भारत-पाकिस्तान संबंधों पर विदेश मंत्रालय का स्पष्ट संदेश
विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के साथ संबंधों पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है, जिसमें आतंकवाद और बातचीत के बीच संबंधों को लेकर सख्त रुख अपनाया गया है। प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि पाकिस्तान को आतंकवादियों को सौंपना होगा और जम्मू-कश्मीर पर बातचीत तभी होगी जब यह क्षेत्र भारत को सौंपा जाएगा। सिंधु जल संधि को भी तब तक स्थगित किया जाएगा जब तक पाकिस्तान आतंकवाद का समर्थन नहीं छोड़ता। इस लेख में भारत-पाकिस्तान संबंधों के जटिल पहलुओं और सिंधु जल संधि के महत्व पर चर्चा की गई है।
May 29, 2025, 17:51 IST
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भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर विदेश मंत्रालय की स्थिति
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों का दृष्टिकोण स्पष्ट है। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार के संबंध द्विपक्षीय होने चाहिए। उन्होंने दोहराया कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते। पाकिस्तान को उन आतंकवादियों को भारत को सौंपना होगा, जिनकी सूची और रिकॉर्ड कुछ साल पहले उन्हें दी गई थी। जम्मू-कश्मीर पर बातचीत तभी संभव होगी जब पाकिस्तान इस क्षेत्र को भारत को सौंप देगा। सिंधु जल संधि के संदर्भ में, यह तब तक स्थगित रहेगी जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन छोड़ नहीं देता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, आतंक और बातचीत, आतंक और व्यापार, और पानी और खून एक साथ नहीं चल सकते।
सिंधु जल संधि का इतिहास
भारत और पाकिस्तान के बीच जल-बंटवारे के समझौते, सिंधु जल संधि (IWT) पर 19 सितंबर, 1960 को हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि में सिंधु नदी प्रणाली की तीन पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास और सतलुज) और तीन पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम और चिनाब) शामिल हैं। संधि के अनुसार, भारत सिंधु प्रणाली के कुल जल का लगभग 20% नियंत्रित करता है, जबकि पाकिस्तान को लगभग 80% जल मिलता है। 23 अप्रैल को विदेश मंत्रालय ने कई सख्त उपायों की घोषणा की, जिसमें सिंधु जल संधि को तुरंत प्रभाव से स्थगित करना शामिल है।
सिंधु जल संधि का महत्व
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ल्ड बैंक की मौजूदगी में सिंधु जल संधि हुई थी। इस संधि के तहत पाकिस्तान को 6 बेसिन नदियों में से 3 का पानी मिला, जबकि भारत को रावी, व्यास और सतलुज का जल मिला। हाल ही में, भारत ने पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान को सबक सिखाने का निर्णय लिया, जिसके तहत सिंधु जल संधि को निलंबित करना पहला कदम था। पाकिस्तान की 80 प्रतिशत कृषि और 30 प्रतिशत बिजली परियोजनाएँ सिंधु जल पर निर्भर हैं, और जल आपूर्ति रुकने से पाकिस्तान की स्थिति गंभीर हो गई है।