भारत के प्रधान न्यायाधीश ने न्यायिक सक्रियता पर दी चेतावनी

भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने न्यायिक सक्रियता को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया, लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी दी कि इसे न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए। उन्होंने संविधान को एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में वर्णित किया, जो उत्पीड़ित समुदायों का उत्थान करती है। गवई ने अपने अनुभवों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि कैसे संविधान ने हाशिये पर पड़े समुदायों पर सकारात्मक प्रभाव डाला है।
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भारत के प्रधान न्यायाधीश ने न्यायिक सक्रियता पर दी चेतावनी

न्यायिक सक्रियता और न्यायिक आतंकवाद

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने देश में न्यायिक सक्रियता को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया, लेकिन साथ ही यह भी चेतावनी दी कि इसे न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए।


उन्होंने कहा कि न्यायिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए और इसे केवल तब लागू किया जाना चाहिए जब कोई कानून संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता हो।


गवई ने एक विधि समाचार पोर्टल के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, 'न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी, लेकिन इसे न्यायिक आतंकवाद में नहीं बदलना चाहिए। कभी-कभी, आप सीमाओं को पार करने की कोशिश करते हैं और ऐसे क्षेत्रों में प्रवेश करने का प्रयास करते हैं जहां न्यायपालिका को आमतौर पर नहीं जाना चाहिए।'


उन्होंने संविधान को 'स्याही से उकेरी गई एक शांत क्रांति' और एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में वर्णित किया, जो न केवल अधिकारों की सुरक्षा करती है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित समुदायों का उत्थान भी करती है।


मंगलवार को लंदन में ऑक्सफोर्ड यूनियन में 'प्रतिनिधित्व से कार्यान्वयन तक: संविधान के वादे को मूर्त रूप देना' विषय पर बोलते हुए, गवई ने हाशिये पर पड़े समुदायों पर संविधान के सकारात्मक प्रभाव को उजागर किया।


गवई भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे दलित और पहले बौद्ध न्यायाधीश हैं। उन्होंने कहा, 'कई दशकों पहले, भारत के लाखों नागरिकों को 'अछूत' कहा जाता था। उन्हें बताया जाता था कि वे अपवित्र हैं और वे अपने लिए नहीं बोल सकते। लेकिन आज हम यहां हैं, जहां उन्हीं लोगों से संबंधित एक व्यक्ति देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर आसीन होकर खुलकर बोल रहा है।'