भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव: पूर्व अधिकारियों की चेतावनी

भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार की आवश्यकता
भारत में अमेरिकी आयात पर भारी टैरिफ लगाने के कारण भारत-अमेरिका संबंधों में गंभीर तनाव उत्पन्न हुआ है। हालांकि, जो बाइडेन प्रशासन के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि इन संबंधों को फिर से मजबूत किया जा सकता है, और यह आवश्यक भी है ताकि अमेरिका तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में चीन से पीछे न रह जाए।
साझेदारी का महत्व
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और पूर्व उप विदेश सचिव कर्ट एम. कैम्पबेल ने एक संयुक्त लेख में कहा कि वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच की साझेदारी को अमेरिका की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का समर्थन प्राप्त है, और इसने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीतियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका के सहयोगियों को भारत को यह समझाना होगा कि ट्रंप की राजनीतिक शैली अक्सर सौदेबाजी की भूमिका को छिपा देती है। सुलिवन और कैम्पबेल ने यह भी बताया कि "टैरिफ, रूस से तेल खरीद और पाकिस्तान के साथ बढ़ती तनाव ने भारत-अमेरिका संबंधों में तेजी से गिरावट का कारण बना है।"
भारत की स्थिति
वे यह भी बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की हालिया बैठकें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ यह संकेत देती हैं कि अगर भारत की अनदेखी की गई, तो वह अमेरिका के प्रतिकूल देशों के करीब जा सकता है।
नई रणनीति की आवश्यकता
इसलिए, दोनों देशों को केवल पुराने हालात को बहाल करने के बजाय एक नई, मजबूत और रचनात्मक रणनीति अपनानी चाहिए। लेख में यह भी याद दिलाया गया है कि कई अमेरिकी राष्ट्रपति अतीत में भारत के साथ साझेदारी को मजबूत करने के लिए ठोस प्रयास कर चुके हैं।
भारत-पाक नीति पर दृष्टिकोण
सुलिवन और कैम्पबेल ने स्पष्ट किया कि अमेरिका को भारत और पाकिस्तान के संबंधों को एक साथ नहीं देखना चाहिए। अमेरिका को एक संयुक्त "इंडो-पाक नीति" से बचना चाहिए।
भविष्य की साझेदारी के पांच स्तंभ
लेख में सुझाव दिया गया है कि अमेरिका और भारत के बीच एक नई रणनीतिक साझेदारी को एक औपचारिक संधि के रूप में स्थापित किया जा सकता है, जिसे अमेरिकी सीनेट द्वारा अनुमोदित किया जाएगा।