भारत का ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात: एशिया में सामरिक संतुलन का नया अध्याय

भारत ने ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्यात की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिससे वह एशिया में एक विश्वसनीय रक्षा निर्यातक के रूप में उभर रहा है। वियतनाम और इंडोनेशिया को मिसाइलों का निर्यात, भारत की बदलती सामरिक भूमिका का संकेत है। रूस का समर्थन और स्वदेशी रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता, भारत की नई पहचान को मजबूत कर रहे हैं। यह बदलाव न केवल भारत की विदेश नीति में, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी महत्वपूर्ण स्थान दिलाएगा।
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भारत का ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात: एशिया में सामरिक संतुलन का नया अध्याय

भारत की सामरिक भूमिका में बदलाव

इतिहास यह दर्शाता है कि वैश्विक राजनीति में शक्ति केवल भाषणों से नहीं बनती, बल्कि यह कारखानों में निर्मित होती है, प्रयोगशालाओं में परखी जाती है और युद्धक प्रणालियों के माध्यम से राष्ट्र की संप्रभुता को मजबूती प्रदान करती है। वर्तमान में भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। हाल ही में, भारत ने ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्यात की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, और अब इसे वियतनाम और इंडोनेशिया को निर्यात करने की योजना बनाई जा रही है।


सामरिक धुरी का निर्माण

भारत केवल व्यापारिक समझौतों पर निर्भर नहीं है, बल्कि एशिया की सामरिक धुरी को नए सिरे से आकार दे रहा है। दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक नीति से परेशान देश अब भारत की ओर देख रहे हैं, जो अब केवल रक्षा आयातक नहीं, बल्कि एक विश्वसनीय रक्षा निर्यातक के रूप में उभर रहा है। वियतनाम और इंडोनेशिया को ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात इस बदलाव का स्पष्ट संकेत है। यह सौदा चार हजार करोड़ रुपये से अधिक का है, लेकिन इसका वास्तविक मूल्य इससे कहीं अधिक है। यह भारत की बदली हुई मानसिकता और रणनीतिक भूमिका का प्रमाण है।


रूस का समर्थन

रूस की सहमति इस प्रक्रिया को और भी महत्वपूर्ण बनाती है। भारत-रूस संयुक्त उद्यम द्वारा विकसित ब्रह्मोस पर मॉस्को की हरी झंडी यह दर्शाती है कि भारत अब केवल लाइसेंस पर हथियार बनाने वाला देश नहीं, बल्कि स्वतंत्र निर्णय लेने वाली शक्ति बन चुका है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उनके रूसी समकक्ष Andrei Belousov के बीच बातचीत के बाद नो ऑब्जेक्शन की औपचारिक मुहर लगना केवल समय की बात है।


सुपरसोनिक मिसाइल का महत्व

यह संयोग नहीं है कि वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देश भारत की ओर देख रहे हैं। ये सभी चीन के दबाव और समुद्री घुसपैठ से परेशान हैं। ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें केवल हथियार नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी हैं। माच 2.8 की गति से वार करने वाली यह मिसाइल दुश्मन को सोचने का मौका नहीं देती। जब भारत इसे निर्यात करता है, तो वह केवल मिसाइल नहीं, बल्कि सामरिक संतुलन भी प्रदान करता है।


ब्रह्मोस की सफलता

भारत के लिए ब्रह्मोस की कहानी केवल विदेश नीति तक सीमित नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सुखोई 30 एमकेआई से दागी गई ब्रह्मोस मिसाइलों ने यह साबित कर दिया था कि यह प्रणाली केवल शो पीस नहीं, बल्कि युद्ध में परखी गई मारक क्षमता है। पाकिस्तान के भीतर गहरे लक्ष्यों पर सटीक प्रहार ने यह दिखा दिया था कि भारत की पारंपरिक शक्ति अब निर्णायक हो चुकी है।


रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता

भारतीय थलसेना, नौसेना और वायुसेना ने अब तक करीब साठ हजार करोड़ रुपये के अनुबंध ब्रह्मोस एयरोस्पेस के साथ किए हैं। यह मिसाइल भारत की प्राथमिक गैर परमाणु स्ट्राइक क्षमता बन चुकी है। 450 किलोमीटर की रेंज और भविष्य में 800 किलोमीटर तक जाने की योजना भारत को एक नई श्रेणी में खड़ा कर देती है।


आधुनिक रक्षा प्रणाली का विकास

आकाश एयर डिफेंस सिस्टम और पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट सिस्टम जैसे स्वदेशी हथियारों का निर्यात भी भारत की बदलती पहचान को मजबूत करता है। आर्मेनिया जैसे देश आज भारत के प्रमुख ग्राहक हैं। यह वही भारत है जो कभी बंदूक की गोलियों के लिए भी विदेश पर निर्भर था।


लखनऊ की रक्षा औद्योगिक क्रांति

नई दिल्ली की रणनीति को लखनऊ में लागू किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर का केंद्र बन चुका ब्रह्मोस एयरोस्पेस इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग फैसिलिटी केवल एक फैक्ट्री नहीं, बल्कि भारत की औद्योगिक और सामरिक क्रांति का प्रतीक है। लखनऊ कानपुर हाईवे पर फैला दो सौ एकड़ का यह परिसर दिखाता है कि रक्षा उत्पादन अब केवल तटीय या पारंपरिक औद्योगिक शहरों की बपौती नहीं रहा।


योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में ऐतिहासिक क्षण

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में जब पहली खेप भारतीय सशस्त्र बलों के लिए रवाना हुई, तो यह केवल मिसाइलों की डिलीवरी नहीं थी, बल्कि उत्तर प्रदेश की छवि का पुनर्जन्म था। यह घोषणा थी कि अब यह राज्य भी राष्ट्रीय सुरक्षा का निर्माणकर्ता है। ब्रह्मोस मिसाइल एक अकेला उत्पाद नहीं है, बल्कि यह दो सौ से अधिक भारतीय उद्योगों, निजी और सार्वजनिक कंपनियों तथा एमएसएमई का संयुक्त प्रयास है।


आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम

लखनऊ यूनिट में पांच सौ लोग काम कर रहे हैं, लेकिन अप्रत्यक्ष रोजगार की संख्या हजारों में है। यह वही रक्षा उत्पादन है जो केवल हथियार नहीं बनाता, बल्कि कौशल, तकनीक और आत्मविश्वास पैदा करता है। यहां कोई स्थानीय कोटा नहीं है, केवल मेरिट है। यह संदेश भी उतना ही आक्रामक है जितनी मिसाइल की मारक क्षमता।


भविष्य की मिसाइल तकनीक

लखनऊ फैसिलिटी का असली भविष्य ब्रह्मोस एनजी में छिपा है। हल्की, छोटी और अधिक संख्या में तैनात की जा सकने वाली यह मिसाइल युद्ध की प्रकृति बदल देगी। सुखोई 30 पर एक के बजाय कई मिसाइलें, जहाजों और लांचरों पर दोगुनी मारक क्षमता, यह सब भारत को लागत में कमी और प्रभाव में वृद्धि का लाभ देगा। यह वही सोच है जो आत्मनिर्भर भारत को केवल नारा नहीं, बल्कि रणनीति बनाती है।


भारत की नई पहचान

भारत आज भी दुनिया के शीर्ष हथियार आयातकों में है, लेकिन उससे भी बड़ी सच्चाई यह है कि भारत अब हथियार बेचने वाले देशों की पंक्ति में खड़ा हो चुका है। चौबीस हजार करोड़ रुपये से अधिक का रक्षा निर्यात, अस्सी से अधिक देशों तक पहुंच और लगातार बढ़ती मांग यह साबित करती है कि यह यात्रा अब और तेजी से आगे बढ़ने वाली है। ब्रह्मोस का वियतनाम और इंडोनेशिया जाना केवल सौदा नहीं, बल्कि यह चीन को दिया गया स्पष्ट संदेश है कि एशिया में संतुलन अब एकतरफा नहीं रहेगा।


भारत की नई कहानी

जब मिसाइलें उत्तर प्रदेश की धरती से निकलकर दक्षिण चीन सागर तक पहुंचने की तैयारी में हैं, तब यह स्पष्ट है कि भारत की कहानी बदल चुकी है। अब भारत रक्षा बाजार में ग्राहक नहीं, बल्कि विक्रेता है। यही बदलाव आने वाले दशकों की वैश्विक राजनीति में भारत को निर्णायक स्थान दिलाएगा।