भारत में अमेरिकी कंपनियों का अरबों डॉलर का निवेश: डिजिटल भविष्य की ओर कदम
भारत की बढ़ती डिजिटल ताकत
अब दुनिया मानेगी भारत का लोहा!
अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंधों में उतार-चढ़ाव के बावजूद, जब भविष्य के बाजार की बात आती है, तो अमेरिकी कंपनियों का विश्वास भारत पर है। भारत अब केवल एक बाजार नहीं, बल्कि वैश्विक डिजिटल मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, सिलिकॉन वैली की प्रमुख कंपनियां जैसे माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, अमेज़न और मेटा भारत के डिजिटल ढांचे में भारी निवेश करने के लिए तैयार हैं.
बड़े पैमाने पर निवेश की योजना
आंकड़ों के अनुसार, यह निवेश भारत के इतिहास में किसी एक क्षेत्र में सबसे बड़ा हो सकता है। कुल मिलाकर यह राशि 67.5 अरब डॉलर (लगभग 5.6 लाख करोड़ रुपये) से अधिक होने की संभावना है। इसमें अमेज़न का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो अगले पांच वर्षों में अपने क्लाउड व्यवसाय और डेटा केंद्रों के लिए लगभग 35 अरब डॉलर खर्च करने की योजना बना रहा है.
माइक्रोसॉफ्ट ने एआई प्रोजेक्ट्स और डेटा केंद्रों के लिए 17.5 अरब डॉलर का निवेश करने की घोषणा की है। गूगल ने भी अडानी ग्रुप और भारती एयरटेल के साथ साझेदारी में डेटा केंद्र विकसित करने के लिए 15 अरब डॉलर का वादा किया है। फेसबुक की मूल कंपनी मेटा भी इस दौड़ में शामिल है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सिलिकॉन वैली के सभी बड़े खिलाड़ी भारत में अपनी उपस्थिति मजबूत करना चाहते हैं.
भारत की बढ़ती लोकप्रियता का कारण
अब सवाल यह है कि अचानक भारत के प्रति इतना आकर्षण क्यों बढ़ रहा है? इसका उत्तर डेटा के उपयोग में छिपा है। मुंबई स्थित एएसके वेल्थ एडवाइजर्स के सोमनाथ मुखर्जी के अनुसार, भारत अब दुनिया में डेटा का सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया है। वैश्विक डेटा का लगभग 20 प्रतिशत अकेले भारत में उपयोग होता है.
हालांकि, यह चौंकाने वाला है कि इतनी बड़ी मात्रा में डेटा का उपयोग करने के बावजूद, भारत की डेटा स्टोर करने की क्षमता अमेरिका के मुकाबले केवल 5 प्रतिशत है। डेटा यहां उत्पन्न हो रहा है, लेकिन उसे संभालने के लिए आवश्यक सर्वर की कमी है। यही वह अंतर है जिसे भरने के लिए विदेशी कंपनियां दौड़ रही हैं। इसके अलावा, भारत का विशाल इंटरनेट उपयोगकर्ता आधार और तेजी से विकसित हो रहा डिजिटल भुगतान प्रणाली इन कंपनियों को आकर्षित कर रही है.
डेटा की सुरक्षा के लिए सरकार की पहल
इस भारी निवेश के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण भारत सरकार की नीतियां भी हैं। सरकार लंबे समय से 'डेटा लोकलाइजेशन' पर जोर दे रही है, जिसका अर्थ है कि भारतीयों का डेटा भारत की सीमाओं के भीतर ही स्टोर किया जाए। बैंकिंग और मैसेजिंग क्षेत्रों में इसके नियम पहले से ही सख्त हैं.
विदेशी कंपनियों को यह समझ में आ गया है कि यदि उन्हें भारत में दीर्घकालिक व्यवसाय करना है, तो उन्हें यहीं सर्वर स्थापित करने होंगे। यही कारण है कि हैदराबाद जैसे शहर अब डेटा केंद्रों के नए हब बन रहे हैं। वहां की सरकार ने कंपनियों को बिजली, पानी और नीतियों के मोर्चे पर कई सुविधाएं प्रदान की हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों और बड़े शहरों में डेटा केंद्रों का जाल बिछ रहा है.
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