भारत की रेयर अर्थ मेटल्स में चीन से पिछड़ने की कहानी

भारत की रेयर अर्थ मेटल्स की यात्रा 1950 में शुरू हुई, लेकिन कई कारणों से यह चीन के मुकाबले पीछे रह गया है। अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद, वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलावों ने भारत की स्थिति को और कमजोर किया। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे भारत की तकनीकी निर्भरता और रेगुलेटरी बाधाएं इसे चीन से पीछे छोड़ रही हैं। साथ ही, आईआरईएल की भूमिका और भारत के पास मौजूद विकल्पों पर भी चर्चा की जाएगी।
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भारत की रेयर अर्थ मेटल्स में चीन से पिछड़ने की कहानी

रेयर अर्थ मेटल्स का महत्व

भारत की रेयर अर्थ मेटल्स में चीन से पिछड़ने की कहानी

रेयर अर्थ मेटल


अमेरिका में राजनीतिक बदलाव के बाद, वैश्विक अर्थव्यवस्था में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं, जिनका प्रभाव भारत समेत अन्य देशों पर पड़ा है। ट्रंप के कार्यकाल में टैरिफ नीतियों ने दुनिया को प्रभावित किया, और चीन ने रेयर अर्थ मेटल की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, भारत को कुछ छूट मिली है, लेकिन यह अपर्याप्त है। आइए समझते हैं कि भारत, चीन के मुकाबले रेयर अर्थ के क्षेत्र में कैसे पीछे रह गया।


भारत की रेयर अर्थ यात्रा

भारत की रेयर अर्थ यात्रा 1950 में इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड की स्थापना से शुरू हुई, जो वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई। लेकिन प्रारंभिक मांग की कमी और अन्य औद्योगिक खनिजों पर ध्यान केंद्रित करने के कारण भारत इस क्षेत्र में पीछे रह गया।


चीन पर निर्भरता

भारत की तकनीकी निर्भरता और कम मांग के कारण, मैग्नेट्स का आयात सस्ता पड़ा। भारत के रेयर अर्थ तत्व मोनाजाइट रेत में पाए जाते हैं, जिसमें थोरियम भी शामिल है। इसके लिए कड़े नियमों और लंबी प्रक्रियाओं ने भारत को इस क्षेत्र से दूर रखा।


IREL की भूमिका

आईआरईएल, जो परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत काम करता है, आंध्र प्रदेश में एक विशेष संयंत्र चला रहा है। सरकार ने चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश की है, लेकिन आईआरईएल पिछले एक साल से बिना चेयरमैन के चल रहा है।


भारत के पास विकल्प

भारत को रेयर अर्थ तत्वों की खनन और प्रसंस्करण के लिए प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने अभी तक पर्याप्त खोज नहीं की है, और आईआरईएल जैसे सार्वजनिक उपक्रमों को गहन खोज के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।