भारत का रूस से कच्चे तेल आयात: आर्थिक और रणनीतिक दृष्टिकोण
भारत का रूस से कच्चे तेल आयात जारी
भारत ने कच्चे तेल की खरीद में अपनी नीति को बनाए रखते हुए रूस से बड़े पैमाने पर आयात जारी रखा है। हेलसिंकी स्थित ऊर्जा और स्वच्छ वायु पर शोध केंद्र (CREA) के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में भारत ने रूस से 2.5 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा, जिससे वह चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बना। इस दौरान, रूस से भारत के कुल फॉसिल ईंधन आयात का मूल्य 3.1 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
चीन और अन्य देशों की तुलना
चीन ने इसी अवधि में 5.8 अरब डॉलर का फॉसिल ईंधन आयात किया, जबकि तुर्की और यूरोपीय संघ ने क्रमशः 2.7 अरब डॉलर और 1.1 अरब डॉलर का आयात किया। पश्चिमी देशों के लगातार अनुरोधों के बावजूद, भारत और चीन ने रूसी तेल खरीदने के अपने निर्णय में कोई बदलाव नहीं किया है। अमेरिका द्वारा रूस की प्रमुख कंपनियों पर लगाए गए प्रतिबंधों का प्रभाव दिसंबर के आयात आंकड़ों में देखने की संभावना है।
भारत का ऊर्जा आयात
इस अवधि में भारत ने 351 मिलियन डॉलर का रूसी कोयला, 222 मिलियन डॉलर के तेल उत्पाद, 929 मिलियन डॉलर का पाइपलाइन गैस, और 572 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त कच्चा तेल भी खरीदा। तुर्की रूसी तेल उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक बना, जबकि यूरोपीय संघ ने मुख्यतः LNG और गैस का आयात किया।
ट्रंप के दावों की वास्तविकता
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार यह कहा है कि उनके दबाव में भारत ने रूस से तेल खरीदना कम कर दिया है। लेकिन हाल के आंकड़े इस दावे को केवल राजनीतिक बयानबाजी साबित करते हैं। वास्तव में, भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा है और पिछले महीनों में वह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया है। यह दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार भू-राजनीति से प्रभावित होता है, लेकिन राष्ट्रीय हित हमेशा प्राथमिकता रखते हैं।
भारत के निर्णय के पीछे के कारण
भारत के इस निर्णय के पीछे कई आर्थिक और रणनीतिक कारण हैं। रूस से मिलने वाला डिस्काउंटेड कच्चा तेल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर जब वैश्विक ऊर्जा कीमतों में अस्थिरता बनी हुई है। भारत की ऊर्जा आवश्यकताएँ इतनी विशाल हैं कि वह किसी एक देश या समूह की मांगों के अनुसार अपने आयात स्रोतों को अचानक सीमित नहीं कर सकता। यही कारण है कि पश्चिमी देशों के अनुरोधों के बावजूद भारत ने अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं किया।
मोदी और पुतिन के बीच संबंध
मोदी और पुतिन के बीच की व्यक्तिगत समीपता और भारत-रूस संबंधों का ऐतिहासिक महत्व भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। दशकों से यह संबंध ऊर्जा, रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में मजबूत बना हुआ है। यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक माहौल भले ही बदल गया हो, लेकिन भारत-रूस के बीच सहयोग जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच संवाद और विश्वास हाल के वर्षों में और मजबूत हुआ है।
भारत की बहुपरकारी नीति
भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि वह किसी भू-राजनीतिक खेमेबंदी का हिस्सा नहीं है, बल्कि मल्टी-अलाइनमेंट नीति का पालन करता है। अमेरिका, रूस, यूरोप और खाड़ी देशों के साथ संबंध एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक माने जाते हैं। रूस से छूट पर मिलने वाला तेल भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में मदद करता है, और यही व्यावहारिकता भारत की विदेश नीति का मूल आधार है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, ट्रंप के राजनीतिक दावों के विपरीत, भारत न तो रूस से तेल खरीदना बंद करने जा रहा है और न ही उसकी रूस के साथ ऊर्जा साझेदारी में कोई ठंडापन आया है। मोदी और पुतिन के बीच की रणनीतिक समझ आज भी बरकरार है और आर्थिक आंकड़े इसे प्रमाणित करते हैं। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शब्दों से अधिक मायने आंकड़ों और निर्णयों के होते हैं, और इन दोनों मोर्चों पर भारत की स्थिति स्पष्ट है।
