भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी: ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान

भारत की अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर अपनी ताकत का अहसास कराया है, जहां ग्रामीण क्षेत्रों और सरकारी खर्च ने विकास दर को 7.3% तक पहुंचाने की उम्मीद जताई है। पिछले साल की तुलना में यह वृद्धि उल्लेखनीय है, और विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि, निर्माण और अन्य क्षेत्रों में आई तेजी ने इस विकास को संभव बनाया है। जानें कैसे गांवों में बढ़ी आय और जीएसटी में बदलाव ने बाजार को सहारा दिया है।
 | 

भारत की जीडीपी ग्रोथ में नया उत्साह

भारतीय अर्थव्यवस्था ने एक बार फिर अपनी मजबूती का प्रदर्शन किया है। जबकि कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं मंदी का सामना कर रही हैं, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों और सरकारी खर्च ने अर्थव्यवस्था को नई ऊर्जा दी है। हालिया अनुमानों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भारत की विकास दर (GDP) 7.3% रहने की संभावना है। यदि यह सच होता है, तो यह सभी के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) 28 नवंबर को इसके आधिकारिक आंकड़े जारी करेगा, लेकिन मौजूदा रुझान अच्छे दिनों की ओर इशारा कर रहे हैं।


आरबीआई के पूर्वानुमान से बेहतर ग्रोथ

इस बार की वृद्धि कोई संयोग नहीं है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि विकास दर 6.9% से 7.7% के बीच रह सकती है, जिसका औसत 7.3% है। उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने 7% की वृद्धि का अनुमान लगाया था, लेकिन वास्तविकता इससे बेहतर दिख रही है। पिछले साल इसी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 5.6% थी, जबकि इस साल अप्रैल-जून तिमाही में यह 7.8% थी, जो पिछले पांच तिमाहियों में सबसे अधिक थी। केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा के अनुसार, कृषि, निर्माण और निर्माण जैसे क्षेत्रों में आई तेजी ने अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है।


गांवों में बढ़ी आय, बाजार में आई रौनक

इस बार की विकास कहानी के असली नायक गांव हैं। क्वांटइको रिसर्च की अर्थशास्त्री युविका सिंघल के अनुसार, महंगाई में कमी और ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी में वृद्धि ने लोगों की खर्च करने की क्षमता को बढ़ाया है। इसके अलावा, आयकर में मिली राहत और अच्छी फसल की उम्मीद ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारी बारिश और अमेरिकी टैरिफ जैसी चुनौतियों के बावजूद, भारतीय बाजार में मांग बनी रही है। यह स्पष्ट है कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खपत में मजबूती आई है। जब आम लोग खर्च करते हैं, तभी अर्थव्यवस्था का पहिया घूमता है।


टैक्स में बदलाव का सकारात्मक प्रभाव

सितंबर में जीएसटी (GST) दरों में बदलाव ने भी बाजार को सहारा दिया। 22 सितंबर से लागू हुए 5% और 18% के सरल जीएसटी ढांचे ने कई घरेलू सामानों को सस्ता किया। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि त्योहारों से पहले दुकानदारों द्वारा जमा किया गया स्टॉक और जीएसटी के युक्तिकरण ने आर्थिक गतिविधियों को तेज किया है। इसका सीधा असर औद्योगिक उत्पादन पर पड़ा है। इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) में औसतन 4.1% की वृद्धि दर्ज की गई, जो पिछले साल 2.7% थी। वहीं, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 4.9% की वृद्धि हुई है।


निर्यात में सुधार, लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं

निर्यात के मोर्चे पर भारत ने वापसी की है। मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट में 8.8% की वृद्धि हुई है, जबकि पिछले साल इसमें 7% की गिरावट थी। हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ और रूसी तेल पर पेनल्टी एक चुनौती बनी हुई है। नोमुरा के अर्थशास्त्री औरोदीप नंदी का मानना है कि यदि अमेरिका के साथ व्यापार समझौता हो जाता है, तो निर्यातकों को बड़ी राहत मिल सकती है। अगले वित्त वर्ष (FY26) के लिए भी तस्वीर सकारात्मक है। अर्थशास्त्री 6.9% की वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं, जबकि विश्व बैंक और IMF ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक माना है।