भारत की नई सुरक्षा नीति: आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम

भारत की सुरक्षा नीति में नया मोड़
भारत की सुरक्षा नीति वर्तमान में एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रही है। हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने "Technology Perspective Capability Roadmap" का अनावरण किया है, जबकि नौसेना ने 2035 तक 200 से अधिक युद्धपोतों और पनडुब्बियों की योजना बनाई है। ये दोनों घटनाएँ मिलकर यह दर्शाती हैं कि भारत अब केवल एक आयातक नहीं, बल्कि वैश्विक रक्षा तकनीक और नौसैनिक शक्ति का निर्माता बनने की दिशा में अग्रसर है। इससे दुश्मन देशों में चिंता का माहौल बनना स्वाभाविक है।
युद्ध की नई परिभाषा
आज युद्ध का स्वरूप बदल चुका है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित हथियार, हाइपरसोनिक मिसाइलें, न्यूक्लियर-प्रोपल्शन जहाज़ और स्टेल्थ ड्रोन भविष्य के युद्धक्षेत्र को नया आकार दे रहे हैं। भारत की सेनाएँ इस वास्तविकता को स्वीकारते हुए दीर्घकालिक तैयारी कर रही हैं। थलसेना आधुनिक टैंकों की योजना बना रही है, वायुसेना उन्नत खुफिया प्रणालियों पर काम कर रही है, और नौसेना ब्लू-वॉटर क्षमता पर ध्यान केंद्रित कर रही है। यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि भारत अब सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री और प्रौद्योगिकीय परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहता है।
रक्षा मंत्रालय का रोडमैप
रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी "Technology Perspective Capability Roadmap" का उद्देश्य आने वाले पंद्रह वर्षों में भारत की सैन्य क्षमताओं का विकास करना है। यह दस्तावेज़ केवल तकनीकी सूची नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालिक दृष्टि है, जो बताती है कि भारत अपनी सैन्य क्षमताओं को कैसे विकसित करना चाहता है।
घरेलू रक्षा उद्योग को प्रोत्साहन
इस रोडमैप का मुख्य संदेश घरेलू रक्षा उद्योग के लिए है। भारत की रक्षा आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा अब तक आयात से पूरा होता रहा है, जिससे सामरिक स्वायत्तता वैश्विक हथियार आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रही है। रोडमैप में कहा गया है कि अब यह स्थिति बदलनी चाहिए। इसमें निजी उद्योगों को अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश करने और उत्पादन लाइनों को समयबद्ध तरीके से तैयार करने की आवश्यकता है।
आत्मनिर्भरता की आवश्यकता
आत्मनिर्भरता केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक सामरिक आवश्यकता बन चुकी है। चीन अपनी सैन्य प्रौद्योगिकी में तेजी से निवेश कर रहा है, और पाकिस्तान नए हथियारों की खरीद कर रहा है। ऐसे में भारत के लिए यह संभव नहीं है कि वह केवल विदेशी आयातों पर निर्भर रहे। आत्मनिर्भर रक्षा क्षमता का अर्थ है कि युद्ध के समय किसी और पर निर्भर न रहना।
आर्थिक प्रभाव
यह रोडमैप केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। रक्षा उद्योग का विस्तार रोजगार सृजन करेगा और टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स को अवसर प्रदान करेगा। यह भारत के लिए एक औद्योगिक क्रांति का अवसर है।
नौसेना की योजनाएँ
भारत आने वाले वर्षों में एक सशक्त और नेटवर्क आधारित "ब्लू वॉटर नेवी" बनाने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। लक्ष्य है कि 2035 तक भारतीय नौसेना के पास 200 से अधिक युद्धपोत और पनडुब्बियाँ हों। वर्तमान में भारतीय नौसेना के पास लगभग 140 युद्धपोत हैं, जिनमें 17 डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ शामिल हैं।
भविष्य की योजनाएँ
भारत को चार अगली पीढ़ी के 10,000 टन वज़न वाले डेस्ट्रॉयर की आवश्यकता है। इसके अलावा, स्वदेशी तकनीक से दूसरा एयरक्राफ्ट कैरियर भी चाहिए। 2037 तक नौसेना की शक्ति 230 युद्धपोतों तक पहुँचाने का अनुमान है।
नौसेना के विस्तार का औद्योगिक प्रभाव
जहाज़ निर्माण पर किया गया हर निवेश घरेलू अर्थव्यवस्था को 1.8 गुना तक प्रोत्साहन देता है। एक शिपयार्ड में सृजित एक नौकरी से पाँच से छह सहायक उद्योगों में रोजगार पैदा होता है।
चीन और पाकिस्तान की चुनौती
चीन पाकिस्तान की नौसैनिक क्षमताओं को भी मजबूत कर रहा है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि उसका पारंपरिक अंडरवाटर कॉम्बैट आर्म घटता जा रहा है।
निष्कर्ष
भारत आने वाले दशक में समुद्री सुरक्षा को प्राथमिकता देने जा रहा है। आत्मनिर्भरता अब विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन चुकी है। यदि यह दिशा ठोस कार्यान्वयन में बदली, तो भारत की पहचान एक सुरक्षित, आत्मनिर्भर और तकनीकी दृष्टि से अग्रणी राष्ट्र के रूप में होगी।