भारत-चीन सीमा पर BRO द्वारा नई सड़क परियोजना का निर्माण
भारत की नई सड़क परियोजना
भारत चाइना बॉर्डर तक सड़क का निर्माण करेगा।
भारत सरकार सीमावर्ती क्षेत्रों में आधारभूत संरचना को सुदृढ़ करने के लिए लगातार महत्वपूर्ण निर्णय ले रही है। इसी क्रम में, नरेंद्र मोदी की सरकार उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा के निकट एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण सड़क परियोजना पर कार्य कर रही है। यह सड़क नीलापानी से मुलिंग ला तक बनाई जाएगी, जो सीधे भारत-चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की सीमा तक पहुंचेगी। इसकी लंबाई लगभग 32 किलोमीटर होगी और यह समुद्र तल से काफी ऊंचाई पर स्थित होगी।
यह परियोजना केवल सड़क निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की सीमा सुरक्षा रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव को भी दर्शाती है। इस सड़क का निर्माण बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन (BRO) द्वारा किया जाएगा, जो देश की सीमाओं पर कठिन इलाकों में सड़कें, पुल और सुरंगें बनाने के लिए जानी जाती है। इस परियोजना पर लगभग 104 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
एक मीडिया चैनल के अनुसार, BRO ने इस सड़क के लिए विशेषज्ञ सलाहकार सेवाएं भी मांगी हैं। इसका अर्थ है कि यह परियोजना अब केवल योजना के स्तर पर नहीं है, बल्कि इसे लागू करने के चरण में पहुंच चुकी है।
मुलिंग ला की ऊंचाई
16,134 फीट की ऊंचाई पर है मुलिंग ला
मुलिंग ला एक ऊंचाई पर स्थित पर्वतीय दर्रा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 16,134 फीट है। यह दर्रा उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्र को चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र से जोड़ता है। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से व्यापारियों, चरवाहों और स्थानीय निवासियों द्वारा उपयोग किया जाता रहा है। भारत और तिब्बत के बीच प्राचीन समय में इसी तरह के रास्तों से आवाजाही होती थी, जब सीमाएं इतनी सख्त नहीं थीं। लेकिन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह क्षेत्र सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यधिक संवेदनशील हो गया।
1962 के बाद का परिदृश्य
1962 के बाद क्यों पिछड़ गया यह इलाका
1962 के युद्ध के बाद भारत की सैन्य नीति में यह धारणा बनी कि सीमा के निकट अधिक सड़कें नहीं बनानी चाहिए, क्योंकि दुश्मन इनका लाभ उठा सकता है। इस कारण कई दशकों तक भारत ने सीमा के निकट सड़क निर्माण को प्राथमिकता नहीं दी। उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्य में इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, जहां कई क्षेत्रों में सड़कें बहुत कम हैं और सेना को पैदल या जानवरों के माध्यम से यात्रा करनी पड़ती है। हालांकि, अब यह सोच पूरी तरह बदल चुकी है।
मुलिंग ला तक पहुंचने में कठिनाई
मुलिंग ला तक पहुंचना कितना मुश्किल
वर्तमान में, मुलिंग ला बेस तक पहुंचने के लिए सेना को लगभग पांच दिन का पैदल सफर करना पड़ता है। सैनिकों को राशन, ईंधन, हथियार और अन्य आवश्यक सामान या तो कुलियों (पोर्टरों) से ढुलवाना पड़ता है या खच्चरों और घोड़ों के माध्यम से पहुंचाना पड़ता है।
सर्दियों में स्थिति और भी खराब हो जाती है, जब भारी बर्फबारी के कारण रास्ते पूरी तरह बंद हो जाते हैं। ऐसे समय में सेना को पहले से सामान जमा करना पड़ता है या हेलीकॉप्टर और विमान से सप्लाई करनी पड़ती है, जो महंगा और मौसम पर निर्भर होता है।
नई सड़क का महत्व
नई सड़क बन जाने के बाद क्या बदलेगा?
नीलापानी से मुलिंग ला तक बनने वाली यह सड़क पूरे परिदृश्य को बदल देगी। जहां पहले सैनिकों को पांच दिन लगते थे, वहीं अब कुछ घंटों में ही वहां पहुंचा जा सकेगा। सैनिकों की तैनाती, राहत और अतिरिक्त बल भेजना बहुत आसान हो जाएगा।
सड़क बन जाने से क्या कुछ बदलेगा :-
- चीन की किसी भी गतिविधि का त्वरित उत्तर दिया जा सकेगा
- सीमावर्ती क्षेत्रों में निरंतर उपस्थिति बनाए रखना आसान होगा
- सड़क बन जाने के बाद हवाई सप्लाई पर निर्भरता कम होगी
- यह सड़क सुरक्षा के साथ-साथ लागत में भी बचत करेगी
सीमा सुरक्षा में तेजी
2020 के बाद सीमा सुरक्षा में तेजी क्यों आई?
साल 2020 में पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन तनाव के बाद यह स्पष्ट हो गया कि सीमा पर मजबूत बुनियादी ढांचा कितना आवश्यक है। चीन ने तिब्बत में सड़क और रेल नेटवर्क पहले ही विकसित कर लिया था। भारत कई क्षेत्रों में पीछे था, और यह अंतर अब स्वीकार नहीं किया जा सकता था। इसी कारण 2020 के बाद सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क, पुल और सुरंग निर्माण की गति तेज कर दी गई। नीलापानी-मुलिंग ला सड़क इसी नीति का हिस्सा है।
उत्तराखंड में बदलाव की शुरुआत
उत्तराखंड में बदलाव की शुरुआत
लद्दाख की तुलना में उत्तराखंड में सीमा सड़कें अपेक्षाकृत कम थीं, जबकि यह राज्य भी चीन के साथ सीधी सीमा साझा करता है। यह नई परियोजना दर्शाती है कि सरकार अब उत्तराखंड को भी रणनीतिक दृष्टि से उतनी ही प्राथमिकता दे रही है जितनी लद्दाख को। यह सड़क भविष्य में उत्तराखंड के अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
मुलिंग ला तक सड़क निर्माण की चुनौतियाँ
मुलिंग ला तक सड़क बनाना आसान नहीं
- मुलिंग ला बहुत ऊंचाई पर है
- यहां का मौसम अत्यंत खराब रहता है
- भूस्खलन और हिमस्खलन का खतरा बना रहता है
- इसी कारण BRO ने विशेषज्ञ सलाहकार सेवाएं मांगी हैं।
