भारत की राजनीति में वंशवाद: एक गंभीर चुनौती
वंशवाद का प्रभाव
भारत की राजनीति में वंशवाद हमेशा से हावी रहा है.
कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने हाल ही में वंशवादी राजनीति को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बताया है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि भारत को 'वंश के बजाय योग्यता' को प्राथमिकता देनी चाहिए। थरूर के अनुसार, जब राजनीतिक शक्ति का निर्धारण परिवार के आधार पर होता है, तो यह लोकतंत्र की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और शासन की जवाबदेही को कमजोर करता है। उनके लेख ने एक बार फिर से भारत की राजनीति में वंशवाद की गहरी जड़ों को उजागर किया है।
भारत में राजनीति और वंशवाद का संबंध बहुत पुराना है। आज़ादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित होने के बावजूद, राजनीतिक शक्ति अक्सर परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती है। कई नेता अपने पद और प्रभाव को अगली पीढ़ी को सौंपते हैं, जिससे जनता के सामने पहचान और अनुभव का एक विकल्प प्रस्तुत होता है। लेकिन यह प्रक्रिया सवाल उठाती है... क्या राजनीति प्रतिभा से अधिक विरासत पर निर्भर है? क्या यह लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है?
इन सवालों के बीच एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और नेशनल इलेक्शन वॉच (NEW) की एक रिपोर्ट इस विषय पर एक ठोस तस्वीर पेश करती है। यह रिपोर्ट बताती है कि वंशवाद केवल चर्चा का विषय नहीं, बल्कि राजनीतिक संरचना का एक वास्तविक हिस्सा है।
जनप्रतिनिधियों में वंशवाद का प्रतिशत
देश के 21% जनप्रतिनिधि राजनीतिक परिवारों से
इस रिपोर्ट में 5,204 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से 1,107 यानी लगभग 21 प्रतिशत प्रतिनिधि ऐसे हैं जिनका संबंध किसी न किसी राजनीतिक परिवार से है। इसका अर्थ है कि हर पांच में से एक नेता राजनीति में पारिवारिक प्रभाव के तहत आया है। यह संख्या उस राजनीतिक ताने-बाने की गहराई को दर्शाती है जिसमें परिवार का महत्व संस्थागत स्तर तक स्थापित है।
रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट है कि यह प्रवृत्ति दशकों से जारी सामाजिक और राजनीतिक स्वीकृति का परिणाम है। नाम, प्रभाव और परिवार की पहचान कई जगहों पर उम्मीदवारों के लिए चुनाव जीतने में एक महत्वपूर्ण हथियार बन जाती है।
राष्ट्रीय स्तर पर वंशवाद का पैटर्न
राष्ट्रीय स्तर पर वंशवाद का कैसा है पैटर्न
ADR और NEW की रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में वंशवाद का स्तर 31% है। लोकसभा की 543 सीटों में से 167 सदस्य वंशवाद से प्रभावित हैं। वहीं, राज्य विधानसभा में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत के करीब है। राज्य विधानसभा के कुल 4,091 सदस्यों में से 816 सदस्य किसी न किसी राजनेता के परिवार से जुड़े हैं। राज्यसभा में यह आंकड़ा 21% है।
राज्यों में वंशवाद का स्तर
राज्यों की तस्वीर: आंध्र प्रदेश सबसे आगे
वंशवाद का स्तर हर राज्य में समान नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 604 जनप्रतिनिधियों में से 141 (23%) वंशवादी पाए गए। महाराष्ट्र में 403 में से 129 (32%), बिहार में 360 में से 96 (27%) और कर्नाटक में 326 में से 94 (29%) जनप्रतिनिधि राजनीतिक परिवारों से आते हैं।
हालांकि, अनुपात के दृष्टिकोण से आंध्र प्रदेश सबसे आगे है, जहां 255 सदस्यों में से 86 यानी 34 प्रतिशत जनप्रतिनिधि वंशवादी पृष्ठभूमि वाले हैं।
राजनीतिक दलों में वंशवाद
राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय पार्टियां, क्या है स्थिति?
रिपोर्ट में पार्टियों के आधार पर भी वंशवाद के स्तर का अध्ययन किया गया। राष्ट्रीय दलों में 3,214 प्रतिनिधियों में से 657 यानी 20 प्रतिशत वंशवादी हैं। कांग्रेस में यह दर 32 प्रतिशत है। भारतीय जनता पार्टी में यह संख्या 18 प्रतिशत है। क्षेत्रीय दलों में वंशवाद और अधिक दृढ़ता से दिखाई देता है।
महिलाओं में वंशवाद का प्रभाव
राजनीति में महिलाओं पर परिवारवाद हावी?
रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व में वंशवाद की दर पुरुषों की तुलना में दो गुना से अधिक है। कुल 4,665 पुरुष जनप्रतिनिधियों में से 856 यानी 18 प्रतिशत वंशवादी हैं, जबकि 539 महिला प्रतिनिधियों में से 251 यानी 47 प्रतिशत वंशवादी हैं।
वंशवाद के राजनीतिक कारण
वंशवाद के पीछे क्या है राजनीति कारण?
वंशवाद केवल एक सामाजिक पहचान का मुद्दा नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक और आर्थिक ढांचे भी जुड़े हैं। चुनाव लड़ने के लिए धन, नेटवर्क, संगठन, कार्यकर्ताओं और जनसंपर्क की आवश्यकता होती है, जिसे परिवार आधारित नेतृत्व आसानी से आगे बढ़ा सकता है।
