भारत और अमेरिका का संयुक्त पृथ्वी अवलोकन उपग्रह निसार का सफल प्रक्षेपण
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने नासा के साथ मिलकर निसार उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया है। यह उपग्रह पृथ्वी का अध्ययन करने के लिए सूर्य-समकालिक कक्षा में भेजा गया है। इसकी विशेषताएँ और कार्यक्षमता इसे जलवायु परिवर्तन, भूस्खलन, और आपदा प्रबंधन में मदद करने में सक्षम बनाती हैं। जानें इस महत्वपूर्ण मिशन के बारे में और इसके द्वारा मिलने वाले डेटा के फायदों के बारे में।
Jul 30, 2025, 18:05 IST
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भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष सहयोग
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने के लिए एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया। यह प्रक्षेपण भारतीय समयानुसार शाम 5:40 बजे हुआ। निसार उपग्रह, जो नासा और इसरो द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है, मानव कौशल और एक दशक से अधिक समय से चल रहे सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर के आदान-प्रदान का परिणाम है। इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य-समकालिक कक्षा से पृथ्वी का विस्तृत अध्ययन करना है। नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार उपग्रह, जिसे निसार कहा जाता है, का वजन 2,393 किलोग्राम है। इसे श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट द्वारा पूर्व निर्धारित समय पर प्रक्षिप्त किया गया।
प्रक्षेपण की प्रक्रिया और उपग्रह की विशेषताएँ
इसरो ने जानकारी दी कि प्रक्षेपण की उल्टी गिनती 29 जुलाई को दोपहर 2:10 बजे शुरू हुई थी। इस मिशन को प्रक्षेपण, परिनियोजन, कमीशनिंग और वैज्ञानिक चरणों में विभाजित किया गया है। निसार उपग्रह में 12 मीटर का एक विशेष एंटिना है, जिसे नौ मीटर तक बढ़ाया जा सकता है। यह हर 12 दिन में 240 किलोमीटर तक की तस्वीरें लेने में सक्षम है और पूरी पृथ्वी की तस्वीरें लेने की क्षमता रखता है। यह मिशन पांच वर्षों तक कार्य करेगा और इसके द्वारा प्राप्त डेटा सभी के लिए मुफ्त और ओपन होगा। निसार की लागत लगभग 13 हजार करोड़ रुपये है।
निसार उपग्रह की क्षमताएँ
यह नासा और इसरो के बीच की पहली साझेदारी है, जिसमें जीएसएलवी रॉकेट का उपयोग करके उपग्रह को सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा में भेजा जा रहा है। आमतौर पर, ऐसे उपग्रहों को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी) के माध्यम से प्रक्षिप्त किया जाता है। निसार उपग्रह किसी भी मौसम में और दिन-रात 24 घंटे पृथ्वी की तस्वीरें ले सकता है। यह भूस्खलन का पता लगाने, आपदा प्रबंधन में सहायता करने और जलवायु परिवर्तन की निगरानी करने में भी सक्षम है। इसके माध्यम से हिमालय और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में वनों में होने वाले बदलाव, पर्वतों की स्थिति में परिवर्तन और हिमनद की गतिविधियों का अध्ययन किया जा सकेगा।