भारत के कर्ज का विश्लेषण: मनमोहन और मोदी सरकार की तुलना

भारत के कर्ज की स्थिति पर एक गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिसमें मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की सरकारों के कार्यकाल की तुलना की गई है। जानें कि किस सरकार ने कितनी ऋण राशि ली और कैसे यह कर्ज देश की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर रहा है। इस लेख में आपको कर्ज के स्रोत, वित्तीय आंकड़े और दोनों सरकारों के बीच की महत्वपूर्ण तुलना मिलेगी।
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भारत के कर्ज का विश्लेषण: मनमोहन और मोदी सरकार की तुलना

केंद्रीय वित्त मंत्री का बजट 2025


केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में बजट 2025 पेश किया। इस बजट के दौरान यह जानकारी सामने आई है कि भारत पर कितना कर्ज है। दरअसल, भारत के बजट का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा ब्याज चुकाने में खर्च होता है।


सरकार की वित्तीय स्थिति

सरकार की आमदनी कम और खर्च अधिक है, जिसके चलते उसे कर्ज लेना पड़ता है। मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की सरकारों के 10 वर्षों की तुलना करते हैं कि किस सरकार में कितना कर्ज था।


भारत के कर्ज के स्रोत

कई स्रोतों से कर्ज लेती है भारत भारत सरकार विभिन्न स्रोतों से कर्ज लेती है, जिसमें घरेलू और विदेशी दोनों प्रकार के कर्ज शामिल हैं। घरेलू स्तर पर यह बीमा कंपनियों, आरबीआई, कॉरपोरेट कंपनियों या अन्य बैंकों से कर्ज लेती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, यह आईएमएफ, विश्व बैंक और अन्य बैंकों से कर्ज लेती है। वर्तमान में भारत पर कुल विदेशी कर्ज 712 अरब डॉलर है, जो कि 1.40 अरब की जनसंख्या के हिसाब से प्रति व्यक्ति 5 डॉलर या लगभग 430 रुपये है।


मोदी सरकार का कर्ज

मोदी सरकार ने कितना कर्ज लिया? बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 के अंत तक भारत का कर्ज 152.61 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। इसमें आंतरिक कर्ज लगभग 148 लाख करोड़ रुपये और विदेशी कर्ज करीब 5 लाख करोड़ रुपये है। यदि अतिरिक्त बजटीय संसाधन और नकद शेष को शामिल किया जाए, तो कुल कर्ज 155.77 लाख करोड़ रुपये होगा।


मनमोहन सिंह का कर्ज

मनमोहन सिंह ने कितना कर्ज लिया? 2014 तक भारत सरकार की ऋण स्थिति पर बजट दस्तावेज आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। दस्तावेज के अनुसार, 31 मार्च 2014 तक भारत सरकार पर 55.87 लाख करोड़ रुपये की देनदारियां थीं, जिसमें से 54.04 लाख करोड़ रुपये आंतरिक ऋण और 1.82 लाख करोड़ रुपये विदेशी ऋण था।


दोनों सरकारों की तुलना

दोनों सरकारों की तुलना 2005 से 2013 तक मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत का कुल कर्ज 17 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 50 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो कि 190% की वृद्धि दर्शाता है। वहीं, 2014 से सितंबर 2023 तक मोदी सरकार के 9 वर्षों में कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 161 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो कि 220% की वृद्धि है।