भारत में आतंकवाद का विरोधाभास: जिहाद का प्रभाव और अल-कायदा-आईएसआईएस की असफलता

इस लेख में वैश्विक आतंकवाद के बदलते स्वरूप और भारत में अल-कायदा तथा आईएसआईएस जैसे संगठनों की असफलता के कारणों का विश्लेषण किया गया है। जानें कि कैसे भारत एक बहुलतावादी समाज के रूप में कट्टरपंथी विचारधाराओं का सामना कर रहा है और क्यों यह संगठन यहाँ पैर नहीं जमा सके।
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भारत में आतंकवाद का विरोधाभास: जिहाद का प्रभाव और अल-कायदा-आईएसआईएस की असफलता

वैश्विक आतंकवाद का परिवर्तन

पिछले तीन दशकों में वैश्विक आतंकवाद ने अपने स्वरूप में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं, जिनकी जड़ें 'खिलाफ़त' की धारणा और वैश्विक जिहाद के फैलते नेटवर्क में हैं। अल-कायदा के बिखरे हुए फ्रैंचाइज़ मॉडल से लेकर आईएसआईएस के क्षेत्रीय शासन की कोशिशों तक, जिहादी आंदोलन ने रणनीति, संगठन और महत्वाकांक्षा के स्तर पर बड़े बदलाव देखे हैं। 9/11 के बाद अमेरिका द्वारा शुरू किए गए 'वॉर अगेंस्ट टेरर' ने अनजाने में ऐसे सत्ता-शून्य पैदा किए, जिनका लाभ कट्टरपंथी संगठनों ने उठाया, जिससे मध्य पूर्व में हिंसा का नया दौर शुरू हुआ। हालांकि, इस वैश्विक उथल-पुथल के बीच भारत एक अपवाद बना रहा।


खिलाफत का उदय और जिहाद की रणनीतियाँ

वैश्विक जिहाद ने पिछले तीन दशकों में दो मुख्य लेकिन आपस में जुड़ी रणनीतियों का सामना किया है: अल-कायदा का बिखरा हुआ 'फ्रैंचाइज़ मॉडल' और आईएसआईएस का क्षेत्रीय शासन स्थापित करने का प्रयास। जबकि दोनों की वैचारिक जड़ें समान थीं, उनकी रणनीतियाँ और परिणाम भिन्न रहे। 9/11 के बाद अमेरिका के नेतृत्व में अफगानिस्तान और इराक में युद्धों ने इन परिवर्तनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन युद्धों ने सत्ता के खालीपन को जन्म दिया, जिसका फायदा आतंकवादी संगठनों ने उठाया।


अल-कायदा और आईएसआईएस की रणनीतियाँ

ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में अल-कायदा ने जिहाद का एक 'फ्रैंचाइज़ मॉडल' विकसित किया, जिसका उद्देश्य बड़े हमलों के माध्यम से पश्चिमी प्रभाव को कमजोर करना था। इसके विपरीत, आईएसआईएस ने जमीन पर कब्ज़ा करने और शासन चलाने का प्रयास किया, और 2014 में 'खिलाफ़त' की घोषणा की। इसका लक्ष्य केवल पश्चिम से लड़ना नहीं था, बल्कि एक इस्लामी राज्य की स्थापना करना था।


9/11 और आतंकवाद के खिलाफ युद्ध

11 सितंबर 2001 के हमलों ने वैश्विक सुरक्षा नीतियों को बदल दिया। अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया, लेकिन अल-कायदा की विचारधारा को समाप्त नहीं कर सका। 2003 में इराक पर हमले ने मौजूदा सरकारी ढांचे को गिरा दिया, जिससे सत्ता का खालीपन बढ़ा। इस अराजकता का सबसे बड़ा लाभ आईएसआईएस को मिला, जिसने एक मजबूत और आक्रामक संगठन के रूप में उभरने का प्रयास किया।


भारत में आतंकवाद का विरोधाभास

भारत अल-कायदा या आईएसआईएस जैसे संगठनों के लिए एक उपयुक्त ठिकाना नहीं बन सका, जबकि यहाँ बड़ी मुस्लिम आबादी है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे भारतीय मुसलमानों का एक बहुलतावादी और लोकतांत्रिक समाज में गहराई से जुड़ाव। यहाँ की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराएँ कट्टरपंथी विचारधाराओं को स्वीकार नहीं करतीं। इसके अलावा, भारत में लंबे गृहयुद्ध या राज्य-ध्वंस की स्थिति नहीं है, जो आमतौर पर जिहादी संगठनों के लिए अनुकूल होती है।