भारत का आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख: मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत सरकार ने बेल्जियम से चोकसी के प्रत्यर्पण के लिए आश्वासन दिया है कि उसकी न्यायिक प्रणाली अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है। यह कदम न केवल एक भगोड़े को वापस लाने का प्रयास है, बल्कि यह भारत की न्यायिक साख को भी मजबूत करेगा। जानें इस प्रक्रिया के बारे में और कैसे यह आर्थिक अपराधियों के लिए चेतावनी बन सकता है।
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भारत का आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख: मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण

भारत की नई न्यायिक नीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है कि "जो भी देश को लूटता है, उसे लौटाना होगा।" यह केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि भारत की नई कार्यशैली का प्रतीक बन चुका है। पीएनबी घोटाले के आरोपी मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण इस संदर्भ में महत्वपूर्ण है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि देश की न्यायिक प्रक्रिया और कूटनीतिक सक्रियता के चलते कोई भी आर्थिक अपराधी विदेश भागकर सुरक्षित नहीं रह सकता। पहले ऐसे मामलों में कानूनी पेचीदगियों के कारण अपराधियों को लाभ मिलता था, लेकिन अब स्थिति बदल रही है।


मोदी सरकार की रणनीति

मोदी सरकार का ध्यान दो मुख्य बिंदुओं पर है— अपराधियों को वापस लाना, चाहे इसके लिए अंतरराष्ट्रीय अदालतों का सामना करना पड़े। साथ ही, देश की हर पाई की वसूली करना ताकि जनता का विश्वास बना रहे कि उनका धन सुरक्षित है और कोई भी भ्रष्टाचार से नहीं बच सकता। मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण से यह संदेश जाएगा कि भारत अपनी न्यायिक और कूटनीतिक ताकत का उपयोग दृढ़ता से कर रहा है। यह केवल एक व्यक्ति को सज़ा दिलाने का मामला नहीं है, बल्कि यह विश्वास दिलाने का भी है कि "न कोई कानून से ऊपर है और न कोई इतना शक्तिशाली कि न्याय से बच सके।" इस घटनाक्रम से मोदी का यह दावा और मजबूत होता है कि आर्थिक अपराधियों को अब विदेशी धरती पर भी पनाह नहीं मिलेगी।


बेल्जियम में प्रत्यर्पण की प्रक्रिया

भारत सरकार मेहुल चोकसी के प्रत्यर्पण के लिए बेल्जियम सरकार से लगातार संपर्क में है। गृह मंत्रालय ने हाल ही में बेल्जियम को आश्वासन दिया है कि चोकसी को भारत में हिरासत में रखने की व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होगी। यह कदम केवल एक भगोड़े को वापस लाने का प्रयास नहीं, बल्कि भारत की न्यायिक साख और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं की परीक्षा भी है।


मानवाधिकारों की चिंताएँ

विदेशी अदालतों में प्रत्यर्पण की सबसे बड़ी बाधा मानवाधिकारों से जुड़ी चिंताएँ रही हैं। पश्चिमी देश इस बात पर जोर देते हैं कि अभियुक्त को अमानवीय या अपमानजनक स्थिति का सामना न करना पड़े। भारत ने इस चुनौती का सामना करते हुए बेल्जियम को मुंबई की आर्थर रोड जेल की बैरक नंबर 12 का विस्तृत विवरण भेजा है। इसमें बंदियों के लिए पर्याप्त जगह, साफ-सुथरी व्यवस्था और शौचालय की सुविधा है। इसके अलावा, दिन में तीन बार संतुलित भोजन और कैंटीन से फल-स्नैक्स का विकल्प भी उपलब्ध है।


आर्थिक अपराधियों के लिए चेतावनी

मेहुल चोकसी और नीरव मोदी पर 13,000 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी का आरोप है। यदि चोकसी भारत लौटता है, तो यह उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण होगी जिनका धन इस घोटाले में फंसा है। भारत यह दिखाना चाहता है कि उसकी न्यायिक और कारागार प्रणाली वैश्विक मानकों पर खरा उतर सकती है। हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या भारत की सभी जेलें इसी स्तर पर सुधारी जा सकती हैं या यह विशेष व्यवस्था केवल "उच्च प्रोफ़ाइल" मामलों तक सीमित रहेगी।


न्यायिक प्रणाली की मजबूती

मेहुल चोकसी का प्रत्यर्पण भारत के लिए केवल कानूनी जीत नहीं होगी, बल्कि यह एक प्रतीक होगा कि न कोई इतना बड़ा है कि कानून से बच सके और न कोई इतना ताकतवर कि न्याय को चुनौती दे सके। यदि बेल्जियम की अदालत भारत के आश्वासनों से संतुष्ट होती है और चोकसी को भारत भेजा जाता है, तो यह कदम न केवल आर्थिक अपराधियों के लिए चेतावनी होगा, बल्कि यह भी साबित करेगा कि भारत अब अपनी न्याय व्यवस्था को लेकर किसी तरह की शंका या संदेह की गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहता।