भारत-चीन सीमा विवाद: जटिलता और संभावित समाधान
चीन ने हाल ही में भारत के साथ अपने सीमा विवाद को 'जटिल' और 'संवेदनशील' बताया है। यह बयान ऐसे समय आया है जब दोनों देशों के बीच संवाद जारी है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। सीमा विवाद का समाधान तत्काल संभव नहीं दिखता, क्योंकि यह भू-राजनीति और क्षेत्रीय रणनीति से जुड़ा है। जानें इस मुद्दे पर भारत और चीन के बीच क्या प्रयास हो रहे हैं और भविष्य की दिशा क्या हो सकती है।
Jul 2, 2025, 14:52 IST
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चीन का नया बयान और सीमा विवाद की जटिलता
हाल ही में, चीन ने एक महत्वपूर्ण बयान जारी करते हुए कहा है कि भारत के साथ उसका सीमा विवाद "जटिल" और "संवेदनशील" है। यह टिप्पणी उस समय आई है जब दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक संवाद जारी है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। चीन का यह बयान एक बार फिर से यह स्पष्ट करता है कि सीमा विवाद केवल भौगोलिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसमें रणनीतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक जटिलताएँ भी शामिल हैं।
भारत-चीन सीमा का इतिहास
भारत और चीन के बीच लगभग 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) है, जिसके बारे में दोनों देशों की धारणाएँ भिन्न हैं। 1962 के युद्ध के बाद से यह मुद्दा अधर में लटका हुआ है। इस सीमा के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं— पश्चिमी सेक्टर (लद्दाख), मध्य सेक्टर (उत्तराखंड और हिमाचल) और पूर्वी सेक्टर (अरुणाचल प्रदेश)। चीन अरुणाचल प्रदेश को "दक्षिण तिब्बत" मानता है, जबकि भारत इसे अपने राज्य के रूप में देखता है।
चीन का हालिया बयान और उसके संकेत
चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा "सीमा मुद्दे की जटिलता" को स्वीकार करना यह दर्शाता है कि बीजिंग इसे एक दीर्घकालिक चुनौती के रूप में देख रहा है। यह बयान कूटनीतिक दृष्टि से संतुलित है, लेकिन इसका उद्देश्य भारत पर दबाव डालना भी हो सकता है कि वह सीमित समाधान की ओर बढ़े, यानी चीन के अनुसार कोई समझौता किया जाए।
भारत-चीन संबंधों में तनाव
2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने भारत-चीन संबंधों में तनाव को बढ़ा दिया। इस घटना के बाद भारत ने चीन के प्रति अपने रुख को सख्त किया, जिसमें सीमा पर सैन्य तैनाती बढ़ाना और कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना शामिल है। इसके अलावा, 'वोकल फॉर लोकल' जैसे अभियानों के माध्यम से चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश की गई।
संबंध सुधारने के प्रयास
हालांकि, संबंध सुधारने के प्रयास जारी हैं और पिछले चार वर्षों में दोनों देशों के बीच कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हो चुकी हैं। कुछ क्षेत्रों से सेनाओं की वापसी हुई है, लेकिन कई स्थानों पर गतिरोध बना हुआ है, विशेषकर डेपसांग और डेमचोक जैसे संवेदनशील इलाकों में। भारत ने स्पष्ट किया है कि जब तक सीमाओं पर शांति नहीं होगी, तब तक द्विपक्षीय संबंध सामान्य नहीं हो सकते।
भविष्य की दिशा
आगे की राह क्या होगी? सीमा विवाद का समाधान तत्काल संभव नहीं दिखता, क्योंकि यह भू-राजनीति, राष्ट्रहित और क्षेत्रीय रणनीति से जुड़ा है। दोनों देशों को चाहिए कि वे पुराने समझौतों का सम्मान करते हुए विश्वास-निर्माण के उपायों को प्राथमिकता दें। "लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल" की स्पष्ट व्याख्या और निगरानी प्रणाली को मजबूत करना भी समाधान की दिशा में एक कदम हो सकता है।
रक्षा मंत्री का प्रस्ताव
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 26 जून को चिंगदाओ में अपने चीनी समकक्ष दोंग जून के साथ बैठक में सुझाव दिया था कि भारत और चीन को सीमाओं पर तनाव कम करने और मौजूदा व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कदम उठाने चाहिए। चीन की प्रवक्ता ने कहा कि दोनों देशों के बीच सीमा से जुड़े विषय पर विशेष प्रतिनिधि तंत्र की स्थापना की गई है।
विशेष प्रतिनिधियों की वार्ता
विशेष प्रतिनिधियों के स्तर पर 23 दौर की वार्ता के बावजूद सीमा मुद्दे को सुलझाने में हो रही देरी के बारे में प्रवक्ता ने कहा कि "सीमा का सवाल जटिल है और इसे सुलझाने में समय लगता है।" उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारत चीन के साथ संवाद जारी रखेगा और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखेगा।