भारत की पड़ोसी नीति: संकट में साथ देने वाले असली साथी

भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति ने संकट के समय पड़ोसी देशों के महत्व को उजागर किया है। ईरान और यूक्रेन के बीच संघर्ष ने यह स्पष्ट किया है कि अमेरिका की मदद केवल स्वार्थ पर आधारित होती है। जानें कैसे भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया है और क्यों ये संबंध अमेरिका के साथ संबंधों से अधिक महत्वपूर्ण हैं।
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भारत की पड़ोसी नीति: संकट में साथ देने वाले असली साथी

पड़ोसी देशों का महत्व

ईरान और यूक्रेन के बीच संघर्ष ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संकट के समय पड़ोसी देशों का सहयोग सबसे महत्वपूर्ण होता है। अमेरिका और पश्चिमी शक्तियाँ केवल अपने स्वार्थ के लिए मदद करती हैं, लेकिन मुश्किल समय में उनका साथ नहीं मिलता।


ब्रिक्स का बयान और भारत की स्थिति

हाल ही में, शंघाई सहयोग संगठन द्वारा इजरायल के हमलों की निंदा करने के बाद, भारत ने खुद को अलग कर लिया था। लेकिन जब ब्रिक्स ने ईरान के खिलाफ सैन्य हमलों पर चिंता जताई, तो भारत ने एकजुटता दिखाई। यह घटना उस समय हुई जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह चीन में एक बैठक में थे। यह दर्शाता है कि भारत के लिए क्षेत्रीय साझेदार अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी गठबंधन से अधिक महत्वपूर्ण हैं।


मोदी की पड़ोसी नीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से पदभार संभाला है, तब से उन्होंने 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति को अपनाया है। इस नीति के तहत, भारत ने श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों की आर्थिक मदद की है। इन देशों के लिए भारत की सहायता अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। हालांकि, चीन और पाकिस्तान की गतिविधियाँ भारत की इस नीति के लिए चुनौती बन गई हैं।


विशेषज्ञों की राय

अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर शांतनु मुखर्जी का कहना है कि अमेरिका का समर्थन हमेशा परिस्थितियों पर निर्भर करता है। रिटायर्ड ब्रिगेडियर आरपी सिंह ने भी कहा कि संकट के समय अमेरिका या फ्रांस आपकी सीमाओं की रक्षा नहीं करते, बल्कि पड़ोसी देश ही सहारा बनते हैं।


ईरान के प्रति भारत का झुकाव

भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद ईरान को प्राथमिकता दी है। इसके पीछे रणनीतिक, ऊर्जा और क्षेत्रीय हित हैं। भारत जानता है कि ईरान उसका पुराना और विश्वसनीय मित्र है, जबकि अमेरिका अपनी जरूरतों के अनुसार मित्र बदलता है।