भारत के प्रधान न्यायाधीश ने 'बुलडोजर न्याय' पर उठाए सवाल
भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने इटली में एक सभा में 'बुलडोजर न्याय' पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट के योगदान को उजागर किया। उन्होंने बताया कि कैसे पिछले 75 वर्षों में भारतीय संविधान ने गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। CJI ने कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने को असंवैधानिक बताया और कहा कि न्याय केवल एक विचार नहीं, बल्कि सामाजिक संरचनाओं में जड़ें जमाने की आवश्यकता है।
Jun 20, 2025, 12:30 IST
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प्रधान न्यायाधीश का महत्वपूर्ण भाषण
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने हाल ही में इटली में एक सभा में 'बुलडोजर न्याय' पर सवाल उठाते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगाया है। उन्होंने बताया कि कैसे कार्यपालिका को न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद बनने से रोका गया है। CJI ने पिछले 75 वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के योगदान को उजागर किया, जो गरीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण रहा है।
CJI गवई ने कहा कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए किसी के घर को गिराना असंवैधानिक है और यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा, "सरकार एक साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती।" उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था कि घर का निर्माण सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का एक महत्वपूर्ण पहलू है। उन्होंने यह भी कहा कि एक आम नागरिक के लिए घर का निर्माण वर्षों की मेहनत और सपनों का परिणाम होता है।
CJI गवई ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान ने पिछले 75 वर्षों में आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। उन्होंने बताया कि कई निदेशक सिद्धांतों को मौलिक अधिकारों के रूप में लागू किया गया है। CJI बीआर गवई ने मिलान कोर्ट ऑफ अपील में भारतीय संविधान के 75 वर्षों के सफर पर बात की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा और आजीविका से संबंधित सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों में बदलने का कार्य किया है।
उन्होंने कहा, "संविधान की 75 वर्षों की यात्रा सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में महत्वपूर्ण सफलताओं की कहानी है।" उन्होंने बताया कि प्रारंभिक पहलों में भूमि और कृषि सुधार कानून शामिल थे, जिनका प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। CJI गवई ने कहा कि शिक्षा में सकारात्मक कार्रवाई की नीतियां संविधान की समानता और सामाजिक-आर्थिक न्याय की प्रतिबद्धता का प्रमाण हैं।
उन्होंने कहा कि न्याय केवल एक अमूर्त विचार नहीं है, बल्कि इसे सामाजिक संरचनाओं और अवसरों के वितरण में शामिल किया जाना चाहिए। CJI ने कहा, "सामाजिक-आर्थिक न्याय किसी भी देश के लिए प्रगति का एक महत्वपूर्ण पहलू है।" उन्होंने चैंबर ऑफ इंटरनेशनल लॉयर्स को धन्यवाद देते हुए कहा कि भारतीय संविधान की यात्रा पिछले 75 वर्षों में महत्वपूर्ण सफलताओं की कहानी है।
उन्होंने गर्व से कहा कि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने इसके प्रावधानों का मसौदा तैयार करते समय सामाजिक-आर्थिक न्याय की आवश्यकता को ध्यान में रखा था। उन्होंने कहा, "मैंने हमेशा कहा है कि समावेश और परिवर्तन के इस दृष्टिकोण के कारण ही मैं आज यहां खड़ा हूं।"