भारत में अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार की मांग में तेजी

भारत में अमेरिकी सामानों पर 50% आयात शुल्क लागू होने के बाद, अमेरिकी कंपनियों के बहिष्कार की मांग तेजी से बढ़ रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने 'वोकल फॉर लोकल' का नारा दिया है, जिससे स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया जा रहा है। त्योहारी मौसम में उपभोक्ता खरीदारी का स्तर बढ़ता है, जिससे अमेरिकी ब्रांडों की बिक्री प्रभावित हो सकती है। जानें इस बहिष्कार के पीछे के कारण और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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भारत में अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार की मांग में तेजी

अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ बहिष्कार की लहर

भारत में अमेरिकी सामानों पर 50% आयात शुल्क लागू होने के बाद, विभिन्न व्यावसायिक संगठनों और आम जनता द्वारा अमेरिकी कंपनियों के बहिष्कार की मांग बढ़ती जा रही है। यह मांग न केवल सोशल मीडिया पर देखी जा रही है, बल्कि ज़मीनी स्तर पर भी 'स्वदेशी अपनाओ' का संदेश फैल रहा है। भारत, जो अब दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन चुका है, अमेरिकी कंपनियों के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार है। पिछले दशक में भारत की प्रगति के कारण, बड़ी संख्या में लोग गरीबी से बाहर निकले हैं और मध्यम तथा उच्च वर्ग की आय में वृद्धि हुई है। इस बदलाव के चलते, भारतीयों की जीवनशैली में सुधार आया है और वे विदेशी ब्रांडों का अधिक उपयोग कर रहे हैं। भारत में WhatsApp, Domino’s, Coca-Cola, Apple, Amazon और Starbucks जैसे ब्रांडों की मजबूत उपस्थिति है, जिससे अमेरिका-भारत संबंधों में तनाव के चलते ये कंपनियां चिंतित हैं。




पिछले सप्ताह, प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी में एक जनसभा में स्वदेशी अपनाने का आह्वान किया था। उन्होंने 'वोकल फॉर लोकल' का नारा देते हुए कहा कि अब हम उन उत्पादों को खरीदेंगे जिनमें किसी भारतीय का पसीना लगा है। इसके अलावा, संघ परिवार से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने भी विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रम आयोजित कर अमेरिकी ब्रांडों के बहिष्कार की अपील की है। स्वदेशी जागरण मंच ने विदेशी साबुन, टूथपेस्ट और सॉफ्ट ड्रिंक्स के स्थान पर भारतीय विकल्पों की एक सूची भी साझा की है।




अमेरिका ने टैरिफ के माध्यम से भारत के साथ संबंधों को बिगाड़ने का कदम उठाया है, जबकि अमेरिकी कंपनियों के लिए मुनाफा कमाने का यह सही समय था। त्योहारी मौसम में अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान अधिक प्रभावी हो सकता है, क्योंकि इस दौरान उपभोक्ता खरीदारी का स्तर सामान्य दिनों की तुलना में काफी बढ़ जाता है। दिवाली, दशहरा, नवरात्र और अन्य त्योहारों के दौरान, अमेरिकी ब्रांडों की बिक्री और मार्केटिंग अभियान बड़े पैमाने पर होते हैं। यदि उपभोक्ता 'लोकल अपनाओ' का भाव अपनाते हैं, तो इन कंपनियों की बिक्री में गिरावट आ सकती है। त्योहारी सीज़न में प्रीमियम स्मार्टफोन, गैजेट्स और ब्रांडेड फूड-ड्रिंक की बिक्री प्रभावित हो सकती है। यदि उपभोक्ता इस दौरान भारतीय विकल्पों को अपनाते हैं और उनका अनुभव सकारात्मक रहता है, तो त्योहार के बाद भी वे विदेशी ब्रांडों से दूर रह सकते हैं।




हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि भारत में कई अमेरिकी ब्रांडों का मजबूत ग्राहक आधार और पहुंच है, इसलिए अचानक बिक्री में गिरावट आना मुश्किल है। फिर भी, एक संगठित और भावनात्मक बहिष्कार अभियान त्योहारी सीज़न में इन कंपनियों की वृद्धि को धीमा कर सकता है, जो उनके वार्षिक लक्ष्यों और शेयर बाजार की धारणा को प्रभावित कर सकता है। त्योहारी मौसम केवल बिक्री का समय नहीं है, बल्कि ब्रांड निर्माण का भी एक महत्वपूर्ण अवसर है। यदि यह अवसर भारतीय ब्रांडों के हाथ में चला जाता है, तो यह अमेरिकी कंपनियों के लिए आर्थिक और रणनीतिक झटका साबित हो सकता है। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी उत्पादों के बहिष्कार के बीच, अमेरिकी कंपनी टेस्ला ने मुंबई के बाद नई दिल्ली में अपना शोरूम खोला है, जिसमें भारतीय वाणिज्य मंत्रालय और अमेरिकी दूतावास के अधिकारी भी शामिल थे।




इस पूरे मामले को केवल व्यापारिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह आर्थिक राष्ट्रवाद, उपभोक्ता मनोविज्ञान और भू-राजनीतिक समीकरणों का भी मिश्रण है। भारत में अमेरिकी ब्रांडों का बाजार मजबूत है और बहिष्कार का तात्कालिक प्रभाव सीमित दिखाई दे रहा है। लेकिन यदि यह प्रवृत्ति लंबे समय तक जारी रहती है, तो अमेरिकी कंपनियों को अपनी रणनीतियों में बदलाव करना पड़ सकता है। वहीं, यदि घरेलू कंपनियां गुणवत्ता, डिज़ाइन और नवाचार में सुधार करती हैं और वैश्विक मानकों को पूरा करती हैं, तो 'Made in India' की धारणा को वास्तविक प्रतिस्पर्धी शक्ति में बदला जा सकता है।