भारत की सैन्य शक्ति और शांति की अवधारणा पर जनरल अनिल चौहान का बयान

जनरल अनिल चौहान ने महू में आयोजित 'रण संवाद' सम्मेलन में भारत की शांति नीति और सैन्य शक्ति पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने चेतावनी दी कि शक्ति के बिना शांति केवल एक कल्पना है और पाकिस्तान को परोक्ष चेतावनी दी। सम्मेलन में भविष्य के युद्धों की प्रवृत्तियों पर भी चर्चा की जाएगी। जानें इस महत्वपूर्ण सेमिनार के बारे में और जनरल चौहान के विचारों के पीछे की रणनीति।
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भारत की सैन्य शक्ति और शांति की अवधारणा पर जनरल अनिल चौहान का बयान

भारत की शांति नीति पर जनरल चौहान का दृष्टिकोण

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को यह स्पष्ट किया कि भारत शांति का समर्थक है, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि इसे केवल शांतिवाद के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शक्ति के बिना शांति केवल एक कल्पना है। महू में आयोजित आर्मी वॉर कॉलेज के दो दिवसीय 'रण संवाद' सम्मेलन में बोलते हुए, जनरल चौहान ने पाकिस्तान को एक परोक्ष चेतावनी दी, यह बताते हुए कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत की सैन्य प्रतिक्रिया, जिसे ऑपरेशन सिंदूर कहा जाता है, अभी भी जारी है।


 


भारत की सैन्य रणनीति पर चर्चा


अनिल चौहान ने सम्मेलन में कहा कि भारत हमेशा शांति का पक्षधर रहा है। हम एक शांतिप्रिय राष्ट्र हैं, लेकिन यह गलतफहमी न रखें कि हम केवल शांतिवादी हो सकते हैं। उन्होंने एक लैटिन उद्धरण का उल्लेख किया, जिसका अर्थ है, 'यदि आप शांति चाहते हैं, तो युद्ध के लिए तैयार रहें'। इस सेमिनार का आयोजन 26-27 अगस्त को होगा, जिसमें सेवारत सैन्य पेशेवरों को रणनीतिक वार्ता में शामिल किया जाएगा, और अंतिम दिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह संबोधन देंगे।


 


जनरल चौहान ने भारत के हालिया सैन्य अभियानों का उल्लेख करते हुए कहा, "ऑपरेशन सिंदूर एक आधुनिक संघर्ष था, जिससे हमने कई महत्वपूर्ण सबक सीखे हैं। इनमें से अधिकांश पर काम चल रहा है, और कुछ पर काम पूरा हो चुका है। ऑपरेशन अभी भी जारी है।" उन्होंने चार प्रमुख प्रवृत्तियों पर भी प्रकाश डाला, जो उनके अनुसार भविष्य के संघर्षों को परिभाषित करेंगी।


 


भविष्य के युद्धों की प्रवृत्तियों पर चर्चा


उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि यह संगोष्ठी तकनीक के साथ-साथ भविष्य में युद्धों के प्रकार और उनकी पृष्ठभूमि पर भी ध्यान केंद्रित करेगी। उनके अनुसार, चार आवश्यक प्रवृत्तियाँ हैं, जिनकी वे भविष्यवाणी करते हैं। पहली प्रवृत्ति यह है कि राष्ट्रों और सरकारों में बल प्रयोग की प्रवृत्ति बढ़ रही है, क्योंकि आज राजनीतिक उद्देश्यों को अल्पकालिक संघर्षों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।