भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका: भूटान, सिंगापुर और जर्मनी के साथ संबंधों की मजबूती

भारत की वैश्विक भूमिका में तेजी से बदलाव आ रहा है, जिसमें भूटान, सिंगापुर और जर्मनी के साथ संबंधों की मजबूती शामिल है। भूटान के प्रधानमंत्री की यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों को दर्शाती है, जबकि सिंगापुर के प्रधानमंत्री की यात्रा आर्थिक और सामरिक सहयोग को बढ़ावा देती है। जर्मनी के विदेश मंत्री का दौरा भारत और यूरोप के बीच रणनीतिक साझेदारी को रेखांकित करता है। यह सब भारत को एक महत्वपूर्ण वैश्विक धुरी के रूप में स्थापित कर रहा है।
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भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका: भूटान, सिंगापुर और जर्मनी के साथ संबंधों की मजबूती

भारत की वैश्विक स्थिति में बदलाव

वर्तमान में, भारत की ओर एशिया से लेकर यूरोप तक कई देशों का झुकाव स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। भूटान के प्रधानमंत्री त्शेरिंग टोब्गे और सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेन्स वोंग की भारत यात्रा, साथ ही जर्मनी के विदेश मंत्री का हालिया दौरा, यह दर्शाता है कि भारत एक महत्वपूर्ण वैश्विक धुरी बनता जा रहा है।




भूटान के महामहिम जे खेनपो और प्रधानमंत्री त्शेरिंग टोब्गे की यात्रा का मुख्य उद्देश्य बिहार के राजगीर में रॉयल भूटान टेंपल के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेना है। यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि भारत-भूटान के गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों का प्रतीक भी है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री टोब्गे का अयोध्या में श्रीराम मंदिर का दर्शन, भारत-भूटान संबंधों को और भी गहरा बनाता है। यह यात्रा यह दर्शाती है कि भारत न केवल एक राजनीतिक साझेदार है, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का भी साझा संरक्षक है।


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सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेन्स वोंग की यह पहली यात्रा भारत के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत-सिंगापुर संबंधों के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर हो रही है। सिंगापुर, भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, और दोनों देशों के बीच आर्थिक, सामरिक और तकनीकी सहयोग में निरंतर वृद्धि हो रही है। प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री वोंग की बैठकें दोनों देशों के बीच कॉम्प्रिहेन्सिव स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप को नई ऊर्जा प्रदान करेंगी। इस यात्रा का महत्व इसलिए भी है क्योंकि सिंगापुर एशिया-प्रशांत क्षेत्र की राजनीति और व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है, और भारत यहाँ अपनी उपस्थिति को मजबूत करना चाहता है।




इसके अतिरिक्त, जर्मनी के विदेश मंत्री की यात्रा भारत और यूरोप के बीच रणनीतिक साझेदारी को दर्शाती है। जर्मनी, यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और तकनीक, ऊर्जा परिवर्तन और सुरक्षा मामलों में अग्रणी भूमिका निभाता है। वर्तमान में, जब यूरोप रूस-यूक्रेन युद्ध से प्रभावित है और चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित है, भारत एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में उभर रहा है।




पिछले कुछ वर्षों में, प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्वायत्तता और संप्रभुता को मजबूती से प्रस्तुत किया है। चाहे रूस से तेल और हथियार खरीदने पर अमेरिका की आलोचनाओं का सामना करना हो या वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को उठाना—भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह अब केवल “फॉलोअर” नहीं, बल्कि निर्णय निर्माता है। इसी आत्मविश्वासी विदेश नीति के परिणामस्वरूप, सभी देश अब भारत के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दे रहे हैं।




भूटान का सांस्कृतिक जुड़ाव, सिंगापुर का रणनीतिक सहयोग और जर्मनी का यूरोपीय दृष्टिकोण—ये तीनों यात्राएँ मिलकर यह संकेत देती हैं कि भारत अब केवल क्षेत्रीय शक्ति नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति की नई धुरी बन चुका है। आने वाले वर्षों में, भारत की यह बहुआयामी कूटनीति उसकी सबसे बड़ी ताकत साबित होगी।