भारत-चीन संबंधों में नई दिशा: एस. जयशंकर की महत्वपूर्ण यात्रा
भारत और चीन के बीच तनाव के बीच, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया यात्रा ने संबंधों में सुधार के संकेत दिए हैं। यह यात्रा जयशंकर की पिछले छह वर्षों में पहली चीन यात्रा है। उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की और आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का सख्त रुख रखा। जयशंकर ने सीमा पर शांति और व्यापारिक हितों पर भी चर्चा की। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर बात की। जानें इस यात्रा के प्रमुख पहलुओं और भविष्य की संभावनाओं के बारे में।
Jul 15, 2025, 12:11 IST
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भारत-चीन संबंधों में सुधार की कोशिश
भारत और चीन के बीच पिछले कुछ वर्षों से चल रहे तनाव के बीच, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया यात्रा और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह यात्रा जयशंकर की पिछले छह वर्षों में पहली चीन यात्रा है और ऐसे समय में हुई है जब दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार के संकेत मिल रहे हैं। आपको याद दिला दें कि पूर्वी लद्दाख में लंबे समय तक चले सैन्य गतिरोध के बाद, दोनों देशों के संबंध काफी ठंडे पड़ गए थे। लेकिन अक्टूबर 2023 में सीमा विवाद पर महत्वपूर्ण सहमति बनी और तनाव कम करने के लिए सैन्य स्तर पर समाधान निकाला गया। इसके बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाकात की, जिससे उच्च स्तरीय संवाद की शुरुआत हुई। इसी क्रम में एस. जयशंकर की यह यात्रा हुई है।
जयशंकर की द्विपक्षीय मुलाकातें
जयशंकर ने अपने दौरे के दौरान सोमवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी और उपराष्ट्रपति से द्विपक्षीय मुलाकात की। आज बीजिंग में एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) की बैठक के दौरान, उन्होंने राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाकात की। इस मुलाकात की जानकारी साझा करते हुए जयशंकर ने एक्स पर लिखा, "आज बीजिंग में एससीओ के अन्य विदेश मंत्रियों के साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदेश उन्हें सौंपे और भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में हाल के विकास से अवगत कराया। इस दिशा में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को हम महत्व देते हैं।"
आतंकवाद पर भारत का सख्त रुख
एससीओ की बैठक में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का पक्ष मजबूती से रखा, यह दर्शाते हुए कि भारत किसी भी परिस्थिति में आतंकवाद को स्वीकार नहीं करेगा। यह बैठक विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसमें चीन और पाकिस्तान दोनों उपस्थित थे, जिन पर भारत आतंकवाद को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाता है। जयशंकर ने कहा कि एससीओ का मूल उद्देश्य आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरवाद के खिलाफ लड़ाई है, जो पाकिस्तान और चीन के लिए स्पष्ट चेतावनी थी।
भारत-चीन संबंधों में प्रगति
जयशंकर ने कहा कि पिछले नौ महीनों में भारत-चीन संबंधों में "अच्छी प्रगति" हुई है, जिसका मुख्य कारण सीमा पर शांति और तनाव कम करना है। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों के बीच मतभेदों को विवाद में नहीं बदलना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को संघर्ष का रूप नहीं लेना चाहिए। इसके साथ ही, उन्होंने चीन की निर्यात नीति और व्यापारिक प्रतिबंधों पर चिंता जताई, जो भारत के घरेलू निर्माण क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं।
भविष्य की संभावनाएं
जयशंकर ने आतंकवाद पर भारत की सख्त नीति को दोहराते हुए कहा कि यह साझा चिंता है और सभी सदस्य देशों को इसे मजबूती से लागू करना चाहिए। उन्होंने सीमा पार नदियों के मुद्दे पर सहयोग की आवश्यकता जताई और चीन से जल-स्तर आंकड़ों को साझा करने की बात की। इसके अलावा, उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा के फिर से शुरू होने के फैसले का स्वागत किया।
भारत-चीन संबंधों का संतुलित दृष्टिकोण
जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग ने साझा हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की और द्विपक्षीय संपर्क बढ़ाने पर सहमति जताई। बीजिंग में जारी एक आधिकारिक बयान में, वांग ने कहा कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में बड़े बदलाव आए हैं। उन्होंने कहा कि चीन और भारत को सद्भावना के साथ रहना चाहिए।
निष्कर्ष
एस. जयशंकर की यह यात्रा दर्शाती है कि भारत अब चीन के साथ अपने संबंधों को व्यावहारिक और संतुलित दृष्टिकोण से देख रहा है। सीमा पर शांति के साथ-साथ, भारत अपने व्यापारिक हितों और रणनीतिक चिंताओं को भी स्पष्ट रूप से रख रहा है। हालांकि संबंधों में पूरी तरह सामान्य स्थिति नहीं आई है, लेकिन वर्तमान संवाद भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत हैं।