाक बन जाती हैं।
  • उत्तर प्रदेश और बिहार में राजनीतिक और पारिवारिक झगड़ों में गालियों का प्रयोग सामान्य है।
  • राजस्थान में गांवों में हल्की-फुल्की गालियां बोलना आम बात है।
  • महाराष्ट्र और गुजरात में शहरी तनाव और युवा पीढ़ी का स्लैंग कल्चर इसका कारण है।
  • कश्मीर में धार्मिक और पारिवारिक शांति के कारण गालियों का उपयोग न्यूनतम है।


महिलाओं में गालियों का प्रचलन

एक दिलचस्प तथ्य यह है कि 30% महिला प्रतिभागियों ने भी गाली देने की बात स्वीकार की। यह दर्शाता है कि गाली देना अब केवल पुरुषों का व्यवहार नहीं रह गया है, बल्कि यह एक सामान्य सामाजिक आदत बनता जा रहा है।


अभियान का उद्देश्य

इस अभियान का उद्देश्य:


  • सभ्य भाषा को बढ़ावा देना
  • घर में बातचीत को ट्रैक करना
  • बच्चों और युवाओं को शालीनता सिखाना


गाली देना अब केवल झगड़े या गुस्से तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत में संवाद का एक हिस्सा बन चुका है। ऐसे अभियानों, जैसे 'गाली बंद घर', समाज को सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या यह भाषा आदत बन चुकी है या इसे बदला जा सकता है।


सर्वे की जानकारी

डॉ. सुनील जागलान ने 11 वर्षों में 70,000 लोगों पर सर्वे किया, जिसमें युवा, माता-पिता, शिक्षक, डॉक्टर, ऑटो ड्राइवर, छात्र, पुलिसकर्मी, वकील, व्यवसायी, सफाईकर्मी, प्रोफेसर और पंचायत सदस्य शामिल थे।


गाली बंद घर अभियान की शुरुआत

डॉ. सुनील जागलान का कहना है कि गाली देना कोई संस्कार नहीं, बल्कि एक बीमारी है। जब बच्चे बड़े होते हैं और वे गालियां सुनते हैं, तो यह उनके दिमाग में बैठ जाती हैं। उन्होंने 2014 में गाली बंद घर अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत देशभर में 60,000 से अधिक स्थानों पर गाली बंद घर के चार्ट लगाए गए हैं।