भाई दूज का महत्व और पौराणिक कथा
भाई दूज का त्योहार
दिवाली के तीसरे दिन मनाया जाने वाला भाई दूज, जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है, भारत के विभिन्न हिस्सों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसे संस्कृत में भागिनी हस्ता भोजना के नाम से जाना जाता है। भाई दूज को भैया दूज, भाऊ बीज, भात्र द्वितीया, भाई द्वितीया और भतरु द्वितीया जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों का तिलक करती हैं और उनकी लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं।
भाई दूज का उत्सव
इस दिन बहनें व्रत रखती हैं और अपने भाइयों को घर बुलाकर उनका तिलक करती हैं। वे उन्हें कलावा बांधती हैं और आरती उतारती हैं। इसके बाद बहनें भाइयों को मिठाई खिलाती हैं, और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं। यह त्योहार मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना जी से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं भाई दूज मनाने की पौराणिक कथा।
भाई दूज शुभ मुहूर्त (2025)
- भैया दूज तिथि प्रारंभ: 22 अक्टूबर 2025, रात 08:16 बजे
- भैया दूज तिथि समाप्त: 23 अक्टूबर 2025, रात 10:46 बजे
- भैया दूज पूजा मुहूर्त: दोपहर 01:13 से 03:28 बजे तक
भाई दूज की पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, भगवान सूर्य की पत्नी छाया से यमराज और यमुना जी का जन्म हुआ। यमुना जी हमेशा अपने भाई से घर आने का आग्रह करती थीं, लेकिन यमराज अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे। एक दिन कार्तिक मास की द्वितीया तिथि को यमराज अचानक यमुना जी के घर पहुंचे। यमुना जी ने अपने भाई का स्वागत किया और उन्हें भोजन कराया। यमराज उनके सत्कार से प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए कहे। यमुना जी ने कहा कि वे हर साल इस दिन उनके घर भोजन करने आएं।
भाई दूज का महत्व
यमुना जी ने यह भी कहा कि जो बहन इस दिन अपने भाई को तिलक करके भोजन कराएगी, उसे यमराज का भय नहीं सताएगा। यमराज ने 'तथास्तु' कहकर यमपुरी लौट गए। तभी से भाई दूज का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि जो भाई इस दिन यमुना में स्नान करके अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यमराज का भय नहीं रहता।