भारत की अर्थव्यवस्था 2025: वैश्विक मंच पर नई ऊंचाइयों की ओर
भारत की आर्थिक सफलता की कहानी
भारत का दुनिया में डंका
वर्ष 2025 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत ने न केवल अपनी विकास दर को बनाए रखा, बल्कि जापान को पीछे छोड़ते हुए चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव भी हासिल किया है। अमेरिकी टैरिफ और भू-राजनीतिक तनावों के बीच, यह उपलब्धि हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।
यह वर्ष केवल आंकड़ों का खेल नहीं था, बल्कि आम जनता के लिए महंगाई में राहत और कई देशों के साथ व्यापारिक समझौतों का भी गवाह बना। आइए, विस्तार से जानते हैं कि 2025 में देश की आर्थिक स्थिति कैसी रही और इसका आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ा।
भारत की वैश्विक पहचान
इस वर्ष की सबसे बड़ी खबर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़ों से आई, जिसमें भारत की नॉमिनल जीडीपी 4.187 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई। यह आंकड़ा जापान के 4.186 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक है। अर्थशास्त्री इसे भारत की बढ़ती वैश्विक स्थिति का संकेत मानते हैं, जो घरेलू मांग और निवेश में वृद्धि का परिणाम है।
महंगाई में कमी, थाली हुई सस्ती
आम जनता के लिए राहत की खबर महंगाई में कमी रही। 2025 में खुदरा महंगाई दर में उल्लेखनीय गिरावट आई, और अक्टूबर में यह रिकॉर्ड 0.25 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसका सीधा असर खाद्य पदार्थों की कीमतों पर पड़ा, जिससे सब्जियों, अनाज और दालों की कीमतें कम हुईं। खाद्य महंगाई दर नकारात्मक (माइनस 5.02 प्रतिशत) हो गई। इसके अलावा, सरकार द्वारा जीएसटी में किए गए बदलावों ने भी महंगाई को नियंत्रित करने में मदद की।
भारत की नई व्यापारिक साझेदारियां
व्यापार के क्षेत्र में, यह वर्ष भारत के लिए 'कनेक्टिविटी' का वर्ष रहा। जुलाई में ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) ने भारतीय निर्यातकों के लिए नए अवसर खोले। इस समझौते से भारतीय उत्पादों को ब्रिटेन के बाजार में पहुंचने में आसानी हुई।
स्विट्जरलैंड और नॉर्वे जैसे देशों के साथ यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) का समझौता भी 1 अक्टूबर से लागू हुआ, जो अगले 15 वर्षों में 100 अरब डॉलर के निवेश का वादा करता है। इसके अलावा, न्यूजीलैंड और ओमान के साथ हुए समझौतों ने भारत की व्यापारिक स्थिति को मजबूत किया।
रुपये की चुनौतियां
हालांकि, कुछ चिंताएं भी बनी रहीं। अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर लगाए गए कड़े टैरिफ ने निवेशकों की भावनाओं को प्रभावित किया, जिससे रुपये की कीमत में गिरावट आई। साल भर में रुपये ने डॉलर के मुकाबले लगभग 4-5 प्रतिशत की कमजोरी दिखाई।
इन चुनौतियों के बावजूद, भारत सरकार ने टैक्स संग्रह में वृद्धि की, जिससे राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने में मदद मिली। विश्व बैंक और IMF जैसे संस्थानों ने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बताया है, जो भविष्य में भी अपनी गति बनाए रखने के लिए तैयार है।
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