भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का बाजार 40 गुना बढ़ा, स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का बढ़ता बाजार
भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री 40 गुना बढ़ी
भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड उद्योग: हम अक्सर बाजार से पैकेटबंद चिप्स, बिस्कुट या इंस्टेंट नूडल्स खरीदते हैं, यह सोचकर कि इससे समय की बचत होगी और स्वाद भी मिलेगा। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह ‘सुविधा’ आपकी सेहत पर क्या असर डाल रही है? हाल के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड (UPF) का बाजार 2005 में 0.9 बिलियन डॉलर था, जो 2019 में बढ़कर लगभग 34 बिलियन डॉलर हो गया है। यानी महज 14 वर्षों में इस बाजार में 40 गुना वृद्धि हुई है। चिंता की बात यह है कि इसी अवधि में भारत में मोटापे की समस्या भी दोगुनी हो गई है। यह एक गंभीर चेतावनी है। द लैंसेट की एक नई रिपोर्ट, जिसे 43 विशेषज्ञों ने तैयार किया है, यह दर्शाती है कि कैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड हमारे शरीर और समाज को नुकसान पहुंचा रहा है।
बीमारियों का बढ़ता खतरा
बीमारियों का ‘हॉटस्पॉट’
लैंसेट की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड को ‘खाना’ कहना गलत है। नोवा फूड क्लासिफिकेशन सिस्टम के अनुसार, ये उत्पाद सस्ते रसायनों, एडिटिव्स और औद्योगिक प्रक्रियाओं से बनाए जाते हैं। इनका उद्देश्य पोषण प्रदान करना नहीं, बल्कि कंपनियों का मुनाफा बढ़ाना है। जब हम इन खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, तो हम असली भोजन, जैसे फल, सब्जियां और घर का बना खाना छोड़ देते हैं।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
रिपोर्ट के अनुसार, यह समस्या अब एक वैश्विक महामारी बन चुकी है। कनाडा, स्पेन, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों में पिछले कुछ दशकों में UPF की हिस्सेदारी दोगुनी से तीन गुनी हो गई है। इसका सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ रहा है। इन खाद्यों के सेवन से टाइप 2 डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, किडनी की समस्याएं और यहां तक कि अवसाद और अकाल मृत्यु का खतरा भी बढ़ जाता है। ये खाद्य उत्पाद शरीर में पोषक तत्वों का संतुलन बिगाड़ते हैं और जहरीले रसायनों की मात्रा को बढ़ाते हैं।
कंपनियों का मुनाफा और उपभोक्ताओं की सेहत
आपकी सेहत से प्यारा कंपनियों को मुनाफा
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व स्तर पर फूड इंडस्ट्री का सबसे अधिक मुनाफा देने वाला हिस्सा अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड है। रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर UPF की बिक्री 1.9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई है। ये कंपनियां सस्ते और घटिया सामग्री का उपयोग करती हैं, जिससे उनकी लागत कम हो और मुनाफा अधिक हो।
सरकारी कदम उठाने की आवश्यकता
विशेषज्ञों का मानना है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड के मामले में केवल नमक या चीनी को कम करना पर्याप्त नहीं है। समस्या उन रसायनों और प्रक्रियाओं की है जो इसे बनाते हैं। लैंसेट के लेखक सुझाव देते हैं कि सरकारों को कड़े कदम उठाने होंगे। उपभोक्ताओं को जागरूक करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि पूरे खाद्य प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता है।
