भारत की जनसंख्या में महत्वपूर्ण बदलाव: जन्म दर और प्रजनन दर में गिरावट
भारत की जनसंख्या में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहा है, जैसा कि नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (SRS) 2023 की रिपोर्ट में दर्शाया गया है। जन्म दर 19.1 से घटकर 18.4 हो गई है, जबकि कुल प्रजनन दर 2.0 से 1.9 पर आ गई है। उत्तर भारत में प्रजनन दर अधिक है, जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत में यह प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है। रिपोर्ट में बुजुर्ग आबादी के बढ़ने और लिंगानुपात में सुधार के संकेत भी हैं। जानें इस रिपोर्ट के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में और कैसे ये आंकड़े भविष्य की नीति निर्धारण में भूमिका निभा सकते हैं।
Sep 5, 2025, 11:41 IST
|

भारत की जनसंख्यात्मक स्थिति पर नई रिपोर्ट
भारत की जनसंख्या में धीरे-धीरे महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है। नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (SRS) 2023 की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, देश की सकल जन्म दर (CBR) 2022 में 19.1 से घटकर 2023 में 18.4 हो गई है। इसी तरह, कुल प्रजनन दर (TFR) भी पिछले दो वर्षों तक 2.0 पर स्थिर रहने के बाद 2023 में पहली बार घटकर 1.9 पर आ गई है। इसका मतलब है कि औसतन एक महिला अब दो से कम बच्चों को जन्म दे रही है। रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि उत्तर भारत में प्रजनन दर अपेक्षाकृत अधिक है, जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से काफी नीचे पहुँच चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए आवश्यक दर से देश का एक बड़ा हिस्सा नीचे जा चुका है। इसके अलावा, लिंगानुपात में आंशिक सुधार दिखता है, लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है। एक और महत्वपूर्ण पहलू है बुजुर्ग आबादी का बढ़ना।
भारत के महापंजीयक कार्यालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, सर्वाधिक CBR बिहार में 25.8 और सबसे कम तमिलनाडु में 12 दर्ज की गई है। बड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिहार ने सबसे अधिक TFR (2.8) दर्ज की, जबकि दिल्ली ने सबसे कम (1.2) दर्ज की।
रिपोर्ट के अन्य महत्वपूर्ण पहलू
रिपोर्ट में बताया गया है कि 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रतिस्थापन स्तर TFR 2.1 से कम दर्ज किया है। प्रतिस्थापन स्तर TFR का अर्थ है कि औसतन प्रत्येक महिला को इतने बच्चे जन्म देने चाहिए कि एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को प्रतिस्थापित कर सके। रिपोर्ट के अनुसार, देश की सकल मृत्यु दर (Crude Death Rate) 2023 में 6.4 रही, जो 2022 की तुलना में 0.4 अंक कम है। राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) में 2022 से 1 अंक की कमी आई है, जबकि 2020-22 और 2021-23 के बीच जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth) में 3 अंकों की वृद्धि हुई है।
महापंजीयक ने मई 2023 में चार वर्ष की देरी से 2021 के लिए नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS), नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) और मृत्यु के कारण का चिकित्सकीय प्रमाणीकरण (MCCD) की रिपोर्ट जारी की थी। इसके बाद जून में 2022 के लिए SRS, CRS और MCCD के आँकड़े जारी हुए थे। 2023 के SRS आँकड़ों में दिखा है कि देश में बुजुर्गों (60 वर्ष से अधिक आयु के लोग) का अनुपात एक वर्ष में 0.7 प्रतिशत अंक बढ़कर 9.7% हो गया है। सबसे अधिक बुजुर्ग आबादी केरल में (15%) है। असम (7.6%), दिल्ली (7.7%) और झारखंड (7.6%) ने सबसे कम बुजुर्ग अनुपात दर्ज किया।
TFR आँकड़ों से पता चला कि जिन राज्यों में TFR प्रतिस्थापन स्तर से अधिक है, वे सभी उत्तर भारत में हैं– बिहार (2.8), उत्तर प्रदेश (2.6), मध्य प्रदेश (2.4), राजस्थान (2.3) और छत्तीसगढ़ (2.2)। दूसरी ओर, सबसे कम TFR वाले राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं– दिल्ली (1.2), पश्चिम बंगाल (1.3), तमिलनाडु (1.3), महाराष्ट्र (1.4), और तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब (1.5)।
2023 के SRS की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की शिशु मृत्यु दर 2023 में 25 रही, जो पिछले पाँच वर्षों में 7 अंकों की गिरावट दर्शाती है। इसके बावजूद देश में हर 40 में से एक शिशु एक वर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि 2023 में जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth – SRB) 917 रहा, यानी प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 917 लड़कियाँ जन्मीं। आँकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ (974) और केरल (971) में सबसे अधिक SRB दर्ज किया गया, जबकि उत्तराखंड (868) में सबसे कम रहा। बिहार का SRB देश में सबसे कम स्तर पर रहा, हालाँकि यह 2023 में थोड़ा सुधरकर 897 तक पहुँचा। 2020 में यह 964 था, जो 2022 में घटकर 891 हो गया था। दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रहे जहाँ 2023 में SRB 900 से कम रहा।
हालांकि, जनसांख्यिकीय आँकड़े इस ओर संकेत करते हैं कि भारत की जनसंख्या अब धीमी गति से बढ़ रही है और आने वाले समय में यह स्थिर या घटती हुई भी दिख सकती है। जहाँ एक ओर यह विकास और संसाधन प्रबंधन के लिहाज़ से सकारात्मक प्रतीत हो सकता है, वहीं दूसरी ओर बुजुर्ग आबादी का दबाव, श्रमशक्ति में गिरावट और लिंगानुपात की विकृतियाँ नीति-निर्माताओं के लिए नई चुनौतियाँ लेकर आएँगी। इसलिए यह समय है जब सरकारों को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की नीतियों को सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण तक सीमित न रखकर, बदलते सामाजिक ढाँचे के अनुसार पुनर्गठित करना होगा। भारत की जनसंख्यिकी अब मात्र संख्याओं की कहानी नहीं रही; यह भविष्य की अर्थव्यवस्था और समाज की दिशा तय करने वाला सबसे बड़ा संकेतक बन चुकी है।